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तेहटना घाट पुल को लेकर ग्रामीणों ने गोमती नदी में उतरकर किया प्रदर्शन

सेतु निगम ने रामघाट पर पिछले शुक्रवार से तेहटना घाट के प्रस्तावित पुल का चिन्हांकन शुरू कर एक बार फिर न केवल उस चिंगारी को हवा दे दी जो चार साल से सुलग रही है। बल्कि हाईकोर्ट के उस आदेश को भी ठेंगा दिखा दिया जिसमें कोर्ट ने जनहित याचिका पर बिना जमीन अधिग्रहण काम शुरू न करने का आदेश दिया था।

तेहटना घाट स्थित गोमती नदी पर पुल न बनाकर सेतु निगम एक बार फिर से वर्ष 2014 के विवाद को तूल पर आमादा है। शनिवार से सेतु निगम की निर्माण सम्बन्धी गतिविधियों शुरू होते ही तेहटना गांववासियो के पुराने घाव हरे हो गए। ग्रामीणों ने मुख्यमंत्री व सेतु निगम के डायरेक्टर को शिकायत कर निर्माण की तय जगह तेहटना घाट गोमती नदी पर पुल बनाने की मांग की है।

बीकेटी और माल क्षेत्र के हजारों लोगों की सुविधा को देखते हुए वर्ष 2013 में पूर्व सपा सरकार के लोक निर्माण मंत्री शिवपाल यादव के द्वारा तेहटना घाट स्थित गोमती नदी पर पुल बनाने की घोषणा हुई थी। लेकिन कुछ राजनीतिक हस्तक्षेप के चलते निजी लाभ के लिए प्रस्तावित स्थल तेहटना घाट की बजाय पुल का निर्माण चन्द्रिका देवी मंदिर के समीप रामघाट पर शुरू हो गया। जिसके बाद तेहटना गांव के ग्रामीण आक्रोशित हो उठे।

मुख्यमंत्री से तेहटना घाट पर पुल बनवाने की मांग को लेकर नदी में उतरे ग्रामीण

तेहटना गांव के रघुनन्दन, जीतू, हरिहर, कल्लू, ठाकुरी, तेजऊ, दुन्ना व कालीदिन सहित कई ग्रामीणों ने मुख्यमंत्री व लोक निर्माण मंत्री से पुल का निर्माण तेहटना घाट स्थित गोमती नदी पर करवाने की मांग की है।

बैरंग लौटे थे शिवपाल मारपीट में दर्जन भर के सिर थे फूटे

यह विवाद यहीं नही थमा, जुलाई 2014 में ही चन्द्रिका देवी मंदिर एक कार्यक्रम में शामिल होने आए शिवपाल यादव जब विवादित स्थल को देखने पहचे तो वहां पर तेहटना व कोलवा के ग्रामीणों के बीच जमकर घमासान हुआ था जिसमें दोनों पक्षो से दर्जन भर ग्रामीणों के सिर फूट गए थे। शिवपाल यादव को बैरंग वापस लौटना पड़ा। तेहटना के ग्रामीणों ने हाईकोर्ट की शरण ली और पुल का निर्माण ठप्प हो गया था।

कोर्ट ने कहा बिना जमीन अधिग्रहण के न बनाये पुल

हाईकोर्ट ने 17 जुलाई को जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने जिम्मेदारों को पुल निर्माण के लिए निर्देश दिए। भू-अधिग्रहण अधिनियम के तहत निर्माण से पहले अधिग्रहण करने और अधिग्रहण तक पुल का निर्माण न करने का निर्देश दिया। लेकिन चार साल बाद फिर उसी स्थान पर चिन्हांकन शुरू होने से ग्रामीण आक्रोषित हैं।

भारी खनन से मन्दिर के अस्तित्व को खतरा

मन्दिर से महज 500 मीटर की दूरी से इस पुल के सड़क प्रस्तावित है। जानकारों की माने तो पुल निर्माण में उपयोग की जा रही भारी मशीनों के उपयोग और आसपास भारी वाहनों की धमक से मन्दिर के अस्तित्व को खतरा है।

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