उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर में रहने वाले राजकुमार चुनचुन नाम के शख्स को महज 14 साल की उम्र में अदालत ने उम्रकैद की सजा सुना दी थी। चुनमुन के ऊपर यह आरोप लगाया गया था कि उसने अपने गांव के दबंग प्रधान के मर्डर केस में हत्यारों की मदद की। जिस वक्त उनके ऊपर यह आरोप लगाया गया उस वक्त वो 11वी कक्षा में पढ़ते थे। उन्हें पढ़ने का बेहद शौक था लेकिन कानूनी कार्यवाहियों में फंसने की वजह से उन्हें अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़ देनी पड़ी। पहली बार जेल जाने के बाद कुछ दिनों के लिए वो जमानत पर रिहा भी हुए लेकिन आजादी शायद उनके तकदीर में नहीं थी। जिस प्रधान की हत्या करने के केस में उनपर आरोप लगायें गये थे उसी प्रधान के बेटे की झूठी गवाही की वजह से अदालत ने उन्हें उम्रकैद की सजा सुना दी। जेल की सजा से खुद को बचाने के लिए चुनमुन नौ साल तक देश के विभिन्न शहरों में छिपते रहे। नौ सालों तक छिपने के बाद आखिरकार 2002 में उन्होंने आत्मसर्मपण कर दिया
जेल में रहने के दौरान उन्हें जिन्दगी के तमाम अनुभव प्राप्त हुए जिसने उन्हें फिर किताबे पढ़ने और कलम उठाने के लिए प्ररित किया। वर्ष 2004 में ही जेल में रहने के दौरान उन्होंने अपनी पहली किताब लिखी जिसका नाम अब तो चेतो है। इस किताब को लोगो ने काफी पसन्द किया। अपनी पहली किताब की सफलता के बाद उन्होंने अपना पूरा ध्यान किताबो को लिखने में लगा दिया। उनकी अन्य किताबे बाबासाहब एक सौ एका, मोक्षांजली, भ्रष्टाचार मुक्तिमंत्र, लक्ष्य और कांशीराम चालीसा आदि हैं। अपनी किताबों की वजह से उन्होने जेल में रहकर ही 21 से ज्यादा सम्मान प्राप्त किये।
चुनमुन ने अपनी कलमकारी के दम पर उत्तर प्रदेश के राज्यपाल रामनाइक को भी प्रभावित किया। वो प्रदेश के राज्यपाल के द्वारा भी सम्मानित किये गये।
शब्दों को जुनून की हद तक चाहने वाले इस कैदी को 2011 में हाईकोर्ट ने जमानत दे दी। चुनमुन आज जेल के उन कैदियों के जीवन को सुथारने के प्रयासों में लगे हुए है जिन्होंने एक लम्बी उम्र जेल में काटकर अपने विचारों में परिवर्तन लाने का प्रयास किया है।