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नियंत्रक व महालेखा परीक्षक (cag report ) की रिपोर्ट ने पिछली सरकारों के कार्यकाल में पुलिस को मॉडर्न बनाने के दावों को लेकर जो खुलासे किये हैं, हैरान करने वाले हैं. 2011-16 में आवंटित बजट के खर्च के आडिट में कैग को घोर लापरवाही पायी गई है. यूपी पुलिस किस प्रकार के हथियार इस्तेमाल करती ये जानकर आपको हैरानी होगी। शायद यही वजह है कि अत्याधुनिक हथियारों का प्रयोग करने वाले बदमाशों के सामने पुलिस अक्सर बेबस और लाचार नजर आती है.
कैग की रिपोर्ट में खुलासा:
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कबाड़ के हथियारों से चला रहे हैं काम:
- यूपी पुलिस कबाड़ के हथियारों से काम चला रही है.
- 48 प्रतिशत पुलिस बल प्वाइंट 303 बोर राइफल का अभी भी प्रयोग कर रहा है.
- इस हथियार को 20 साल पहले ही गृह मंत्रालय ने अप्रचलित घोषित कर दिया था.
- 43 जिलों में पुलिस के वाहनों की कमी.
- बावजूद इसके पूर्व सरकारों द्वारा 10 बुलेट प्रूफ टाटा सफारी व 8 सामान्य सफारी वाहनों की खरीद की गई थी.
- पूर्व मुख्यमंत्री की सुरक्षा के नाम पर 3.66 करोड़ मर्सिडीज मॉडल एम-गार्ड गाड़ियों पर खर्च.
- फिलहाल राज्य में 1460 पुलिस थाने हैं जो 1115 (44 प्रतिशत) कम हैं.
- ग्रामीण क्षेत्रों में 41 प्रतिशत और नगरीय क्षेत्रों में 51 प्रतिशत पुलिस थानों की कमी रिपोर्ट में बताई गई है.
- मार्च 2015 तक 1,25,998 आवासों की आवश्यकता के सापेक्ष 59453 की कमी.
- 68874 कर्मियों की बैरक की आवश्यकता के सापेक्ष 18259 कर्मियों के लिए बैरक की कमी.
- वर्ष 2011-16 के दौरान केवल 44 फीसदी जिलों में ही आधुनिक उपकरणों से युक्त मोबाइल फोरेंसिक वैन.
- आवंटित बजट का 55 फीसदी हिस्सा भी नहीं हुआ खर्च.
- चार मौजूदा फोरेंसिक जांच प्रयोशालाओं में तकनीकी स्टाफ भारी कमी.
फोरेंसिक लैब में टेक्निकल टीम की भारी कमी:
- लखनऊ, आगरा व वाराणसी की लैब में 6617 सैंपल जांच के लिए लंबित.
- सरकार ने एटीएस कमांडो के पद नहीं किए मंजूर.
- पुलिस की एटीएस के अधीन 2000 कमांडो की एक यूनिट तैयार करने की योजना खटाई में.
- जून 2011 में कमांडो ट्रेनिंग स्कूल की मंजूरी दी गई लेकिन पिछले तीन साल में ये तैयार नहीं हो सकी.
- इस योजना पर 12.49 करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च हुआ.
- वहीँ बजट की बात करें तो वर्ष 2011-16 के बीच आधुनिकीकरण के लिए 462.87 करोड़ आवंटित किये गए.
- तो सरकार ने संसाधनों से 2276.31 करोड़ के बजट की व्यवस्था की थी.
- लेकिन आडिट में पाया गया कि आधुनिकीकरण के दस साल बाद भी पुलिस उन हथियारों से काम चला रही है जो प्रचलित नहीं हैं.
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