बलिया: बिंदी को लगाना कौन नहीं जानता होगा. भारत में बिंदी (टिकुली) महिलाओं के माथे का ताज होती है. महिलाओं के लिए बिंदी श्रृंगार का एक हिस्सा है, जिसका इस्तेमाल महिलाएं अपनी ज्वेलरी, कपड़े के साथ मैच करके लगाती है. यानी कपड़ों की रंग की बिंदी लगाई जाती है. इसलिए महिलाओं के पास किसी एक रंग के नहीं बल्कि कई रंगों और डिजाईन के बिंदी देखने को मिलेंगे.

दुकानदार परवेज आलम ने बताया कि बिंदी का कारोबार हम लोगों का पुश्तैनी चला आ रहा है. पहले यहां शीशे को गला कर बिंदी बनती थी. उस पर सोने और चांदी का पानी भी चढ़ाया जाता था. पिछले कुछ सालों से शीशे की बिंदी का चलन खत्म हो गया है. जिसके बाद से बाजार में नए किस्म की बिंदी आने लगी है. कारणवश बिंदी उद्योग काफी प्रभावित हुआ है. लेकिन आज भी बलिया जिले के मनियर क्षेत्र के लिए यह बड़ा उद्योग है. इस उद्योग पर तमाम लोगों की जीविका आधारित है.

वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट में शामिल
मनियर बिंदी उद्योग को सरकार ने एक जिला एक उत्पाद के लिए चयनित भी किया है. बिंदी उद्योग इस क्षेत्र का बहुत ही प्राचीन और प्रसिद्ध कारोबार रहा है. बिंदी निर्माण में कुछ प्रक्रिया बाहर से ही अब हो करके आ रहे हैं. जिसके कारण इस क्षेत्र में काम करने वाले कुछ लोग प्रभावित भी हुए हैं. लेकीन अभी भी बिंदी उद्योग हजारों महिलाओ के जीविका का साधन बना हुआ हैं.

ऐसे तैयार होती हैं बिंदी
बिंदी को बनाने के लिए डेकोरेटिव कलर शीट को पंच कर उन पर ब्रश रोल के माध्यम से फेविकोल लगाया जाता है. फिर इसे सूखने के लिए गर्म चैंबर से पास कराया जाता हैं. इसके बाद पंचिंग मशीन का प्रयोग करके बिंदी को सही आकार के लिए मखमल के कपड़े पर पंच कर डेकोरेटिव पेपर पर अटेच कर दिया जाता है. अंत में छोटे फोल्डर में पैक कर दिया जाता है. इतनी प्रक्रिया के बाद बिंदी तैयार होती है.

 

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