2014 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार ने स्वच्छ भारत अभियान(clean india mission) के तहत देश को ‘खुले में शौच मुक्त’ बनाने की योजना की शुरुआत की गयी थी, योजना के मुताबिक, केंद्र सरकार ‘घर-घर शौचालय’ बनवा कर उसके इस्तेमाल के लिए आम जनता को जागरूक करना था। उत्तर प्रदेश में भी सरकार स्वच्छ भारत अभियान के तहत खुले में शौच मुक्त कार्यक्रम को जोर-शोर से चलाया जा रहा है, लेकिन सरकार की महत्वपूर्ण योजना में अधिकारी ही पलीता लगाने में जुटे हैं।
स्वच्छ भारत मिशन को यूपी में बड़ा झटका(clean india mission):
- मोदी सरकार ने गांधी जयंती के दिन स्वच्छ भारत अभियान की शुरुआत की थी।
- जिसके बाद देश को ‘खुले में शौच मुक्त’ करने के लिए ‘घर-घर शौचालय’ योजना बनायी गयी।
- यूपी को भी खुले में शौच मुक्त बनाने के लिए जोर-शोर से कार्यक्रम की रूपरेखा तैयार की गयी थी।
- लेकिन स्वच्छ भारत अभियान में उत्तर प्रदेश की उम्मीदों को तगड़ा झटका लगा है।
- खुले में शौच मुक्त अभियान को प्रदेश के जिलाधिकारी ही गर्त में धकेलने में लगे हुए हैं।
स्वच्छता के नाम आये 646 करोड़ पर जिलाधिकारियों की कुंडली(clean india mission):
- राज्य में स्वच्छता अभियान योजना में जिलाधिकारी ही पलीता लगाने में जुटे हुए हैं।
- प्राप्त जानकारी के मुताबिक, उत्तर प्रदेश में शौचालय निर्माण के लिए तकरीबन 646 करोड़ का बजट भेजा गया था।
- जिस पर सूबे के जिलाधिकारियों ने अपनी कुंडली मार दी है।
- सभी 75 जिलों के DM अपने-अपने शौचालय में निर्माण कार्य को रोके हुए हैं।
- जिलाधिकारी शौचालय निर्माण के फंड को रिलीज ही नहीं कर रहे हैं।
टॉप-10: कौन जिला, कितने पानी में(clean india mission):
- देवरिया डीएम ने शौचालय निर्माण का 300 करोड़,
- आगरा डीएम 28 करोड़,
- मेरठ डीएम 20 करोड़,
- एटा डीएम 20 करोड़,
- कन्नौज डीएम ने शौचालय निर्माण का 20 करोड़,
- सीएम के गृह जिले गोरखपुर के डीएम ने शौचालय निर्माण का 17 करोड़,
- इलाहाबाद डीएम ने शौचालय निर्माण का 11 करोड़,
- बुलंदशहर डीएम ने शौचालय निर्माण का 12 करोड़,
- लखनऊ में शौचालय निर्माण का 7 करोड़ रुपये का फंड जिलाधिकारी अपने स्तर पर रोके हुए हैं।
बिना टॉयलेट कैसे स्वच्छ होगा भारत(clean india mission):
- यूपी के स्वच्छता अभियान में जिलाधिकारी ही पलीता लगा रहे हैं।
- जिसके बाद यह सवाल उठता है कि, जब टॉयलेट नहीं बनेंगे तो भारत कैसे स्वच्छ होगा।
- वहीँ मामले में CDO और DGRO की भूमिका भी संदिग्ध बताई जा रही है।
- साथ ही ऐसा भी कहा जा रहा है कि, कमीशन के चक्कर में अफसर फंड नहीं दे रहे हैं।