भाजपा अगर इनमें ज्यादातर सीटें जीतती है तो साबित हो जाएगा कि वह जनता की पहली पसंद बनी हुई है। ऐसा न होने पर 2022 के लिए इस पार्टी को नए सिरे से मेहनत की जरूरत होगी। नतीजे यह भी बताएंगे कि जनता सपा-बसपा में किसे भाजपा के विकल्प के रूप में देख रही है।
दरअसल, लंबे समय से उपचुनाव लड़ने से परहेज करने वाली बसपा ने इन चुनावों में लड़ने का फैसला कर इसे महत्वपूर्ण बना दिया है। लोकसभा चुनाव नतीजों के बाद बसपा अध्यक्ष मायावती ने जिस तरह यह कहकर अखिलेश यादव पर निशाना साधा था कि ‘सपा अध्यक्ष ने ज्यादा मुस्लिमों को टिकट न देने का संदेश भेजवाया था’। उससे उपचुनाव के नतीजे एक तरह से मुस्लिमों के रुख की कसौटी बन गए हैं। नतीजों से पता चलेगा कि माया का तीर निशाने पर बैठा है या नहीं। मुसलमानों की प्रदेश में पहली पसंद सपा है या बसपा।
ये है वजह
उन्होंने मुसलमानों को यह संदेश देने की भी कोशिश की है कि सपा का साथ देकर भाजपा को नहीं रोका जा सकता। भाजपा को रोकने के लिए बसपा के साथ आना होगा। इसीलिए वे अपने बयानों से लगातार यह समझाने की कोशिश कर रही हैं कि एससी और मुस्लिम गठजोड़ से बसपा 10 सीटें जीत गईं जबकि सपा को सिर्फ पांच सीटें मिलीं। उनमें भी तीन मुस्लिम।
सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने भले ही मायावती के आरोपों पर कोई जवाब न दिया हो, लेकिन वे उपचुनाव के जरिए वापसी कर मायावती के आरोपों और दावों को झुठलाने की कोशिश जरूर करेंगे। यह तो चुनाव नतीजे ही बताएंगे कि उनकी पार्टी का आधार यादव वोट मजबूती से उनके साथ है या भाजपा की सेंधमारी की खबरें सही हैं।
नंबर दो की लड़ाई
विधानसभा चुनाव में मुस्लिम मतदाताओं का रुझान सपा की ओर था। पर इस बार के लोकसभा चुनाव में सपा के साथ गठबंधन करके उतरी बसपा को प्रदेश में 10 सीट और सपा को पांच सीटें ही मिलीं।
माया को संभवत: यह लग रहा है कि सपा अध्यक्ष यादव मतों को ट्रांसफर कराने की ताकत खो चुके हैं, यह बात मुसलमानों के दिमाग में बैठा दी जाए तो मुस्लिम वोट बसपा को मिल सकते हैं। इस तरह बसपा भाजपा के मुकाबले नंबर दो की पार्टी हो सकती है। हालांकि उपचुनाव के नतीजे तय करेंगे कि प्रदेश में भाजपा के मुकाबले नंबर दो की लड़ाई में सपा है या बसपा।