सांसद आदर्श ग्राम योजना के तहत सभी सांसदों को एक एक गाँव गोद लेने की योजना थी. इस योजना के तहत सासंद अपने गाँव के हालात सुधारने के लिए कार्य करेंगे. मोदी सरकार ने यह योजना 4 साल पहले शुरू की थी, इस योजना का उद्देश्य भारत के गाँवों की स्थिति में सुधार कर उनका सर्वागीण विकास करना था. जिसके तहत सभी सांसदों को एक गाँव गोद लेकर वहां की मूलभूत आवश्यकताओं के लिए काम करना था. सांसदों ने गाँव गोद भी लिए. लेकिन इन 4 सालों में किस सांसद ने अपने गाँव के लिए कितना काम किया, यह जानने वाली बात है. इन्ही सांसदों में एक नाम है- कांग्रेस की पूर्व अध्यक्षा और रायबरेली की सांसद सोनिया गाँधी का.
4 साल में नही गयी एक बार भी गाँव:
रायबरेली से सांसद सोनिया गाँधी ने 4 चार साल पहले अन्य सांसदों की तरह उड़वा गाँव को गोद लिया था. योजना के हिसाब से तो अब तक गाँव में काफी विकास हो जाना चाहिए था. लेकिन देखा जाए तो इन चार सालों में भी गाँव में कुछ नही बदला. वहीं खुले में शौच, वहीं कच्चा रास्ता, वहीं बिना बैंक और अस्पताल वाला गाँव है उड़वा.
गाँव के लोगों से इस बारे में बातचीत में पता चला कि उड़वा गांव के अधिकतर घरों में शौचालय तक नहीं है. सांसद आदर्श ग्राम चुने जाने के समय गांव के लोगों में इस बात को लेकर खुशी थी कि अब उनके गांव में विकास होगा लेकिन असल में गांव की हालत में ऐसा कोई परिवर्तन नहीं हुआ जिससे गाँव के लोगों को कोई लाभ मिल सकें.
नही हैं 8वीं के बाद शिक्षा के लिए स्कूल:
गांव के प्रधान राधेश्याम मौर्य के मुताबिक, गांव में प्राथमिक एवं माध्यमिक स्कूलों में बच्चों की तादाद काफी अच्छी है लेकिन आठवीं की पढ़ाई के बाद अधिकतर बच्चे, खासकर लड़कियां पढ़ाई छोड़ देती हैं क्योंकि आगे की पढ़ाई के लिए आसपास कोई स्कूल उपलब्ध नहीं है. गांव में ही रहने वाले एक युवक ने कहा, ‘आदर्श ग्राम में चयन होने के बाद एक महीने तक टीवी चैनलों की बड़ी-बड़ी गाड़ियां यहां आईं. हमें उम्मीद थी कि अब अच्छे दिन आ गए हैं लेकिन हम आज भी वैसे ही हैं जैसे 5 साल पहले थे.’
उड़वा के युवाओं में रोजगार को लेकर भी काफी निराशा है. रायबरेली से बीए करके वापस गांव लौटे दिलीप ने कहा, ‘मेरे माता-पिता काफी बुजुर्ग हैं. घर में एक छोटी बहन है जो आठवीं में पढ़ती है. दो साल से खाली बैठा हूं. थोड़ी सी खेती है, उसी से खाने भर की कमाई हो जाती है. मां-बाप को छोड़कर बाहर भी नहीं जा सकता.’ लोगों का कहना है कि अगर लोगों को काम के लिए गाँव छोड़ कर जाने की जरूरत न पड़े तब ही इसे आदर्श ग्राम माना जा सकता था. उन्होंने कहा कि गांव में कोई कंपनी या प्रॉजेक्ट शुरू हो जाता तो लोगों को रोजगार का अच्छा साधन मिल जाता.
आम लोगों ने बताया कि अगर सोनिया गांधी ने गाँव को गोद न लिया होता तो मनोज कुमार पांडेय, विधायक एवं पूर्व कैबिनेट मंत्री, ऊंचाहार अपनी सरकार के दौरान इसे लोहिया ग्राम घोषित कर देते.
प्रधानमन्त्री ने गाँव जबरदस्ती गोद दिलवाए:
गांव के लोगों में इस बात को लेकर भी खासी नाराजगी है कि सोनिया गांधी एक बार भी गांव में नहीं आईं. प्रधान राधेश्याम का कहना है कि अगर सोनिया गांधी गांव आई होतीं तो गांव वालों की हालत देखकर जरूर कुछ करतीं लेकिन वह एक बार भी नहीं आईं. उन्होंने कहा कि गांव में प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत घर तो बन रहे हैं लेकिन सिर्फ उन घरों को विकास नहीं कहा जा सकता.
वहीं इस बारे में रायबरेली कांग्रेस कमिटी के जिलाध्यक्ष डीके शुक्ला ने कहा, ‘कांग्रेस अपनी विधानसभा में ब्लॉक स्तर पर काम कराती है. पीएम मोदी ने एक तरह से जबरदस्ती गांव गोद दिलवाए थे. हमें पूरी विधानसभा देखनी होती है.’ उन्होंने कहा कि यदि किसी गांव में विशेष काम करवाने थे तो केंद्र सरकार को इसके लिए अलग से बजट देना चाहिए था.