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ट्रैफिक पुलिस लाइंस में एसएसपी ने पकड़वाई 68 हजार रुपये की घपलेबाजी, सिपाही गिरफ्तार

Cop Arrested For SSP Caught Scam of 68 Thousand Rupees in Traffic Police Lines

Cop Arrested For SSP Caught Scam of 68 Thousand Rupees in Traffic Police Lines

राजधानी लखनऊ स्थित ट्रैफिक पुलिस लाइंस में लम्बे समय से यातायात सुधार की आड़ में जनता से वसूले जा रहे शमन शुल्क में लंबे समय से चल रहा घोटाला बुधवार को पकड़ा गया। एसएसपी के निर्देश पर हुई छानबीन में सामने आया कि चालान के पर्चे में धाराएं हटाकर शमन शुल्क की रकम डकारा जा रहा था। अब तक की पड़ताल में 68,100 रुपये की घपलेबाजी पकड़ी गई है। एसएसपी कलानिधि नैथानी ने कैश काउंटर संभालने वाले यातायात लाइंस के सिपाही धीरज कुमार इंद्राणा के खिलाफ कैंट थाने में रिपोर्ट दर्ज करवाकर गिरफ्तार करवा लिया है। एसएसपी का कहना है कि यातायात लाइंस के सभी अभिलेख मंगवाए गए हैं। इस मामले में एएसपी से लेकर कार्यालय के सभी कर्मचारियों का अलग-अलग बयान लिया जाएगा। जिसकी भूमिका सामने आई उसके खिलाफ मुकदमा दर्ज करवाया जाएगा।

जानकारी के मुताबिक, लगातार हो रहे चलान के बावजूद यातायात कार्यालय में शमन शुल्क बेहद कम जमा होने पर एसएसपी कलानिधि नैथानी के निर्देश पर सीओ ट्रैफिक लाइंस आईपीएस अभिषेक वर्मा ने पड़ताल शुरू की। महीने भर में हुए चालान का कैश से मिलान किया गया तो 68,100 रुपये कम मिले। इसपर चालान की प्रतियां निकलवाई गईं तो ट्रैफिक पुलिस की ओर से किया जा रहा बेहद गंभीर अपराध सामने आया। एसएसपी ने बताया कि कैश जमा करने वाला सिपाही चालान के कार्यालय प्रति में दर्ज बड़ी धाराओं को हटाकर मामूली धाराओं का शमन शुल्क जमा कर रहा था। जबकि वाहन स्वामी से उन्हीं धाराओं का शमन जमा करवाता था जिसमें चालान कटा होता था। एसएसपी का कहना है कि ऐसी आशंका है कि यह खेल कई साल से चल रहा था। आगे की पड़ताल में बहुत बड़ा घोटाला सामने आ सकता है। उन्होंने बताया कि फिलहाल मौके पर पकड़े गए सिपाही को जेल भेजा गया है। इसमें शामिल रहे अफसरों और अन्य कर्मचारियों का पता लगाया जा रहा है, जिसकी भी भूमिका सामने आई उसे जेल भेजा जाएगा।

जुर्माने के तौर पर जनता की ओर से जमा की जा रही रकम को ट्रैफिक पुलिस कई साल से डकार रही है। मार्च 2016 में भी जुर्माने की रकम में घोटाले का ऐसा ही खेल सामने आया था। इसमें ट्रैफिक सीओ की संलिप्तता भी सामने आई जिसकी जांच का निर्देश तत्कालीन एडीजी ट्रैफिक अनिल अग्रवाल ने दिया था। हालांकि निचले स्तर के अफसरों ने जांच लंबित रखी और इसी बीच एडीजी का तबादला हो गया। उनके हटते ही रफादफा कर दिया गया। चालान काटने पर उसकी तीन प्रतियां बनाई जाती हैं। एक कार्बन कॉपी वाहन स्वामी को दी जाती है।

दूसरी कॉपी जमा किए गए प्रपत्र के साथ नत्थी करके कार्यालय भेजी जाती है। मूल कॉपी को चालान करने वाला कर्मचारी अपने पास रखता है जिसे चालान बुक भरने के बाद एक साथ कार्यालय में जमा करता है। वाहन स्वामी जमा प्रपत्र लेने पहुंचता है तो उससे चालान पर दर्ज धाराओं की तय जुर्माना रकम जमा करवाई जाती है। जबकि चालान की कार्यालय कॉपी में गंभीर धाराओं को काटकर मामूली धारा की रकम जमा करके बाकी रुपये हड़पे जा रहे थे।

एसएसपी के निर्देश पर हुई जांच में इतना बड़ा घोटाला सामने आने के बाद एएसपी ट्रैफिक की भूमिका पर सवाल उठ रहा है। यातायात लाइंस से चालान कोर्ट भेजने या कार्यालय स्तर पर जुर्मान जमा करवाने में एएसपी की संस्तुति होती है। सीओ और टीआई के हस्ताक्षर के बाद जुर्माने की रकम कार्यालय के कैश में जमा की जा जाती है, लेकिन इतने बड़े आर्थिक अपराध पर अब तक किसी अफसर की नजर न पड़ने को जानबूझकर उनकी खामोशी माना जा रहा है।

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