उत्तर प्रदेश सरकार ने शिक्षा बजट में लाखों रुपये आवंटित किये थे. लक्ष्य था की प्रदेश के नौनिहालों में शिक्षा की अलख जगाने और उन्हें गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने का मगर ज़मीनी देख लगता है की शायद ये लक्ष्य बस कागजों में ही रह गया है. यूपी के शामली में नए सत्र की शुरुआत के बाद भी छात्रों के पास अभी तक न तो किताबे है न बैग्स न ही उनको अभी तक नई ड्रेस ही मिल पाई है। ऐसे में बच्चो के सामने पढ़ाई का संकट भी खड़ा हो गया है। वही अध्यापक बच्चो को सिर्फ ब्लैक बोर्ड पर ही पढ़ाने को मजबूर है, और जिला प्रशासन सिर्फ जल्द किताबे मिलने की बात कर रहा है।
चार महीने बाद भी किताबों का इंतज़ार:
बता दे उत्तरप्रदेश सरकार स्कूली छात्रों के भविष्य को संवारने के लिये करोड़ो रूपये खर्च करती है, बावजूद इसके सरकारी स्कूलो में बच्चो के सामने अपनी पढ़ाई का संकट मंडरा रहा है, क्योंकि जब छात्रों के पास किताबे नहीं होगी तो वो कैसे पढेंगे। 1 अप्रैल से नए सत्र की शुरुआत हो चुकी है, लेकिन 4 महीने बीत जाने के बाद भी अधिकतर बच्चे सरकार की ओर से मिलने वाली सुविधाओं से वांछित है।
बच्चे बैठते है फटी-पुरानी चटाई पर:
प्राइमरी स्कूलों के जहाँ बच्चे बिना किताबो के ही पढ़ने जा रहे है, वही जूनियर हाईस्कूल में छठीं क्लास के नए बच्चे सिर्फ स्कूल में ही ब्लैकबोर्ड पर अपनी पढ़ाई करते है। अभी तक सरकार की ओर से जूनियर हाईस्कूल में सातवीं व आठवीं क्लास के बच्चो के पास ही किताबे पहुँची है. सरकारी स्कूलों की हालत ये है कि बच्चो को फटी पुरानी चटाई पर बैठकर पढ़ना होता है।
अफसरों को अनुदान का इंतज़ार:
ऐसा नही है कि बड़े अफसरों को इसकी जानकारी न हो, लेकिन सब कुछ मालूम होते भी अधिकारी सिर्फ सरकार की ओर से मिलने वाले अनुदान की इंतजार में है। ताकि बच्चो को उनके उज्ज्वल भविष्य के लिए किताबे, बैग्स, ड्रेस आदि चीजे उपलब्ध कराई जा सकें।