उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों के दौरान भारतीय जनता पार्टी के छोटे-बड़े नेताओं से लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को घेरते थे। यूपी जनता ने चुनाव में बीजेपी को प्रचंड बहुमत दी, लेकिन सवाल ये है क्या उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सरकार में आने के बाद सूबे को 24 घंटे बिजली दे पाएंगे…?
सरकार बनते ही सीएम योगी आदित्यनाथ एक्शन मोड में दिखाइ दे रहे हैं। सभी विभागों के बड़े अधिकारियों के साथ बैठक कर रहे हैं। सीएम बिजली विभाग के भी बड़े अधिकारियों के साथ बैठक कर उन्हें हर स्तर पर सुधार के लिए निर्देश दिए हैं। केंद्र की मोदी सरकार भी राज्य सरकार को पूरी मदद कर रहा है। लेकिन तस्वीर का दूसरा पहलू ये है कि सूबे की जनता को चौबीस घंटे बिजली मिलना मुंगेरी लाल हसीन सपनों से कम नहीं है। जानकारों का कहना है कि जर्जर विद्धुत व्यवस्था इस कवायद की राह में रोड़ा है।
अंधेरे में डेढ़ करोड़ घर
उत्तर प्रदेश पावर कॉरपोरेशन से सेवानिवृत इंजीनियर रविंद्र दुबे ने बताया कि लोगों को ग्रामीण विद्युतीकरण और पावर टू ऑल योजनाओं में फर्क समझने की आवश्यकता है। ग्रामीण विद्युतीकरण की परिभाषा है कि जिस गांव में बिजली के खंभे लग गए और तार खिंच गया, वह गांव विद्युतीकरण की श्रेणी में आ गया। लेकिन इसमें ये कहीं नहीं लिखा है कि गांव में कितने घरों तक बिजली कनेक्शन पहुंचाया गया। उन्होंने कहा कि आज भी यूपी में करीब सवा करोड़ घरों में बिजली कनेक्शन नहीं है। यूपी में ग्रामीण विद्युतीकरण होने के बाद भी गांवों में 71 प्रतिशत घरों में बिजली नहीं पहुंची है, वहीं शहरों में ये करीब 19 प्रतिशत है।
जर्जर तार, ट्रांसफॉर्मर चुनौती
रविंद्र दुबे का कहना है कि उत्तर प्रदेश में जितने बिजली कनेक्शन हैं, वहां चौबीस घंटे बिजली पहुंचाना टेढ़ी खीर है। अगर उत्तर प्रदेश सरकार चौबीस घंटे की मांग के हिसाब से बिजली केंद्रीय पूल आदि से जुटा भी ले तो भी वह जनता तक इसे पहुंचा नहीं सकेगी। कारण ये है कि प्रदेश में चौबीस घंटे डिस्ट्रीब्यूशन का नेटवर्क सक्षम नहीं है। लगातार बिजली सप्लाई हुई तो ट्रांसफॉर्मर ही जल जाएंगे।
ट्रांसमिशन लाइनें नहीं हैं सक्षम
उन्होंने बताया कि इसके अलावा दूसरे राज्यों से और प्रदेश के अंदर पावर सप्लाई के लिए ट्रांसमिशन लाइनें अभी उतनी सक्षम नहीं हैं। इनमें सुधार करने में कम से कम दो साल का समय लगेगा। गर्मियों में राज्य में करीब 19,000 मेगावाट की मांग पहुंच जाती है।
जिसने देखी न हो, उसे मिले बिजली
उनका मानना है कि चौबीस घंटे बिजली देने की बजाए सभी तक बिजली पहुंचाने की जरूरत पर सबसे पहले काम किया जाए। क्योंकि हमारा मानना है कि जिसे लगभग 20 घंटे बिजली मिल रही है, उसे 24 घंटे मिलने लगेगी तो उसे ज्यादा फर्क नहीं पड़ेगा, लेकिन जिसने बिजली देखी ही नहीं है, उसे बिजली मिलने लगेगी तो सही मायने में विकास होगा।