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विरोध करने की बजाए सहयोग दें शिक्षण संस्थाएं: शलभ मणि त्रिपाठी

Collaborate educational institutions instead of opposing: Shalabh Mani

Collaborate educational institutions instead of opposing: Shalabh Mani

भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता शलभ मणि त्रिपाठी ने कहा है कि प्रदेश की योगी आदित्यनाथ की सरकार अभिभावकों, स्कूलों के प्रबंध तंत्र और शिक्षाविदों से राय मशविरा करके ही शुल्क निर्धारण विधेयक ले लाई है। इसका मकसद शिक्षा का स्तर बेहतर करने के साथ ही साथ स्कूलों के प्रबंध तंत्र के सहयोग से उन अभिवावकों को राहत देने का भी है जिनके सामने आर्थिक समस्याएं हैं। सरकार की कोशिश है कि आर्थिक तंगी के चलते किसी भी बच्चे की पढाई और तरक्की ना रूके और ये कानून इसी दिशा में मील का पत्थर साबित होगा। सरकार हर बच्चे को साक्षर करने के लिए कृतसंकल्पित है और इस बात की अपेक्षा है कि प्राइवेट स्कूल भी इस मुहिम में अपना योगदान देकर देश और समाज को मजबूत करेंगे।

तमाम अभिभावक संगठनों और शिक्षण संस्थाओं ने इस कानून का स्वागत किया है। ये एक ऐतिहासिक कानून है जो अभिभावकों के साथ ही साथ स्कूलों के भी हित में है। इस कानून के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्नाथ और उपमुख्यमंत्री बधाई के पात्र हैं। स्कूलों के प्रबंधतंत्र को इस कानून का विरोध करने की बजाए इस कानून के लिए सरकार के साथ खड़ा होना चाहिए।

शलभ मणि त्रिपाठी ने कहा कि प्रदेश सरकार ने इसी के मद्देनजर अभिभावक संगठनों और शैक्षणिक संगठनों से बातचीत और सुझावों के आधार पर नया कानून तैयार किया है। इसमें किसी को परेशानी ना हो, इसका भी विशेष तौर पर ध्यान रखा गया है। ज्यादातर स्कूलों के प्रबंध तंत्र ने इस कानून को सभी के हित में बताया है। ऐसे में आमजन के हित में लाए जा रहे इस कानून के विरोध का कोई आधार नहीं बनता। देश और समाज की तरक्की के लिए शैक्षणिक संगठनों को सरकार की मदद करनी चाहिए और कानून का विरोध करने की बजाए सरकार के साथ कदम से कदम मिलाकर चलना चाहिए।

प्रदेश प्रवक्ता शलभ मणि त्रिपाठी ने कहा है कि शैक्षणिक संस्थाएं बेहद पवित्र सोच के साथ शुरु की जाती हैं जिसका हमेशा से ये मकसद रहा है कि हर तबके के बच्चे को शिक्षा का अधिकार मिल सके। और इसीलिए इन संस्थाओं के प्रति समाज में हमेशा से सम्मान का भाव रहा है। इसी वजह से सरकारें भी तमाम जरूरी सहूलियतें इन संस्थाओं को हमेशा से देती रही हैं। ऐसे में पिछले कुछ सालों से ये रिश्ता दरकने लगा था और उसकी एक बड़ी वजह थी संस्थाओं और अभिभावकों के बीच पनपी अविश्वास की खाई। अभिभावकों की तरफ से लंबे वक्त से ये शिकायतें आ रही थीं कि स्कूलों के प्रबंधतंत्र की तरफ से ना सिर्फ मनमाफिक शुल्क जाते हैं बल्कि यूनीफार्म और तमाम सुविधाओं के नाम पर उनसे तमाम तरह की वसूली की जाती है। इसे लेकर अभिभावक संगठन कानून बनाने की मांग भी कर रहे थे। और सरकार ने यह वायदा पूरा कर दिया है।

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