राजधानी लखनऊ में कानून-व्यवस्था ध्वस्त होती दिखाई दे रही है और अपराधियों का आतंक चरम सीमा पर है। शहर में असलहे लेकर खुलेआम घूम रहे गुंडे अब पत्रकारों को निशाना बना रहे हैं। अपनी जान जोखिम में डालकर हर खबर आप तक पहुंचाने वाले पत्रकार भी अब सुरक्षित नहीं हैं आम जनता कैसे होगी इसका अंदाजा आप खुद ही लगा सकते हैं। अभी हाल में ही गजीपुर और काकोरी थाना क्षेत्रों में दो पत्रकारों पर हमला हुआ जबकि इससे पहले गोमतीनगर में एक पत्रकार पर चाकू से हमला हो चुका है। ये घटनाएं तो महज बानगी भर हैं, उत्तर प्रदेश में पत्रकार सुरक्षित नहीं हैं, आंकड़े देखकर आप हैरान रह जायेंगे।
CCTV: फिर पत्रकार पर कातिलाना हमला, पत्नी ने फायर कर बचाई जान
15 दिन के भीतर दूसरा हमला
04 फरवरी 2018 को काकोरी थाना क्षेत्र में रहने वाले आबिद अली को घर से रविवार को करीब 11:20 बजे खींच कर कुल्हाड़ी, तलवार, हथोड़े, डंडो से बीच सड़क पर जान से मारने की नीयत से हमला किया। हमले पत्रकार आबिद अली को गर्दन, पीठ, हाथ और सिर में गंभीर चोट आई। शोर- शराबा सुनकर बाहर आई पत्रकार आबिद अली की अधिवक्ता पत्नी ने अपने पति की जान की सुरक्षा में लाइसेंसी रिवॉल्वर से फायर किया। इसके बाद में पत्रकार आबिद अली ने बचाव में फायर किया, जिसके बाद उक्त अपराधी धमकी देकर भागे। पुलिस पत्रकार आबिद अली की तहरीर पर केस दर्ज कर आरोपियों की तलाश कर रही है।
19 जनवरी 2018 को गाजीपुर थाना क्षेत्र के इंदिरानगर में रहने वाले वरिष्ठ पत्रकार नवलकांत सिन्हा के साथ न केवल लूटपाट की, बल्कि उन्हें असलहे के बट से वार कर गंभीर रूप से घायल भी कर दिया था। घटना की सूचना मिलते ही कैबिनेट मंत्री बृजेश पाठक, प्रवक्ता शलभ मणि त्रिपाठी, हरिश्चन्द्र श्रीवास्तव और पूर्व यूथ अध्यक्ष एचके राय घायल पत्रकार से मिलने उनके घर पहुंचे। प्रमुख सचिव गृह अरविंद कुमार ने आरोपियों की गिरफ्तारी की पुष्टि की थी।
इससे पहले भी हो चुके पत्रकारों पर कई हमले
01 दिसंबर 2017 को कानपुर के बिल्हौर क्षेत्र में पत्रकार नवीन गुप्ता की कुछ अज्ञात लोगों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी। वह नगर पालिका परिषद कार्यालय के पास स्थित अपनी दुकान पर बैठे थे। लघुशंका करने वह रेलवे लाइन के पास गए थे। वहां मौजूद हमलावरों ने उन पर ताबड़तोड़ गोलियां चलानी शुरू कर दी थी। नवीन के सिर और सीने में 4 गोलियां लगीं थी। गोलियों की आवाज सुनकर भाई नितिन और अन्य लोगों ने पत्रकार को सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पहुंचाया, जहां डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया था।
13 सितंबर 2017 को वरिष्ठ पत्रकार राजेंद्र प्रसाद पर आरटीओ में तैनात लिपिकों ने जानलेवा हमला कर दिया था। हमले में पत्रकार के सिर पर गंभीर चोटें आई थीं। लिपिकों ने पत्रकार को जान से मारने की नियत से हमला कर लूटपाट की। इस संबंध में पत्रकार ने सरोजिनी नगर में लिपिकों के खिलाफ लूटपाट सहित मारपीट की धाराओं में मुकदमा पंजीकृत कराया। साथी ही राज्य मुख्यालय मान्यता प्राप्त पत्रकार समिति के पदाधिकारियों ने घटना की निंदा करते हुए मुख्य सचिव सहित एडीजी एलओ से इस घटना की निष्पक्ष जांच कराकर अपराधियों के खिलाफ कठोर से कठोर कार्रवाई करने की मांग की थी।
07 सितंबर 2017 को गोमतीनगर के विशालखंड-एक में एक न्यूज चैनल के कैमरामैन सत्य प्रकाश राय और उनके दोस्त पर चाकू से कातिलाना हमला हुआ था। रात को दोनों लोग मकान शिफ्ट करने की तैयारी कर रहे थे। दोनों लोग सीएमएस के पीछे स्थित पान की एक दुकान के पास खड़े होकर बात कर रहे थे। तभी एक युवक वहां आया। उनका कहना है कि वह नशे में था। गाड़ी हटाने को लेकर परमानंद से युवक की कहासुनी हो गई। बात मारपीट तक पहुंच गई। तभी युवक ने चाकू निकालकर दोनों पर ताबड़तोड़ कई वार कर दिए। हमला करने के बाद वह भाग निकला था।
08 जून 2015 को शाहजहांपुर जिला में सोशल मीडिया पत्रकार जगेन्द्र की जिंदा जलाकर हत्या कर दी गई थी। पत्रकार ने भ्रष्ट मंत्री और भ्रष्ट पुलिस की साजिश का शिकार होकर 8 जून को लखनऊ के शिविल अस्पताल में दम तोड़ दिया था। शहीद पत्रकार ने 22 मई को सूबे के वरिष्ठ अधिकारियों को भेजे पत्र में अपनी हत्या की आशंका जता दी थी, लेकिन तब अधिकारियों और प्रशाशन ने ध्यान नहीं दिया आखिर उन्हें जान से हाथ धोना पड़ा।
11 जून 2015 को कानपुर जिला में कुछ दबंगों ने पुलिस से जुए की शिकायत और जुएं के अड्डे को पकड़वाने के विरोध में पत्रकार दीपक मिश्र को गोली मार दी थी। दीपक के शरीर में 2 गोली लगीं थी जिसमें एक गोली पेट में और दूसरी गोली कंधे में लगी उन्हें गम्भीर हालात में हैलट अस्पताल में भर्ती कराया गया था।
31 जुलाई 2015 को यूपी के कन्नौज जिला की छिबरामऊ तहसील में पत्रकार राजा चतुर्वेदी की पुरानी रंजिश के चलते घर के पास ही हमलावरों ने गोली मार कर हत्या कर दी और अपराधी फरार हो गए। बताया जा रहा था कि दबंगों ने इनके परिवार पर कई बार हमला किया जिसकी सूचना पुलिस को भी थी, लेकिन पुलिस की ठोस कार्यवाही और पत्रकार की सुरक्षा पर कोई ध्यान नहीं दिया गया नतीजन पत्रकार की जान चली गयी।
03 नवंबर 2015 को राजधानी में एक बार फिर पुलिस की बर्बरता सामने आई इस बार बेलगाम सरोजनीनगर थानाध्यक्ष की पिटाई से अधमरे स्वतंत्र पत्रकार व लेखक राजीव चतुर्वेदी की मौत हो गई थी। थानाध्यक्ष के मातहतों ने बड़ी चतुराई के साथ उन्हें सीएचसी में भर्ती कराया था। चालक ने जब उनकी तलाश में मोबाइल पर फोन किया तो पता चला कि सीएचसी में उनकी मौत हो चुकी है। यह खबर फैलते ही सामुदायिक केंद्र पर जमावड़ा लग गया था।
6 जुलाई 2015 को बाराबंकी में एक दैनिक अखबार के पत्रकार की मां से थाने के भीतर बलात्कार की कोशिश की गई और कामयाबी नहीं मिली तो उहें पेट्रोल डालकर जला दिया गया। वह थाने में अपने पति को छुड़ाने के लिए गयी थी। पति को छोड़ने के एवज में पहले उनसे पुलिस ने एक लाख रुपये मांगे न देने पर थानाध्यक्ष ने कमरे में ले जाकर उनसे बलात्कार की कोशिश की विरोध में एसो ने तेल डालकर आग लगा दी थी। इस मामले ने तूल पकड़ा लेकिन बाद में मामला ठंडा हो गया।
28 जून 2011 को लखनऊ के हाई सिक्यूरिटी जेल में डिप्टी सीएमओ की मौत की खबर दिखाने पर संवाददाता शलभ मणि त्रिपाठी और मनोज राजन त्रिपाठी पर दो पुलिस अधिकारी ने हमला कर दिया था। एडीटर्स गिल्ड ने इस सिलसिले में सीधे उस समय की मुख्यमंत्री मायावती को पत्र लिखा और दबाव में आई मुख्यमंत्री को अपने अफसरों को ताकीद करनी पड़ी थी कि वो मीडिया से सलीके से पेश आएं। इसके बाद पत्रकारों में काफी रोष पैदा हुआ था।