सरकार सर्व शिक्षा अभियान की बात करती है. सरकार कई योजनायें लाती है और करोड़ो खर्च करती है ताकि देश का भविष्य उज्ज्वल बनाने वाले बच्चे पढ़ सके और बढ़ सके इसके लिए सरकारी स्कूलों में छात्रों के लिए फीस सहित हर सुविधा उन्हें दी जाती है लेकिन सुविधा भी अगर ऊँचा नीचा और जाति धर्म के आधार पर निर्धारित होने लगे तो नन्हे नौनिहाल समानता और एकता कैसे समझेंगे?
सरकारी स्कूल में बच्चों को नहीं मिलते बर्तन
ऐसा ही एक मामला झाँसी जिले का है जहाँ सरकार की योजनाओं को स्कूली बच्चों के बीच पहुंचाने में भी भेदभाव देखा गया. और ये भेदभाव हो भी कहाँ रहा है, मोदी सरकार की केंद्रीय मंत्री उमा भारती के गोद लिए गाँव में.
UttarPradesh.Org की टीम केंद्रीय मंत्री उमा भारती की लोक सभा सीट झाँसी के चिरगाँव नगर पंचायत में गोद लिए गाँव करगवा पहुंची तो वहां के प्राथमिक स्कूल के बच्चों ने जो बताया वो सच में शर्मसार कर देने वाला था.
करगवा गाँव के पूर्व माध्यमिक कन्या क्रमोत्तर स्कूल में आलम ये था कि बच्चे अपने बर्तन खुद से धो रहे थे, कुछ के पास स्कुल में खाना खाने के लिए प्लेटे थी तो कुछ अपने घर से लाये टिफिन बॉक्स में खाना खा रहे थे.
बच्चे घर से लेकर आते है अपने बर्तन:
पूछने पर पता चला कि उनके स्कूल की तरफ से खाने के लिए प्लेट नहीं दी जाती, इसीलिए वे बच्चे घर से अपना टिफिन का डब्बा ले कर आते हैं, जिसमें उन्हें स्कूल का खाना मिलता है.
[hvp-video url=”https://www.youtube.com/watch?v=Ta9OQDGkDLM” poster=”https://www.uttarpradesh.org/wp-content/uploads/2018/09/central-minister-uma-bharti-adopted-village-school-students-face-partiality.jpg” controls=”true” autoplay=”true” loop=”true” muted=”false” ytcontrol=”true”][/hvp-video]
इस तरह के जवाब से कई सवाल उठते है कि सरकार द्वारा सरकारी स्कूलों में बच्चों के खाने के लिए बर्तन देने के बाद भी बच्चे खुद के बर्तन क्यों लाते हैं.?
कही ऐसा तो नहीं कि जरूरत के मुताबिक़ बर्तन स्कूलों तक पहुंचे ही ना हों?
सरकार ने की है बच्चों के खाने के लिए बर्तन की व्यवस्था:
लेकिन नहीं ऐसा कुछ भी नहीं है. सरकार ने तो हर बच्चे के लिए थाली, चम्मच और ग्लास की व्यवस्था की है, ऐसा खुद स्कूल की प्रधानाचार्या ने माना. लेकिन इसके बावजूद बच्चे अपने घर के लाये बर्तनों खाना क्यों खाते हैं, इस सवाल पर प्रधानाचार्या ने बड़ा ही अजीब सा जवाब दिया.
प्रधानाचार्या का हास्यास्पद बयान:
उन्होंने बताया कि बच्चे जबरदस्ती ऐसा करते हैं. मतलब ये सवाब किसी के हजम होने लायक नहीं कि बच्चों को खाना मिल रहा है बर्तन मिल रहे हैं लेकिन वो अपने घर से लाये बर्तनों में खाना पसंद करते हैं.
इससे एक बात तो साफ़ है कि स्कूलों में अगर बच्चों के साथ इस तरह का भेदभाव किया जायेगा तो बच्चे हमारे देश का मूल आधार अनेकता में एकता जैसी सीख को कभी नहीं समझेंगे और आने वाली पीढ़ी जात पात और भेदभाव के बीच ही सिमट कर रह जाएगी.
बहरहाल केंद्रीय मंत्री उमा भारती को अपने गोद लिए गांव के इस हाल के बारे में संज्ञान लेते हुए कार्रवाई करने की जरूरत है. साथ ही शिक्षा विभाग को भी समय समय पर स्कूलों के निरीक्षण और जांच करवाने की जरूरत हैं.