बुन्देलखण्ड के चित्रकूट जिले में ग्रामीण गड्ढे का पानी प्रयोग करने के लिए मजबूर हैं। मौजूदा समय मे जिले में पेयजल संकट काफी ज्यादा है। आलम ये है कि काफी दूर जाकर लोगो को पानी लाना पड़ रहा है। उससे भी उनकी पानी की जरूरत पूरी नही हो रही. जिसके चलते वे गड्ढों में भरे गंदे पानी को इस्तेमाल करने के लिए लाचार है. ताजा मामला चित्रकूट के मानिकपुर- कर्वी संपर्क मार्ग के चौकी पुरवा गाव का है.
बच्चें गंदा पानी पीने के लिए विवश :
यह कहावत तो आपने सुनी ही होगी.. ‘बिन पानी सब सून’ यह कहावत बुन्देलखंड के लिए एक दम सटीक बैठती है. बल्कि बिन पानी नही है कोई जीवन, यह कहना ज्यादा ठीक लगता है. क्योंकि बुन्देलखंड की स्थिति कुछ ऐसी ही है. बुन्देलखंड में जल संकट की समस्या बढ़ती ही जा रही है. सबसे ज्यादा समस्या तो उत्तर प्रदेश की सीमा पर सटे चित्रकूट की है.
चित्रकूट, श्रीराम की तपोभूमि जो प्राकृतिक खनन से परिपूर्ण थी, आज इंसान की मूलभूत जरूरत को पूरा करने मे भी सक्षम नही है. सूबे में सूखे का आलम बढ़ता जा रहा है. मन्दाकिनी जैसी नदियाँ भी क्षेत्र के लोगों का पोषण करने में असक्षम है. बारिश की स्थिति भी खराब है, बची कुची कसर प्रदूषण पूरी कर देता है.
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सूबे में प्रशासनिक स्तर पर भी थोड़ी समस्याएं है. जिन क्षेत्रों में पानी पहुचायां जा सकता है, वहां की पाइपलाइन जगह जगह फटी होती है, जिससे पानी लोगों तक पहुच नही पाता.
बुन्देलखंड के निवासियों की स्थिति का चित्रांत करूँ, तो उनका हाल जान कर मन में सवाल आना लाज़मी होगा कि क्या हम उसी देश में रहते है जो समुद्र किनारे बसा है. चित्रकूट के जल संकट को इस गंभीरता से समझिए कि माताएं अपने बच्चों को खुद ऐसा गन्दा पानी पिलाती है, जिससे बच्चों के स्वास्थ्य, उनके जीवन पर घातक प्रभाव पड़ेगा. यह सब जानते हुए भी उन्हें ऐसा करना पड़ता है, क्योंकि पानी की समस्या ने इस कदर क्षेत्र के लोगों को बेहाल कर रखा है कि मजबूरन उन्हें गंदे और प्रदूषित पानी का इस्तेमाल करना पड़ता है.
प्रदूषण के चलते नदी के पारंपरिक जलस्रोत खत्म हो रहे हैं. दर्जनों गांवों के लोग पानी को लेकर परेशान हैं. सबसे ज्यादा समस्या बोरिग वाले क्षेत्रों में है. वहां अपार जल संकट है. जगह-जगह टूटे पाइप और पानी का रिसाव लोगों तक पानी की पूर्ति करने में असमर्थ हो जाता है. महिलाएं इसी गंदे पानी से अपने बच्चो को नेहलाती भी है और घर के बाकि काम भी करती है. यहाँ के लोग ना केवल रोज मर्रा कि जरूरतों के लिए बल्कि पीने के लिए भी गन्दा पानी ही इस्तेमाल करते है. ये गंदा पानी गड्डों में भरा होता है, जिसे निकाल के लोग प्रयोग करते है. गड्डों में यह पानी फटे पाईप लाइन से इकठ्ठा हुआ होता है.
बुन्देलखंड में जल संकट किस हद्द तक बढ़ चुका है इस बात का अंदाजा इस तरह लगाया जा सकता है कि क्षेत्र के लोग गड्डों में भरे गंदे पानी पीने तक को मजबूर है. चित्रकूट में जल संकट के चलते लोगों की ज़िन्दगी बेहाल हो गयी है. कहा जाता है कि जहाँ कभी श्री राम ने भरत जी के लिए अपने तीन से निशाना भेद कर धरती में नदी निकाल दी थी, वही तपो भूमि आज पानी की मूलभूत जरूरत पूरा करने में भी समर्थ नही हैं.
दिन पर दिन सुखा पड़ता जा रहा है. और जैसे जैसे गर्मी बढ़ रही है, सूबे का हाल और बद्दतर होता जा रहा है. धरती रेगिस्तान की तरह आग उगल रही है, वहीं आसमान भी कम सितम नही ढाह रहा. इन सब के बीच प्राकृतिक मूल्यों के धनी गाँव अब गरीब से जान पड़ते है.
इस तरह के हालातों में वहां के लोग कैसे बसर कर रहे है, इसकी तो बस हम कल्पना ही कर सकते है. ऐसी जल समस्या क्षेत्र के लोगों के लिए कई और समस्याएं पैदा कर रही है. जहाँ एक ओर जल संकट का सीधा असर लोगों के स्वास्थ्य पर पड़ रहा है, वहीं दूसरी ओर लोग अपना घर छोड़ क्षेत्र से पलायन करने को भी मजबूर है.
एक तो पानी की पूर्ति हो नही पा रही. दूसरी, गाँव वालों को पानी लेने के लिए कोसों दूर चल कर जाना पड़ता है. उस पर भी उनके दैनिक जीवन के लिए मतलब भर का पानी मिल जाएँ इसकी भी उम्मीद कम रहती है. इस स्थिति में जिस तरह का जल लोगों को मिलता है, लोग उसे ही प्रयोग करने को मजबूर है. यह जानते हुए भी कि वह पानी उनके स्वास्थ्य के लिए कितना घातक है. सबसे ज्यादा प्रभावित बच्चे हो रहे है.
गड्डों में भरा गन्दा पानी चरम रोगों से लेकर डायरिया, पेट की बीमारियों जैसे कई समस्याओ को जन्म देता है. बच्चे जल्दी इन बीमारियों का शिकार हो जाते है. और स्थिति तब और खराब हो जाति है, जब यह जानते हुए भी कि बिमारी पानी की वजह से ही हुई है, वह फिर भी उसी पानी का इस्तेमाल करने पर मजबूर रहते है.