महिला और शिशु रेफरल हास्पिटल का उद्घाटन बीते छह महीने पहले दिसम्बर 2016 में किया गया था। जानकारी के मुताबिक इसके निर्माण में अभी तक करीब 61 करोड़ खर्च हो चुके हैं। हैरानी की बात तो यह है कि इतनी मोटी रकम खर्च होने के बावजूद इस अस्पताल में मरीजों का इलाज नहीं हो पा रहा है। मरीज को चिकित्सा सुविधाओं की जगह यहाँ केवल अस्पताल का ढांचा ही नसीब हो रहा है।
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गंभीर मरीजों का होना था इलाज
- राजधानी के महिला अस्पतालों में बढ़ती मरीजों की संख्या को देखे हुए इस अस्पताल का निर्माण हुआ था।
- 200 बेड के इस हॉस्पिटल के बनने का जो उद्देश्य था वो अब तक पूरा नहीं हुआ है।
- 200 बेड के इस हॉस्पिटल में अभी एक भी बेड की व्यवस्था नहीं है।
- ऐसा माना जा रहा था की इस अस्पताल के बन जाने के बाद यहां अति गंभीर मरीजों का इलाज किया जायेगा।
- और साथ ही क्वीन मेरी पर भी मरीजों का बोझ थोड़ा कम हो जायेगा।
- लेकिन अभी तक यह सपना पूरा नहीं हो पाया है।
- अभी तक रेफरल अस्पताल के रूप में महिलाओं के लिए राजधानी में सिर्फ क्वीन मेरी ही है।
- यहां एक बेड पर तीन-तीन महिलाओं का इलाज होता है।
- अस्पताल में डॉक्टर्स महिलाओं और बच्चों को जांच के लिए लोहिया संस्थान भेजते हैं।
- ऐसे में जांच के लिए मरीज़ को कई किलोमीटर दूर लोहिया संस्थान में आना पड़ता है।
- साथ ही महिला तकनीशियन ना होने से गर्भवती महिलाओं का अल्ट्रासाउंड भी नहीं होता है।
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61 करोड़ से हो चुके खर्च
- इस हॉस्पिटल का क्षेत्रफल दो लाख 18 हजार 558 स्क्वायर फीट है।
- कवरिंग एरिया एक लाख 81 हजार स्क्वायर फीट है।
- इसकी लागत 61 करोड़ दो लाख 29 हजार है। निर्माण काम एक जनवरी 2013 को शुरू हुआ।
- जो अभी चल रहा है। अभी तक अस्पताल का केवल ढांचा तैयार हो पाया है।
- मरीजों का उपचार करने के लिए यहां 6 स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ है।
- पांच बाल रोग विशेषज्ञ की भी नियुक्ति की गयी है।
- बड़ी संख्या में सीनियर रेजीडेंट, नर्स, टेक्नीशियन, फार्मासिस्ट, वार्डब्वाय व सफाईकर्मी आदि मौजूद है। कुल स्टाफ की संख्या 200 है।
- लोहिया संस्थान के निदेशक प्रो. दीपक मालवीय का कहना है कि अस्पताल में फर्नीचर का आर्डर दे दिया गया है।
- यह फर्नीचर 20 जुलाई तक अस्पताल परिसर में आ जायेंगें।
- जिसके बाद अस्पताल को 1 अगस्त से शुरू करने की कवायद जारी है।
- अभी अस्पताल में डिलीवरी की सुविधा नहीं है इस वजह से मरीज कम आते हैं।
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