“या देवी सर्व भूतेषु चन्द्रघंटा रूपेण संस्थिता नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः”। नवरात्र के तीसरे दिन आदिशक्ति माता विंध्यवासिनी की चन्द्रघंटा के रूप में पूजा अर्चना की जाती है। भक्तों के कल्याण के लिए आदिशक्ति विंध्यवासिनी नवरात्र के नौ दिनों में शक्ति के नौ रूपों में दर्शन देती है। तीसरे दिन आदिशक्ति की चन्द्रघंटा के रूप में पूजा आराधना की जाती है। चंद्रमा धारण करने वाली माँ अपने भक्तों को शीतलता प्रदान करने के साथ ही उनकी सारी मनोकामनाओं को पूरा करती है। भक्तों को प्रत्येक प्राणी को सदमार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करने वाली माँ का यह स्वरूप सभी के लिए वन्दनीय है। विन्ध्य और माँ गंगा के संगम तट पर विराजमान माँ विंध्यवासिनी चन्द्रघंटा के रूप में दर्शन देकर भक्तों की सारी मनोकामना पूरी करती है।
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भक्तों के कष्टों का नाश करतीं हैं माँ चंद्रघंटा
अनादिकाल से आस्था का केंद्र रहे विन्ध्याचल में विन्ध्य पर्वत व पतित पावनी माँ भागीरथी के संगम तट पर श्रीयंत्र पर विराजमान माँ विंध्यवासिनी को तीसरे दिन चन्द्रघंटा के रूप में पूजन व अर्चन किया जाता है। भारत के मानक समय के लिए विन्दु के रूप में स्थापित विंध्य क्षेत्र में माँ को विन्दुवासिनी अर्थात विंध्यवासिनी के नाम से भक्तों के कष्ट को दूर करने वाला माना जाता है। जहाँ एक ओर माँ चंद्रघंटा दुष्टों के संहार अपने घंटे के से करती हैं वहीँ भक्तों के कष्टों का नाश भी घंटे से निकलने वाली ध्वनि से हो जाती है। प्रत्येक प्राणी को सदमार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करने वाली माँ चन्द्रघंटा सभी के लिए आराध्य है। विद्वान् यह भी बताते हैं कि मंदिरों में घंटा लगाने का धार्मिक और वैज्ञानिकदोनों महत्व है। साधकों के मणिपूरक चक्र जागृत होता है । भक्तों को हलुआ-पूड़ी का भोग माँ को अर्पण करने से सभी मनोकामना पूरी होती है।
माँ के दर्शन मात्र से ही शरीर में आ जाती है नयी उर्जा
माँ चन्द्रघंटा के रूप में देवी की आराधना से मणिचक्र जागृत होता है जिससे व्यक्ति का समयचक्र परिवर्तित होता है। धाम में आने वाले भक्त यहाँ आकर बहुत खुश हैं। भक्तों का कहना है कि मातारानी सभी मनोकामना पूरा करती हैं। पिछले कई वर्षों से देवी पाठ करने वाले भक्तों की झोली माँ ने भर दिया है। आने वाले भक्त मन की मुराद पूरा होने से बहुत ख़ुशी की अनुभूति करते हैं। नवरात्र में नौ दिन माँ के अलग अलग रूपों की पूजा कर भक्त सभी कष्टों से छुटकारा पाते हैं। माता के किसी भी रूप में दर्शन करने मात्र से प्राणी के शरीर में नयी उर्जा, नया उत्साह व सदविचार का संचार होता है।