उत्तर प्रदेश में सहकारी समितियों एवं संस्थाओं के डेली गेट और संचालक मंडल के चुनाव 15 जनवरी से शुरू होकर तीस जनवरी को संपन्न हो गए। जिसमे प्रबंध सिमित के सदस्य और डेलीगेटो का गठन पूर्ण हो गया। इन चुनावों को निष्पक्षता से संपन्न कराने के लिए पूर्व मे गठित बोर्ड को भंग कर के निबंधक द्वारा प्रशासक कमेटी गठित की जाती जिसकी निगरानी मे चुनाव कराये जाने कि प्रक्रिया हैं।
इसी प्रक्रिया द्वारा राजधानी नगर सहकारी बैंक में चुनाव के दौरान प्रशासक कमेटी कार्य कर रही थी। इसी चुनावी प्रक्रिया के बीच सहायक निबंधक अशोक सिंह ने राजधानी बैंक के सचिव उमेश गुप्ता को चुनाव परिणाम आने के मात्र दो दिन पहले वित्तीय अनियमितता का हवाला देते हुए स्थानांतरित कर के निलबंलित कर दिया, जबकि चुनाव के मध्य सचिव स्तर पर सभी वित्तीय कार्य स्थगित होते हैं और उनकी जगह वरीयताक्रम कि अवहेलना करते हुए 5 वरिष्ठ कर्मचारियों को सुपरशीट करते हुए “शरद टण्डन” को राजधानी बैंक का सचिव नियुक्त कर दिया।
दरअसल अशोक सिंह कि मंशा चुनावों में व्यवधान डाल कर बोर्ड को भंग रहने की प्रक्रिया को लम्बा खीच कर स्वयं प्रशासक बनकर बैंक पर नियंत्रण करने कि थी, जिसमें वह सफल नहीं हो सके। सचिव बदलने के खेल के पीछे सहकारिता विभाग और राजधानी बैंक के कर्मचारियो मे मोटी रक़म के लेन देन कि चर्चा है। जिसकी भनक विभागीय मंत्री तक पहुँच गयी।चुनाव संपन्न होते ही मंत्री ने मामले का संज्ञान लेते हुए जिला सहायक निबंधक अशोक सिंह को आगरा मंडल से संबद्ध कर दिया और उनकी विभागीय जॉच की तैयारी की जा रही है।
अब सहायक निबंधक अशोक सिंह जो कि अपना स्थानांतरण और जॉच रुकवाने कि पेशबंदी मे लग गये है और साथ ही उनके पद पर जिस व्यक्ति को ज्वाइन करना था उसको व्यक्तिगत तौर पर मैनेज करके कुछ दिनों कि छुट्टी पर भिजवा दिया हैं। जिससे इनको चार्ज देने कि बाध्यता न बने और अपने पक्ष मे ये दलील पेश करते घूम रहे है कि,चूँकि इन्होंने भ्रष्टाचार रोकने का प्रयास किया इस कारण इनका तबादला कर दिया गया।
सहायक निबंधक अशोक कुमार सिंह जब रविवार के दिन अपना ऑफ़िस खुलवा कर इस खेल को अंजाम देने वाले थे। रविवार के दिन ऑफिस मे इकट्ठा चौकडी को तुरंत ऑफिस बंद कर वहॉ होने वाली बैठक को अपने घर पर बुला लिया और प्रशासक कमेटी पर दबाव बनाकर बैक डेट मे सचिव के स्थानांतरण और निलबंन के आदेश जारी करवा दिये।
इस पर प्रश्न ये उठता हैं कि वर्तमान सचिव द्वारा अगर कोई वित्तीय अनिमित्ता का मामला बनता था तो उन पर चुनाव के पूर्व या चुनाव के उपरांत भी कार्यवाही की जा सकती थी (जिसमे की मात्र एक दिन ही शेष था)। किंतु जिला सहायक निबंधक के द्वारा प्रशासक कमेटी जो कि चुनाव के समय इन्हीं के अधीन कार्य कर रही थी उससे चुनाव के ठीक एक दिन पहले बैक डेट मे सचिव को निलंबित कराने का क्या औचित्य था।
दूसरा प्रश्न अगर वर्तमान सचिव को हटाना इतना आवश्यक ही था तो उसकी जगह पर वरीयता क्रम मे पहले से मौजूद कर्तव्यनिष्ठ पॉच कर्मचारियों को सुपर शीट करते हुए ‘शरद टंडन’ को सीधे सचिव क्यो नियुक्त किया गया। ऐसी उनमे क्या विशेष योग्यता विद्मान थी? इसके पीछे राजधानी बैंक के कर्मचारियों में शरद टंडन द्वारा जिला सहायक निबंधक को मोटी रक़म पहुँचाने कि चर्चा खुलकर हो रही हैं।
जिसका आधार शरद टंडन द्वारा पिछले एक माह मे अपने और अपने रिश्तेदारों के खातों से मोटी रक़म निकालना बताया जा रहा है। (जिसके प्रमाण भी हैं) चुनावों के मध्य प्रशासक कमेटी कार्य करती है जिसके गठन कि जिम्मेदारी सहायक निबंधक की होती हैं। इन दो दिनों मे प्रशासक कमेटी पर दबाव बनाकर अशोक सिंह जिला सहायक निबंधक द्वारा, जिनकी छवि कॉपरेटिव विभाग के भ्रष्टतम अधिकारियो मे की जाती हैं। जिन पर स्वंय भ्रष्टाचार के गम्भीर आरोप है और ये कॉपरेटिव विभाग मे महाभ्रष्ट कि ख्याति प्राप्त हैं।
भष्टाचारी निबंधक अशोक सिंह ने डिप्टी रजिस्ट्रार मुरादाबाद द्वारा की गयी जॉच मे दोषी सिद्ध होने के बावजूद अपने रसूख़ के दम पर अपने खिलाफ हुई कार्यवाही को अभी तक लम्बित करवा रख्खा हैं। इनका दूसरा कारनामा सचिवालय कॉपरेटिव बैक लखनऊ का है जिसमे इन्होंने सचिवालय कॉपरेटिव बैंक के सचिव बिमल मेहरोत्रा को ग़लत जॉच मे फँसा कर संसपेड कर दिया और एक ऐसे व्यक्ति को सचिव नियुक्त कर दिया। जिस पर सरकारी लाखो रूपये के ग़बन के आरोप थे।
उसके बाद स्वंय अशोक सिंह बैक का प्रशासक नियुक्त हो कर कर्मचारियों को ब्लैकमेल कर कर के बैंक को ही बंद होने कि कगार पर पहुचा दिया। वहॉ से कर्मचारियो से जॉच मे फँसाने की धमकी देकर मोटी रकम वसूलनी शुरू कर दी, जिसकी जॉच सहकारिता विभाग के उच्चाधिकारियो द्वारा की गयी जिसमे ये लाखो रूपये के वित्तीय घोटाले मे लिप्त पाये गये हैं। किंतु अपने रसूख के दम पर इन्होने कार्यवाही रूकना रख्खी हैं। ये अर्बन बैंकों मे अनावश्यक हस्तक्षेप कर के बैंको के सचिवो की अदला बदली मे मोटी रकम ले कर सचिवो को बदले का कारनामा करते आये हैं।
दरअसल इनका असल खेल शुरू होता है समितियों के गठन के दौरान जब ये बैंको के प्रशासक कमेटी मे अपने चहेते अधिकारियो कि टीम बना कर बैंक कर्मचारियो को जॉच का भय दिखा कर धन उगाही करते है। इनकी न सुनने वाले अधिकारि कर्मचारियो को झूठी शिकायतो का आधार बनाकर जॉच मे फंसा दिया जाता हैं। इन पर अकूत धनसंपत्ति अर्जित करने के भी आरोप हैं। बताया जाता है कि पिछले तीन महीने कि लखनऊ पोस्टिंग के दौरान इनके द्वारा लखनऊ के पॉश इलाके मे करोड से ऊपर कि धनराशि का एक और फ्लैट खरीदा गया हैं। इनका नया शिकार राजधानी बैंक होने वाला था जिसकी भनक समय रहते अपनी स्वच्छ और ईमानदार छवि के लिए जाने वाले विभागीय मंत्री तक पहुँच गयी और मामले पर त्वरित कार्रवाई हो गयी। मामले की जांच ठीक तरीके से हुई तो सहायक निबंधक अशोक सिंह का काला चिट्ठा खुलना तय माना जा रहा हैं।