समाजवादी पार्टी की कहल थमने का नाम नहीं ले रही है। इस समय पार्टी में सुलह और बटवारे का दौर चल रहा है। दो खेमों में बट चुकी पार्टी फिलहाल किसी भी अतिंम फैसले की ओर जाती नहीं दिखाई पड़ रही है। एक ओर शिवपाल यादव मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से मिलकर सब कुछ शांत करने की कोशिश में जुट हुए है तो दूसरी ओर अखिलेश खेमा इसके लिए तैयार नहीं दिख रहा है।

अखिलेश की उलझन :

  • सपा में आलम यह है कि अब मुख्यमंत्री अखिलेश भी अपने फैसलों में फंसते नज़र आने लगे है।
  • हालात ऐसे होने वाले है कि मुख्यमंत्री अखिलेश यादव चाह कर भी कुछ मामलों में अपना फैसला नहीं ले पाएंगे।
  • क्योंकि अखिलेश खेमा ही उन्होंने ऐसा करने से रोकने लगा है।
  • अखिलेश यादव को 1 जनवरी को आपातकालीन अधिवेशन में सपा का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया था।
  • जिसके बाद पार्टी मुखिया मुलायम सिंह और शिवपाल यादव ने इस मुद्दे को चुनाव आयोग में घसीटा।
  • दोनों ही खेमों ने चुनाव आयोग के सामने चुनाव चिन्ह के लिए अपना-अपना दावा पेश किया।
  • अब चुनाव आयोग पार्टी के चुनाव चिन्ह पर फैसला करेंगा।

फंस सकते है अखिलेश :

  • चुनाव आयोग ने इस बीच उत्तरप्रदेश में चुनाव की तारीख की घोषणा भी कर दी है।
  • लेकिन सपा परिवार का झगड़ा खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है।
  • ऐसे स्थिति में चुनाव चिन्ह पर रार पार्टी के लिए घातक साबित हो सकती है।
  • इस स्थिति को भापते हुए मुलायम-शिवपाल खेमा अखिलेश को समझाने में जुट गया है।
  • इस स्थिति में हो सकता है कि सहमति बनने पर अखिलेश यादव राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद छोड़ दें।
  • लेकिन अब अखिलेश खेमा उनके इस फैसले को स्वीकार करने के मूड में नहीं दिख रहा है।
  • जिस प्रतिनिधि सभा के जरिये अखिले्श यादव राष्ट्रीय अध्यक्ष की कुर्सी पर विराजमान हुए,
  • उसने उनके इस पद को छोड़ने पर स्वीकृति देने से इंकार कर दिया है।
  • नियम यह है कि राष्ट्रीय अध्यक्ष के पद पर स्वीकृति और पद छोड़ना प्रतिनिधि सभा द्वारा ही तय होता है।
  • प्रतिनिधि सभा और कार्यकारिणी के विरोध के चक्कर में अब सपा में वापस शांति की उम्मीद कम लग रही है।
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