राजधानी लखनऊ में सीवर निस्तारण के नाम पर करोड़ों रुपए खर्च हो रहे हैं, इसके बाद भी गोमती में दूषित पानी गिर रहा है। हालत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि केवल 185 एमएलडी सीवर का ही हिस्सा निस्तारण हो रहा है। जबकि 490 एमएलडी सीवर सीधे गोमती में गिर रहा है। इससे नदी गंदी बनी हुई है। जगह-जगह जलकुम्भी, गंदे और बदहाल होते घाट, संकरी होती जलधार से आदि गंगा गोमती की सूरत साल दर साल बिगड़ती जा रही है।
यूपी में जितनी सरकारें बदलीं, उतनी तेज़ी से गोमती की सूरत नहीं बदली। सरकारी ऑफिसों में बैठकर लोग गोमती को निर्मल करने की बातें तो करते हैं, मगर वास्तविकता का अंदाजा गोमती की बदहाली को देखकर लगाया जा सकता है। हालांकि, प्रदेश सरकार इन दिनों गोमती तट को सुन्दर बना रही है, साथ ही गोमती से सिल्ट हटाने का भी काम किया गया। इसके बावजूद गोमती नाले की तरह सिमटती जा रही है।
नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) की शहरी स्थानीय निकायों पर वित्तीय वर्ष 2014-15 के व्यापार लेखा रिपोर्ट में कहा गया कि लखनऊ में सीवर निस्तारण की स्थिति बहुत खराब है। इसके खर्च के लिए खर्च बजट देखें तो 2010 से 15 के बीच 122 कामों पर 438 करोड रुपए किए गए। लेकिन इसके बाद भी सीवर के पानी के लिए लाइन नेटवर्क और सेवा कर की वसूली क्षमता बढ़ाने में लखनऊ नगर निगम फेल ही रहा।
रिपोर्ट में कहा गया है कि लखनऊ से कुल 675 एमएलडी से निकलता है। इसके निस्तारण को केवल दौलतगंज में 70 एमएलडी और भरवारा में 345 एमएलडी क्षमता के प्लांट है। मौजूदा समय में दौलतगंज में तो पूरा पूरी क्षमता के प्लांट काम कर रहा है, लेकिन भरवारा में 115 एमएलडी ही निस्तारित किया जा रहा है। ऐसे में करीब 490 एमएलडी सीवर गोमती में गिर रहा है। भरवारा में केवल एक ही यूनिट से काम करने से ऐसे हालात बने हुए हैं।
कैग रिपोर्ट में जलकल विभाग के शिकायत निवारण सिस्टम पर भी सवाल उठाए गए हैं। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि जलकल लखनऊ के दस्तावेजों से पता चला है कि शिकायतें दर्ज तो यहां की जाती हैं। लेकिन के निस्तारण के लिए कोई सिस्टम नहीं है। ऐसे में सही तरीके और क्षमता से शिकायतों का निस्तारण भी जलकल नहीं कर पाता।
प्रदेश सरकार ने 10 से अधिक आबादी वाले शहरों के लिए आग से खतरे से प्रतिक्रिया एवं सम्मान योजना लागू की। इसमें लखनऊ नगर निगम को बजट भी उपलब्ध कराया गया। इसके बाद भी निगम ने काम नहीं कराया। 2011 से 15 के बीच लखनऊ को 10.56 करोड़ रुपए मिले। इसमें से 6.27 करोड़ रुपए हाइड्रोलिक प्लेटफार्म खरीदने के लिए महानिदेशक अग्निशमन सेवा के माध्यम से खर्च होने थे। 599 करोड़ खर्च भी हुए लेकिन उपकरण उपयोग नहीं हो सके।
वहीं 2.92 करोड़ रुआपये जलकल विभाग को हाइटेंड पॉइंट लगाने के लिए दिए गए। कैग रिपोर्ट के अनुसार, अनुशंसा की गई की विशिष्ट अनुदान के उपयोग के लिए शर्तों का सख्ती से पालन किया जाना चाहिए। लोगों के हित में ऐसी योजनाओं पर काम होना जरूरी है। कैग ने अब मुख्य अग्निशमन अधिकारी का उत्तरदायित्व तय किया है। विवादित जमीन होने से जलकल काम नहीं कर सका।
कैग रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि नगर पंचायत महोना के करीब 47.87 लाख खर्च कर 36 दुकानें और हाल बनाए गए, लेकिन इनके आवंटन नहीं किए जाने से निवेश का लाभ नगर पंचायत को नहीं मिला। एकीकृत विकास योजना में प्रदेश सरकार ने यह बजट नगर पंचायत को दिया था। 22 दुकानों का निर्माण कराकर ठेकेदार को 38 लाख रूपय का भुगतान भी कर दिया गया। इसके बाद 14 दुकानों का निर्माण ही पूरा नहीं हो सका। 2 दुकानों पर तो अब पुलिस ने चौकी के लिए कब्जा कर रखा है। नगर पंचायत ने कैग को बताया कि नीलामी प्रक्रिया एक बार की गई। लेकिन संपत्तियों को बेचा नहीं जा सका। रिपोर्ट में कहा गया कि 7 साल में आवंटन नहीं होने से अब इन दुकानों की स्थिति जर्जर हो रही है।
कैग ने रिपोर्ट में आपत्ति की है कि प्रदेश सरकार से आदेश के बाद भी नगर निगम और स्थानीय निकाय बचत खातों से मिल रहे ब्याज को अपने खर्च के लिए कर रहे हैं। शासन आदेश के मुताबिक यह ब्याज सरकारी खजाने में जमा होना चाहिए था। लेकिन लखनऊ नगर निगम ने भी खुद ऐसा नहीं किया। वर्ष 2014-15 में नगर निगम में 96.14 करोड रुपए ब्याज से कमाए थे। रिपोर्ट के मुताबिक, 2010 से 15 के बीच लखनऊ नगर निगम को शहर से करीब 633.49 करोड रुपए की वसूली गृहकर के रूप में करनी थी। इसकी जगह केवल 494.33 करोड़ की वसूली ही हो पाई। 139.16 करोड रुपए का गृहकर 31 मार्च 2015 के बाद आया था।