बसपा सुप्रीमो मायावती के बारे में जैसा कि जाना जाता है कि विरोधी रणनीति बनाने में वक्त लेते हैं और वह अपना दांव चलकर आगे बढ़ जाती हैं। मायावती ने लोकसभा चुनाव के बाद विधानसभा की खाली हो रही सभी 11 सीटों के उपचुनाव लड़ने का एलान कर फिर यही साबित किया है।
उन्होंने समाजवादी पार्टी की रणनीति पर पानी फेर दिया है। मायावती ने गठबंधन को बिना ध्यान में रखे सभी 403 विधानसभा सीटों पर भाईचारा कमेटियां गठित कर चुनावी तैयारी का आह्वान कर सपा पर और भी दबाव बढ़ा दिया है। इसी के साथ गठबंधन के भविष्य पर खतरा नजर आने लगा है।
बसपा के एक जिम्मेदार नेता ने बताया कि समाजवादी पार्टी को उम्मीद थी कि पूर्व की तरह बसपा विधानसभा की रिक्त हो रही 11 सीटों के उपचुनाव नहीं लड़ेगी। इससे सपा को उपचुनावों में बसपा का एकतरफा समर्थन हासिल हो जाएगा और वह सत्ताधारी दल भाजपा को अच्छी चुनौती देने में सफल होगी।
सपा मुखिया अखिलेश यादव तय रणनीति के तहत हार के कारणों पर शायद इसी वजह से अब तक बोलने से बचते रहे हैं। इस नेता के मुताबिक सपा उपचुनाव के नतीजों के बाद गठबंधन के भविष्य पर अपने पत्ते खोलने की योजना बना रही थी।
इसके अलावा लगातार यह संकेत मिल रहे हैं कि सपा के भीतर शिवपाल यादव को फिर से पार्टी में वापस लेने का दबाव है। शिवपाल चुनाव भले नहीं जीते लेकिन कई सीटों पर गठबंधन उम्मीदवारों के हारने में भूमिका निभाई है।
यह बात भी जानकारी में है कि सपा के लोग अपने नेतृत्व पर विधानसभा का 2022 का आमचुनाव अपने बलबूते लड़ने का दबाव बना रहे हैं। ऐसा भी कहा जा रहा है कि दलितों ने सपा को वोट नहीं दिया, जबकि ऐसा नहीं है। ऐसे में सपा अपनी रणनीति बनाए, उसके पहले ही बसपा नेतृत्व ने अपनी रणनीति पर काम शुरू कर दिया है। गठबंधन कायम रहते हुए उपचुनाव की सभी सीटों पर लड़ने का संकेत बहुत अहम है।
क्या गठबंधन बचाने की कोशिश करेंगे अखिलेश
बसपा के एक नवनिर्वाचित सांसद ने नाम न छापने के आग्रह के साथ बसपा की रणनीति का संकेत किया। सांसद के मुताबिक, बहनजी ने गठबंधन तोड़ने का एलान नहीं किया है। केवल उपचुनाव की सभी सीटों पर प्रत्याशी उतारने की बात कही है।
उन्होंने अभी आगे गठबंधन के चुनाव नतीजों की समीक्षा की बात कही है। यह सपा पर निर्भर करता है कि वह उपचुनाव में अपने प्रत्याशी उतारकर गठबंधन खत्म करने की ओर कदम बढ़ाती है या जिस तरह लोकसभा के गोरखपुर, फूलपुर व कैराना उपचुनावों में बसपा ने सपा को एकतरफा समर्थन दिया था, उसी तरह सपा विधानसभा उपचुनावों में बसपा को समर्थन का एलान कर सकारात्मक कदम उठाने का प्रयास करती है।
क्या विधानसभा उपचुनाव में सपा के प्रत्याशी न उतारने से 2022 तक गठबंधन बढ़ जाएगा, इस सवाल पर सांसद ने कुछ भी कहने से इनकार कर दिया। कहा, इसका फैसला तो बहनजी चुनाव नतीजों की पूरी तरह से समीक्षा करने के बाद ही करेंगी।
चुनाव नतीजे आने के बाद सपा मुखिया अखिलेश यादव ने बहनजी से कोई संपर्क नहीं किया है। बताते चलें अखिलेश यादव लोकसभा चुनाव के एग्जिट पोल के संकेत सामने आने के बाद मायावती से आखिरी बार मिले थे।
सपा की कमजोरी उजागर करना माया का मकसद
विश्लेषकों का कहना है कि मायावती गठबंधन पर अपने संकेतों से यह संदेश देने की कोशिश कर रही हैं कि बसपा का वोट बैंक अभी भी अपनी जगह बना हुआ है। मुस्लिमों का समर्थन मिलने से पार्टी 10 सीटें जीती है। इस जीत में सपा के यादव बेस वोट का ज्यादा योगदान नहीं है।
दूसरी ओर, माया यह भी बताना चाहती हैं कि सपा का अपने यादव बेस वोट पर अब पहले जैसा एकाधिकार नहीं रहा। कन्नौज, बदायूं और फिरोजाबाद में यादव परिवार के सदस्यों की हार और मैनपुरी में मुलायम सिंह यादव की वोट का मार्जिन जबर्दस्त तरीके से गिर जाना इसका प्रमाण है।
पूरे चुनाव के दौरान गठबंधन की लीडर की तरह पेश आईं मायावती
लोकसभा चुनाव के दौरान सपा-बसपा-रालोद के बीच गठबंधन में मायावती हमेशा लीडर की तरह पेश आईं। गठबंधन के एलान से सीटों के बंटवारे तक बसपा की छाप नजर आई। इसके बाद जब चुनाव अभियान शुरू हुआ तो मायावती ने साझा रैलियों में गठबंधन के नेताओं अखिलेश यादव व अजित सिंह के बीच अपनी कुर्सी रखवाकर सीनियर पार्टनर के रूप में खुद को पेश किया।
चुनाव के दौरान सहारनपुर में सबसे पहले मुसलमानों से वोट की अपील कर भले ही उन्होंने प्रचार पर प्रतिबंध झेला, लेकिन मुसलमानों का समर्थन जुटाने की होड़ में अखिलेश से आगे नजर आईं। अब गठबंधन के बावजूद सभी 11 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव लड़ने का संकेत कर फिर रणनीति में आगे निकल गई हैं।
माया के निशाने पर गठबंधन…यहां दिखा संपूर्ण एका
आजमगढ़। सांसद बनने पर लोकसभा के लोगों का आभार प्रकट करने के लिए सोमवार को सपा अध्यक्ष जनपद में थे। आईटीआई मैदान में आयोजित जनसभा में सपा-बसपा गठबंधन के सारे नेता और कार्यकर्ता मौजूद थे। जनता का आभार प्रकट करने के साथ ही अखिलेश यादव और लालगंज सांसद संगीता आजाद का स्वागत किया जा रहा था। वहीं, दूसरी ओर बसपा प्रमुख मायावती ने दिल्ली में गठबंधन के मोह से बाहर निकलकर विधानसभा उपचुनाव अकेले लड़ने की घोषणा कर दी। दो स्थानों पर दो संदेश चर्चा का विषय बने हैं।