समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल के बीच शुक्रवार को उपचुनावों को लेकर बनी सहमति में शनिवार को थोड़ा बदलाव हो गया। रालोद अब कैराना लोकसभा सीट पर उपचुनाव लड़ेगा जबकि नूरपुर विधानसभा सीट पर सपा प्रत्याशी उतारेगी। पूर्व सांसद तबस्सुम मुनव्वर रालोद और नईमुल हसन सपा उम्मीदवार होंगे। इसकी अधिकृत घोषणा रविवार को होने की संभावना है।
सपा मुखिया अखिलेश यादव और रालोद उपाध्यक्ष जयंत चौधरी के बीच शुक्रवार को लंबी बातचीत में तय हुआ था कि कैराना से सपा अपना प्रत्याशी उतारेगी और नूरपुर में रालोद चुनाव लड़ेगा। शनिवार को दोनों दलों के नेताओं में उच्चस्तरीय बातचीत के बाद कैराना सीट रालोद के लिए छोड़ने और नूरपुर में सपा को चुनाव लड़ाने पर सहमति बनी। यह भी तय हुआ कि दोनों दलों के नेता एकजुट होकर पूरी ताकत से उपचुनाव लड़ाएंगे।
कैराना से तबस्सुम मुनव्वर रालोद की प्रत्याशी होंगी। वे 2009 में इसी सीट से बसपा के टिकट पर सांसद चुनी गई थीं। उनके बेटे नाहिद हसन कैराना से सपा के विधायक हैं। तबस्सुम के मरहूम पति मुनव्वर हसन चारों सदनों के सदस्य रह चुके हैं। तबस्सुम सपा से टिकट की दावेदार थीं, लेकिन रालोद के हिस्से में सीट जाने पर वह रालोद की प्रत्याशी होंगी।
नूरपुर सीट पर सपा के नईमुल हसन उम्मीदवार होंगे। वह पिछले दो चुनाव यहां से लड़ चुके हैं। 2017 के विधानसभा चुनाव में इस सीट पर भाजपा से लोकेंद्र सिंह विजयी रहे थे। उन्हें 79,173 वोट मिले थे। सपा के नईमुल हसन को 66,436 और बसपा के गौहर इकबाल को 46 हजार वोट मिले थे।
जाट-मुस्लिम समीकरण बनाने की चुनौती
कैराना उपचुनाव में रालोद को सीट मिलने से उसके जाट-मुस्लिम समीकरण का इम्तिहान होगा। यह वही इलाका है जहां 2013 में दंगों से जाटों व मुसलमानों की एकता में दरार पड़ गई थी। रालोद ने मुस्लिम प्रत्याशी उतारकर यह संदेश देने की कोशिश की है कि पश्चिमी यूपी में जाट और मुस्लिम करीब आ गए हैं। पांच साल पहले टूटा सामाजिक ताना-बाना फिर बहाल हुआ है।
इसके लिए पिछले एक-डेढ़ साल में रालोद अध्यक्ष अजित सिंह व जयंत चौधरी ने काफी मेहनत भी की है। उपचुनाव के नतीजे बताएंगे रालोद जाट वोट बैंक को तबस्सुम के पक्ष में कितना ट्रांसफर करा पाएगा। यदि उपचुनाव में रालोद प्रत्याशी की जीत हुई तो विपक्षी गठबंधन पश्चिमी यूपी में 2019 में भाजपा के सामने कड़ी चुनौती पेश कर सकता है।
भाजपा को वोटों के ध्रुवीकरण की आस
रालोद से तबस्सुम मुनव्वर को उम्मीदवार बनाए जाने से भाजपा को इस सीट पर वोटों के ध्रुवीकरण की उम्मीद बढ़ी है। दरअसल, कैराना सीट पर मुस्लिम मतों की संख्या 5 लाख से ज्यादा है। लगभग सवा दो लाख दलित, डेढ़ से पौने दो लाख जाट, सवा लाख गुर्जर, एक लाख कश्यप मतदाता हैं। भाजपा ने हिंदुओं के पलायन का मुद्दा कैराना से ही उठाया था। इस नाते भी भाजपा इस सीट को हर हाल में जीतना चाहेगी।
भाजपा के पास इस इलाके में गन्ना राज्यमंत्री सुरेश राणा समेत कई हिंदूवादी चेहरे हैं जो अपने बयानों से सनसनी फैलाते रहे हैं। राणा इसी संसदीय क्षेत्र की थाना भवन सीट से विधायक हैं। जयंत चौधरी के चुनाव नहीं लड़ने से भाजपा खुश है, उसे लगता है तबस्सुम को उम्मीदवार बनाए जाने से ध्रुवीकरण में आसानी होगी।
तबस्सुम के सामने भाजपा का चक्रव्यूह को भेदने की चुनौती
कैराना उप चुनाव में गठबंधन की प्रत्याशी तबस्सुम के सामने अपने मायके नकुड़ और गंगोह क्षेत्र में भाजपा के चक्रव्यूह को भेदने की चुनौती रहेगी। पिछले दो विधानसभा चुनावों से इन दोनों सीटों पर भाजपा ही जीती हैं। 2014 के लोकसभा में चुनाव में उनके बेटे नाहिद हसन को अपने ननिहाल में हार का स्वाद चखना पड़ा था, मगर इस बार समीकरण उलट है। रालोद, बसपा और सपा का समर्थन है। कांग्रेस उपाध्यक्ष इमरान मसूद जिस तरह उनके खिलाफ झंडा बुलंद किए हैं, उसे नजरअदांज नहीं किया जा सकता है। उनका दोनों ही सीटों पर अच्छा दबदबा है।
कैराना लोकसभा क्षेत्र में शामली जिले की तीन विधानसभा शामली, कैराना और थानाभवन के साथ सहारनपुर की नुकुड़ और गंगोह सीट भी शामिल है। कैराना में तबस्सुम की ससुराल है और वह नकुड़ विधानसभा के दुमझेड़ा गांव की बेटी हैं। 2009 में तब्बसुम सांसद के रूप में इस इलाके का प्रतिनिधित्व कर चुकी हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में तबस्सुम के बेटे नाहिद हसन को भाजपा के हुकुम सिंह ने हरा दिया था।
वहीं, 2017 के विधानसभा चुनाव में नकुड़ से भाजपा के धर्म सिंह सैनी और गंगोह से प्रदीप चौधरी ने जीत हासिल की थी। ऐसे में मायके की दोनों विधानसभा चुनाव में वोट का प्रतिशत बढ़ाने की चुनौती रहेगी, क्योंकि सत्तारूढ़ भाजपा ने दोनों विधानसभाओं में कई माह से पूरी ताकत झोंक रखी है। भाजपा तबस्सुम की घेराबंदी में कोई कसर छोड़ने वाली नहीं है। इधर, कांग्रेस के पूर्व विधायक इमरान मसूद पहले से तबस्सुम की मुखालफत कर रहे हैं।
विरोध करने वालों के लिए नहीं मांगेगे वोट
कांग्रेस के प्रदेश उपाध्यक्ष और पूर्व विधायक इमरान मसूद ने कहा कि जो लोग उनका विरोध करते रहे हैं, उनके लिए वह वोट मांगने नहीं जाएंगे। मसूद ने कहा कि पिछले विधानसभा चुनाव में नाहिद हसन ने उनके खिलाफ चुनाव प्रचार किया था। वह उसे भूलने वाले नहीं हैं। वह कांग्रेस पार्टी के अनुशासित सिपाही है। बाकी वह पार्टी के फैसले के अनुरूप काम करेंगे।