देश में लोकतंत्र को मजबूत बनाने के लिए छावनी के हजारों मतदाता अपना सांसद और विधायक तो चुन सकेंगे। लेकिन, क्षेत्रीय समस्या को दूर करने के लिए अपने पसंद का सदस्य चुनने के लिए वोट नहीं डाल सकेंगे। छावनी परिषद प्रशासन ने इस बार अपनी मतदाता सूची से करीब 13 हजार मतदाताओं के नाम काट दिए हैं। छावनी परिषद 15 सितंबर को मतदाता सूची का प्रकाशन करेगा। इससे पहले मतदाताओं को अपना दावा करने का एक मौका दिया गया है। वहीं ऑल इंडिया छावनी परिषद महासंघ ने रक्षा मंत्रालय पर आदेश की सही व्याख्या न करने का आरोप लगाते हुए इसकी शिकायत दर्ज करा दी है।
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रक्षा मंत्री को लिखा गया पत्र
- सभी छावनी परिषद हर साल जुलाई से अगस्त के बीच अपनी मतदाता सूची तैयार करती हैं।
- छावनी परिषद एक्ट 2006 में छह माह से लगातार रहने वाले व्यक्ति को मतदान करने का अधिकार होता है।
- वहीं सेना के जवानों को भी उनकी बैरक नंबर के आधार पर वोट डालने की विशेष सुविधा होती है।
- पिछले दिनों रक्षा मंत्रालय ने लखनऊ सहित देश की सभी छावनियों आदेश दिए थे।
- उनके यहां मतदाता सूची बनाते समय ऐसे मतदाताओं के नाम काटने के आदेश दिए थे।
- जिनकी संपत्ति पर छावनी परिषद का सर्वे नंबर दर्ज नहीं है।
- ऐसे में बिना सर्वे नंबर दर्ज कराए रहने वाले करीब 13 हजार मतदाताओं के नाम सूची से काट दिए।
- इसमें सबसे अधिक वार्ड नंबर आठ के करीब चार हजार मतदाताओं के नाम उड़ा दिए गए।
- जिसमें पूर्व उपाध्यक्ष रतन सिंघानियां का नाम भी शामिल है।
- वहीं वार्ड संख्या सात से करीब 1100 और वार्ड छह से लगभग 2500 मतदाताओं के नाम काट दिए गए।
साबित करना होगा अपना दावा
- अपना नाम मतदाता सूची में दर्ज कराने के लिए मतदाताओं को अपना स्वीकृत बिल्डिंग प्लान या फिर मकान पर दर्ज सर्वे नंबर के दस्तावेज दिखाने होंगे।
- पूर्व उपाध्यक्ष रतन सिंघानियां ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट के जिस आदेश का हवाला देकर मतदाता सूची से काटने के आदेश दिए हैं।
- उस आदेश की सही व्याख्या ही नहीं की गई है।
- सुप्रीम कोर्ट ने अपने 60 पेज के आदेश में कहा है कि वोटर लिस्ट बनाते हुए सर्वे नंबर एक लाइन से होना चाहिए।
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- जबकि एक्ट में साफ है कि छह महीने से अधिक समय से किसी भी हालत में क्षेत्र में रहने वाले 18 साल से अधिक उम्र के व्यक्ति को मतदान का अधिकार होगा।
- इसे लेकर रक्षा मंत्री को पत्र लिखा गया है। जरूरत पडऩे पर उनका घेराव भी होगा।
- सीईओ छावनी परिषद एनवी सत्यनारायण की माने तो सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर ही मतदाता सूची से काटे गए हैं।
- इसका कारण मतदाताओं के मकान पर सर्वे नंबर दर्ज नहीं होना है।
- लोग अपना दावा करें तो मामले की सुनवाई होगी। जिसके बाद अंतिम निर्णय लिया जाएगा।
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