केंद्र में लोकपाल लोकायुक्त कानून 01 जनवरी 2014 को हुआ है। लेकिन नरेंद्र मोदी सरकार सत्ता में आए हुए चार साल हुए है। लेकिन उस पर अमल नहीं और महाराष्ट्र सरकारने लोकायुक्त कानून बनाने का समय समय पर आश्वासन देकर भी कानून नहीं बना रहे है। इस कारण 30 जनवरी 2019 से भ्रष्टाचार विरोधी जन आंदोलन संगठन आंदोलन शुरू करने जा रहा है।

कि. बा. तथा अन्ना हजारे ने प्रेस रिलीज जारी करते हुए कहा है कि मैं पिछले 50 साल से समाज और देश के भलाई के लिए आंदोलन करते आया हूँ। हर आंदोलन के बारे में लोग साधक बाधक विपरीत चर्चा करते है। लेकिन विपरीत चर्चा करनेवालों को यह पता नहीं है कि, समाज और देशहित के लिए मेरे जानकारी अनुसार दो बाते अत्यंत महत्वपूर्ण है।

1) विकास कार्य को गती देना। विशेषतः ग्रामविकास कार्य को गती देना। क्योंकी भारत एक गाँवों में बसा देश है। गाँवों का सर्वांगिण विकास हुआ तो देश का विकास अपनेआप होगा। इसलिए गाँवों का विकास होना जरूरी है।
2) विकास कार्य मे बढते भ्रष्टाचार के कारण परक्युलेशन लगा है। इसलिए जो एक रुपया गाँव के विकास कार्य में लगना चाहिए उस में से दस पैसा भी गाँव के विकास में लगना मुश्किल हुआ है। इसलिए विकास कार्य को भष्टाचार का महारोग लगा है। उस को रोकथाम लगाना आवश्यक है।

विकास कार्य को गती और विकास को लगे भ्रष्टाचार को का परक्युलेशन यह एक सिक्के के दौ पैलू है। यह दोनों काम गती से किए बीना गांव, समाज और देश को सही तरीके से उज्वल भवितव्य मिलना संभव नहीं है। इसलिए 25 साल की उम्र में स्वामी विवेकानंद जी और महात्मा गांधीजी के विचारों से प्रेरणा मिली। अपने गाँव रालेगणसिद्धी में 1975 से ग्रामविकास का कार्य शुरू किया। और आगे दस साल के बाद भ्रष्टाचार रोकने के लिए भ्रष्टाचार विरोधी जन आंदोलन के माध्यम से भ्रष्टाचार को रोकने का काम शुरू किया।

ग्राम विकास और भ्रष्टाचार को लगी रोकथाम के कारण रालेगणसिद्धी का परिचय राज्य और धीरे धीरे देश को होता गया। ढ़ाई से तीन हजार लोगों की बस्तीवाला यह रालेगणसिद्धी गांव, विदेश से और उद्योगपतीयों से चन्दा ना लेते हुए गांव ने संगठन के बल पर, प्रकृति का दोहन ना करते हुए सरकारी योजनाएं, जनता का सहभाग और आवश्यकता के अनुसार बँक से कर्जा इस त्रिवेणीसंगम से शाश्वत विकास किया। पिछले ग्यारह साल में राज्य, राष्ट्र, विदेश से ग्यारह लाखो लोगोंने इस गांव को भेट दे कर इस गांव से प्रेरणी ली है। पांच लोगोंने इस कार्य पर पीएचडी की है। देश की अर्थव्यवस्था बदलने के लिए गाँव की अर्थव्यवस्था बदलना आवश्यक है। वह अर्थव्यवस्था बदलने का रालेगणसिद्धी एक उदाहरण है। अगर देश की अर्थव्यवस्था बदलनी है तो, गाँव की अर्थव्यवस्था बदलनी होगी इसलिए गाँव की तरफ चलों ऐसा संदेश महात्मा गांधीजी ने दिया था। विकास के नाम पर आज प्रकृति का अमर्याद दोहन होता है। आज देश में हजार नहीं, लाखों नहीं, करोड़ो लीटर पेट्रोल, डिझल, रॉकेल जल रहा है। करोडो टन कोयला जल रहा है। उस में से निकला हुआ कार्बनडायऑक्साईड के कारण प्रदुषण बढ रहा है। बढ़ते प्रदुषण के कारण लोगों में बिमारीयां बढ रही है। बढते प्रदुषण के कारण तपमान बढ रहा है। हिमाच्छादीत पर्वत पिघल रहे है। इस कारण समुद्र में पानी का स्तर बढ रहा है। इस गंभीर खतरे को लेकर दुनिया के लोग चिंतित है। कई वैज्ञानिकों ने इशारा दिया है कि, अगले अस्सी-नब्बे साल के आसपास समुद्र के किनारे जो शहर है उनको समुद्र जलस्तर बढने के कारण खतरा निर्माण हो सकता है।

प्रकृति का दोहन कर के किया हुआ विकास शाश्वत विकास नहीं है। वह विनाशकारी है। कभी ना कभी विनाश होगा। शाश्वत विकास कैसा होता है उसका उदाहरण रालेगणसिद्धी गांव ने निर्माण किया है। देश में ऐसा विकास हुआ तो भारत देश दुनिया में बहुत आगे जाता। रालेगणसिद्धी के आजुबाजू के गांवों ने इसका अनुकरण किया है यह महत्वपूर्ण है। रालेगणसिद्धी ने ग्रामविकास के क्षेत्र में अनेक उदाहरण निर्माण किए है। एक तरफ ग्रामिण विकास का कार्य करते हुए दुसरी तरफ विकास कार्य को लगे भ्रष्टाचार को भ्रष्टाचार विरोधी जन आंदोलन के माध्यम से रोकथाम लगाने का प्रयास किया है। उस कारण कुछ हद तक भ्रष्टाचार को रोकथाम लगी। मिसाल के तौर पर-

1) 1989 में महाराष्ट्र राज्य के किसानों के लिए ड्रीप सिंचाई सब्सिडी नीति के बनाने के लिए महाराष्ट्र में आंदोलन किया। उस कारण सरकार ने लिए निर्णय लिए और किसानों को लाभ हुआ।

2) किसानों को खेती के लिए बिजली की आपूर्ती नहीं होती थी इस कारण फसल जल रही थी। इले. पंप जल रहे थे। 1989 में आंदोलन किया। आठ से दस हजार किसानों ने नगर-पुणे हायवे पर वाडेगव्हाण फाटा पर बड़ा आंदोलन किया। आंदोलनकारीयों पर सरकारने गोलीयाँ चलाई। उसमें चार किसानों की मौत हो गई और सात लोग जख्मी हो गए। उस आंदोलन के कारण अनेक जगह पर सरकार को बिजली के सब-स्टेशन शुरू करने पडे। किसानों का बिजली प्रश्न छुड़ाने में मदद मिली।

3) वन विभाग के वरिष्ठ अधिकारीयोंने अलग अलग विभागों में वरिष्ठ अधिकारियों ने बड़ा भ्रष्टाचार किया। उस भ्रष्टाचार की जांच हो इसलिए महाराष्ट्र में आंदोलन किया। भारत सरकार के प्रधानमंत्री राजीव गांधीजी ने दिया हुआ ‘वृक्षमित्र’ का अवार्ड भारत सरकार को वापस किया। पद्मश्री किताब राष्ट्रपतीजी को वापस किया। उस कारण जनता में जागरूकता हुई और वन विभाग के अधिकारीयों पर सरकार को कार्यवाही करनी पडी।

4) महाराष्ट्र राज्य में हुए 412 भ्रष्टाचार के मामले सरकार को सबूत के साथ दिए। सरकार उन मामलों की जांच नहीं कर रही इसलिए आंदोलन किया। उन मामलों की जांच हो कर अधिकारीयों पर कार्य हुई। पुराणीक कमिटी की जांच कमिटी बनाकर जांच हुई उसमें कुछ मंत्रियों को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा।

5) दोषी होते हुए भी युती सरकार मंत्रियों की जांच नहीं कर रहीं, उनपर कार्यवाही नहीं कर रहीं इस कारण महाराष्ट्र के आलंदी में 09/08/1999 को आंदोलन किया। और युती सरकार के और कुछ मंत्रियों को अपने पद का इस्तीफा देना पड़ा।

6) भ्रष्टाचार को रोकथाम लगे इसलिए सूचना का अधिकार कानून बनें इसलिए 09/08/2003 को मुंबई के आजाद मैदान पर 12 दिन का अनशन किया। सूचना का अधिकार कानून 2003 में महाराष्ट्र राज्य में लागू हुआ।

7) भ्रष्ट मंत्रियोंकी जांच करने के लिए सरकारने न्या. पी.बी. सावंत आयोग की नियुक्ती की। युती सरकार के कुछ मंत्रियों के भ्रष्टाचार के सबूत हाथ लगे। न्या. पी.बी. सावंत आयोग के रिपोर्ट अनुसार 2003 में मंत्रि दोषी पाए जाने पर तीन मंत्रियों को इस्तीफा देना पड़ा।

8) ग्रामसभा को जादा अधिकार मिले कानून हों, जनता को दप्तर दिरंगाई के कारण होनेवाला विलंब के लिए दप्तर दिरंगाई का कानून करें, शासकिय अधिकारीयों के बदली का कानून बनें क्योंकी, शासकिय अधिकारीयों के तबादला में बहुत भ्रष्टाचार होता था। और प्रामाणिक अधिकारीयों पर अन्याय होता था। इस कारण शासकिय अधिकारीयों के बदली का कानून बने इसलिए महाराष्ट्र राज्य में आंदोलन किए। राज्य के सभी जिला और तहसिल कार्यालय के सामने आंदोलन हुए। उस कारण सरकार को महाराष्ट्र में बदली का कानून बनाना पड़ा।

9) केंद्र सरकारने महाराष्ट्र में लागू सूचना का अधिकार 2003 का अनुकरण करते हुए 2005 में पुरे देश में सूचना का अधिकार कानून लागू किया।

10) 2006 में केंद्र सरकारने सूचना का अधिकार कानून में बदलाव करने का निर्णय़ लिया। इस कारण 09/08/2006 में महाराष्ट्र के संत ज्ञानेश्वर जी के समाधी स्थल आलंदी में आठ दिन का अनशन किया। उस अनशन के कारण भारत सरकार ने सूचना के अधिकार में बदलाव ना करने का निर्णय लिया। अन्यथा कानून का जनता को लाभ नहीं होना था। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंग जी ने अपने मंत्री को आलंदी में भेजकर सूचना का अधिकार कानून में बदलाव ना करने का लिखीत आश्वासन देकर अनशन छुडवाया।

11) 16/03/2010 को महाराष्ट्र के पतसंस्था घोटाले के बारे में आंदोलन हुआ। सरकारने 200 करोड रुपये गरीब ग्राहकों को मदत के रुप में दिए। उसके साथ राज्य में सहकार के लिए अच्छा कानून बनाया।

12) 05/04/2011 लोकपाल और लोकायुक्त का मसूदा बनाने के लिए दिल्ली के जंतरमंतर पर आंदोलन किया। सरकारने टीम अन्ना के पांच और केंद्र सरकार के पांच मंत्रियों की मसूदा समिती बनाई। तीन माह मसूदा समिती की मिटींग हुई और तत्कालीन सरकार अचानक पलट गई। और सरकारने लोकपाल लोकायुक्त अपना कमजोर मसूदा संसद में रखा।

13) 16/08/2011 दिल्ली के रामलिला मैदान पर लोकपाल लोकायुक्त कानून बनाने के लिए अनशन किया। उस आंदोलन में देश की जनता रास्ते पर उतर गई थी। लोकपाल लोकायुक्त विधेयक को संसद में 27/12/2011 में पारित हुआ।

14) 10/12/2013 से रालेगणसिद्धी में ‘करेंगे या मरेंगे’ इस विश्वास के साथ आंदोलन शुरू किया। उस समय संसद का 3 दिवसीय विशेष सत्र बुलाया गया था। देर रात तक उस पर चर्चा होकर दोनों सदनों में लोकपाल लोकायुक्त विधेयक 2013 पास हो गया। 01 जनवरी 2014 को राष्ट्रपतीजी का हस्ताक्षर हो गया और 16 जनवरी 2014 को कानून का गॅझेट (Gazette) प्रकाशित हो गया।

15) 23/02/2015 को भूमी अधिग्रहण बिल अन्यायकारक होने के कारण केंद्र सरकार वह बिल वापस लें इसलिए आंदोलन किया। साथ साथ देश के किसानों ने भी आंदोलन किया और सरकार को वह बिल वापस लेना पड़ा।

16) 26/07/2015 को वन रँक वन पेन्शन बिल पास कर के सैनिकों को न्याय मिले इसलिए दिल्ली के जंतर मंतर पर आंदोलन किया। केंद्र सरकारने वह बिल पास किया। (अमल नहीं)

17) 23/03/2018 को दिल्ली के रामलिला मैदान पर लोकपाल लोकायुक्त कानून पर अमल हों, किसानों को खेती माल के खर्चे पर आधारीत दाम मिले इसलिए आंदोलन किया। आठ दिन के अनशन के बाद प्रधानमंत्री कार्यालय ने सभी मुद्दों पर कार्यवाही करने का लिखीत आश्वासन देने के बाद अनशन छोडा। लेकिन मोदी सरकारने उन आश्वासनों का पालन नहीं किया। यह वास्तविकता है। केंद्र में नरेंद्र मोदी सरकार आए हुए चार साल से भी जादा समय बीत गया है। लेकिन 1 जनवरी 2014 को लोकपाल लोकायुक्त कानून बना, उस पर राष्ट्रपतीजी के हस्ताक्षर हुए फिर भी कानून पर अमल नहीं हुआ। सर्वोच्च न्यायालयने भी अनेक बार मोदी सरकार को फटकार लगाई है। फिर भी सरकार उस पर अमल नहीं कर ही है। लोकपाल कानून बनने के बाद हर राज्योंने एक साल के अंदर लोकायुक्त कानून लागू करना चाहिए ऐसा कानून कहता है। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्रीजी ने राज्य में लोकायुक्त कानून बनाने के बारे में अनेक बार आश्वासन देकर भी महाराष्ट्र राज्य में लोकायुक्त कानून नहीं बनाया। इस कारण 30 जनवरी 2019 से मैं मेरा गांव रालेगणसिद्धी में आंदोलन करने का निर्णय लिया है।

12 फरवरी 2014 को मनमोहन सिंह जी सरकारने पत्र के माध्यम के अवगत कराया था कि, लोकपाल लोकायुक्त कानून 2013 अनुसार हर राज्यों में लोकायुक्त नियुक्त करने की जिम्मेदारी उन राज्य के राज्य सरकारों की है। वैसा ही मार्च 2017 को मोदी सरकार के तरफ से आए हुए पत्र में कहाँ है कि, लोकायुक्त कानून बनाने की जिम्मेदारी राज्य सरकार की है। लेकिन महाराष्ट्र राज्य में अभी तक लोकायुक्त नियुक्त नहीं हुआ है। देश के अधिकांश राज्यों ने लोकायुक्त कानून नहीं बनाया। संसद में कानून बनाने के बाद अंमल ना होना यह देश के लिए दुर्भाग्यपूर्ण है।

ग्राम विकास में कार्य को गती देना और विकास कार्य को लगे भ्रष्टाचार को रोकना समाज और राष्ट्र हित के लिए महत्वपूर्ण है। लेकिन यह सिर्फ भाषण देकर नहीं होगा। भाषण को कृति को जोड देनेवाली लीडरशीप महत्वपूर्ण है। कथनी और करनी को जोडनेवाली लीडरशीप जरूरी है। इसमें किसी ना किसी को त्याग करना पडता है। खेती में दाने से भरा भुट्टा नजर आता है लेकिन उसके लिए पहले एक दाने को जमीन में मिटाना पडता है। एक दाने को पहले जमीन में जाना पडता है तभी दानों से भरा हुआ भुट्टा नजर आता है। भारत यह ऋषीमुनींयों की तपोभूमी है। सदियों से ऋषीमुनी कहते आए है कि, अगर गांव और समाज का भला करना है तो, त्याग करना पडेगा। शुद्ध आचार, शुद्ध विचार, निष्कलंक जीवन, त्याग और अपमान पीने की शक्ती यह गुण आवश्यक है। इसके बिना ऐसा कार्य नहीं होगा।

मेरे जैसा एक 25 साल का युवक जिसके पास धन-दौलत नहीं, सत्ता नहीं लेकिन एक दाना बनकर खुद को जमीन में जाने का निर्णय लिया तो समाज के लिए कुछ कर सका इसका उदाहरण है। भारत की जनसंख्या 125 करोड है और देश में साडेतीन लाख गाँव है। स्वतंत्रता के बाद साढ़े तीन लाख जमीन में जानेवाले दाने युवा इस देश को मिल जाते तो कहां अमेरिका और कहां रशिया? भारत देश दुनिया का गुरू बन जाता। लेकिन दुर्भाग्य।

बहुत लोग जो समाज और राष्ट्रहीत के लिए कार्य करते है उनकी नींदा करने में अपना समय बीताते है। बडे पैमाने पर मेरी भी नींदा होते रही। मुझे ऐसी नींदा सहने की आदत होने के कारण मन को थकावट नहीं आता आई क्योंकी जीवन में अनुभूति हुई है कि, जिस पेड को फल लगते है उसी पेड को लोग पत्थर मारते है। जिस पेड पर फल नहीं उस पेड पर पत्थर मारने का सवाल ही नहीं होता। विशषतः नीम के पेड कोई पत्थर नहीं मारता जितने आम के पेड को मारते है। जब कुछ पक्ष और पार्टी के लोग समाज और राष्ट्र को बाधक कृति करते है तब उनके खिलाफ समाज और राष्ट्रहित के लिए मैं बोलते आया हूँ। आंदोलन करते आया हूँ। ‘सच बोलने पर सगी माँ को भी गुस्सा आता है’ ऐसी कहावत है। इस कारण पिछले चालीस सालों में मेरी कम नींदा नहीं हुई है। लेकिन नींदा करनेवाले लोगों की संख्या कम है। और मुझे प्यार करनावाले लोगों की संख्या जादा है। कभी कभी मेरे सामने प्रश्न खडा होता है कि, मेरे पास धन नहीं, दौलत नहीं, सत्ता नहीं एक फकिर की जिंदगी जीनेवाले व्यक्ती पर लोग इतना प्यार क्यों करते है?

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