जलियांवाला बाग कांड शताब्दी वर्ष 13 अप्रैल, 2018 से शुरू हो रहा है। इस मौके पर लखनऊ के तमाम जनसंगठनों व नागरिकों ने जालियांवाला बाग के अमर शहीदों की याद व उनके बलिदान के उद्देश्यों को जनमानस के बीच ले जाने के मकसद से जलियांवाला बाग कांड शताब्दी समारोह आयोजन समिति का गठन किया है।
इस समिमि के तत्वाधान में 13 अप्रैल, 2018 को शाम 4:00 बजे से काकोरी शहीद स्तम्भ स्थल, पटेल प्रतिमा के पीछे, जीपीओ पार्क, हजरतगंज, लखनऊ में स्मृति सभा का आयोजन गीत-संगीत के साथ किया जायेगा। तत्पश्चात हर महीने लखनऊ के विभिन्न स्थानों पर नुक्कड़ सभा, नुक्कड़ नाटक, गीत-संगीत, सेमिनार का आयोजन कर समाज में शहीदों की याद व उनके विचारों को प्रसारित किया जायेगा।
समिति के वरिष्ठ सदस्य केके शुक्ला ने जारी बयान में कहा कि आज के दौर में जब हमारे समाज में अपसंस्कृति की बदबूदार बयार बह रही है, संप्रादायिकता, जातिय संघर्ष का जहर फैल रहा है। समाज में आर्दशों का अकाल पड़ा है। ऐसी स्थिति में शहीदों का जीवन संघर्ष व उनके विचार हमें नई उर्जा व रोशनी दे सकेत हैं। इसी मकसद से यह जनजागरण किया जायेगा।
गौरतलब है कि 13 अप्रैल 1919 को बैसाखी के पर्व कर पंजाब में अमृतसर के जलियांवाला बाग में ब्रिटिश ब्रिगेडियर जनरल रेजीनॉल्ड डायर द्वारा किए गए निहत्थे मासूमों के हत्याकांड से केवल ब्रिटिश औपनिवेशिक राज की बर्बरता का ही परिचय नहीं मिलता, बल्कि इसने भारत के इतिहास की धारा को ही बदल दिया। वैसे भी 6 अप्रैल की हड़ताल की सफलता से पंजाब का प्रशासन बौखला गया। पंजाब के दो बड़े नेताओं, सत्यापाल और डॉ. किचलू को गिरफ्तार कर निर्वासित कर दिया गया, जिससे अमृतसर में लोगों का गुस्सा फूट पड़ा था।
पंजाब प्रशासन को यह खबर मिली कि 13 अप्रैल को बैसाखी के दिन आंदोलनकारी जलियांवाला बाग में जमा हो रहे हैं, तो प्रशासन ने उन्हें सबक सिखाने की ठान ली। एक दिन पहले ही मार्शल लॉ की घोषणा हो चुकी थी। पंजाब के प्रशासक ने अतिरिक्त सैनिक टुकड़ी बुलवा ली थी। ब्रिगेडियर जनरल डायर के कमान में यह टुकड़ी 11 अप्रैल की रात को अमृतसर पहुंची और अगले दिन शहर में फ्लैग मार्च भी निकाला गया।
आन्दोलनकारियों के पूर्वनिर्धारित कार्यक्रम के अनुसार बैसाखी के दिन 13 अप्रैल, 1919 को अमृतसर के जलियांवाला बाग में एक सभा रखी गई, जिसमें कुछ नेता भाषण देने वाले थे। हालांकि शहर में कर्फ्यू लगा हुआ था, फिर भी इसमें सैंकड़ों लोग ऐसे भी थे, जो आस-पास के इलाकों से बैसाखी के मौके पर परिवार के साथ मेला देखने और शहर घूमने आए थे और सभा की खबर सुन कर वहां जा पहुंचे थे।
सभा के शुरू होने तक वहां 10-15 हजार लोग जमा हो गए थे। तभी इस बाग के एकमात्र रास्ते से डायर ने अपनी सैनिक टुकड़ी के साथ वहां पोजिशन ली और बिना किसी चेतावनी गोलीबारी शुरू कर दी। जलियांवाला बाग में जमा लोगों की भीड़ पर कुल 1,650 राउंड गोलियां चलीं जिसमें सैंकड़ो अहिंसक सत्याग्रही शहीद हो गए, और हजारों घायल हुए। घबराहट में कई लोग बाग में बने कुंए में कूद पड़े। कुछ ही देर में जलियांवाला बाग में बूढ़ों, महिलाओं और बच्चों सहित सैकड़ों लोगों की लाशों का ढेर लग गया था। अनाधिकृत आंकड़े के अनुसार यहा 1000 से भी ज्यादा लोग मारे गए थे। इस बर्बरता ने भारत में ब्रिटिश राज की नींव हिला दी।