विज्ञान प्रौद्योगिकी परिषद ने साल 2016 में तृतीय श्रेणी पद पर भर्ती निकाली थी. जिसमें सैकड़ों अभ्यर्थियों ने आवेदन किया था. आवेदन शुल्क के तौर पर बैंक ड्राफ्ट भी जमा हुए थे, लेकिन दो साल बाद भी परिषद ने ड्राफ्ट को विभाग के खाते में जमा नहीं किया बल्कि ये सैकड़ों की संख्या में लाखों के बैंक ड्राफ्ट कूड़े में तब्दील हो गये हैं और कार्यालय में धूल फांक करे हैं.
आवेदन में आये बैंक ड्राफ़्ट नहीं भुना पायी परिषद:
सरकारी विभाग नौकरियां निकालते हैं और उनकी भर्ती प्रक्रिया में महीनों लगाते हैं. किसी भी सरकारी और गैर सरकारी नौकरियों के लिए आवेदन पत्र के साथ आवेदन शुल्क भी जमा करना होता है.
रोजगार की तलाश में बेरोजगार अभ्यार्थी आवश्यक धन राशि आवेदन शुल्क के तौर पर जमा करते हैं. ये शुल्क अभ्यर्थी की परीक्षा और साक्षत्कार के लिए लिया जाता है लेकिन एक विभाग ऐसा भी है जिसने भर्ती प्रक्रिया के दौरान आये बैंक ड्राफ्ट को कूड़े में तब्दील कर दिया है.
तृतीय श्रेणी के एक दर्जन पदों के लिए माँगा था आवेदन:
ये विभाग कोई और नहीं विज्ञान प्रौद्योगिकी परिषद है, जहाँ विभाग की बढ़ी लापरवाही सामने आई है. विज्ञान प्रौद्योगिकी परिषद ने 2016 में नौकरी निकली थी. परिषद ने तृतीय क्षेणी के एक दर्जन पदों पर आवेदन माँगा था. सैकड़ों की संख्या में आवेदन आये भी और आवेदन के साथ लाखों का आवेदन शुल्क भी.
कूड़े के ढेर में पड़े है लाखों रूपये के डीडी
लेकिन 2 साल बाद आज वो आवेदन शुल्क कूड़ा बन चुका है. बैंकड्राफ्ट के तौर पर अभ्यार्थियों से लिया गया आवेदन शुल्क आज तक कैश नहीं करवाया गया.
डीडी रद्दी की तरह कार्यालय में धूल फांक रहे हैं. इससे न केवल विभाग का लाखों का नुकसान हुआ बल्कि उनकी ढुलमुल कार्यविधि पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं.
दर्जन भर पदों पर सैकड़ों आवेदन:
कनिष्ठ लिपिक, अनुलिपिक और प्राविधिक सहायक के पद के लिये साल 2013 में विज्ञान प्रौद्योगिकी परिषद ने विज्ञापन जारी किया था. इन पदों पर एक दर्जन भर्ती होनी थी. जिसके लिए कनिष्ठ लिपिक 472 अभ्यार्थियों ने आवेदन किया. वहीं अनुलिपिक के लिए 71 और प्राविधिक सहायक के पद पर 125 आवेदन आये थे.
परिषद को लाखों का नुक़सान
इनमें कनिष्ठ लिपिक के 30, अनुलिपिक के 5 और प्राविधिक सहायक के 15 आवेदकों ने आवेदन शुल्क के तौर पर डिमांड ड्राफ्ट उपलब्ध नहीं करवाए थे. जिनमें तीनों पदों के आधार पर (क्रम वार 442, 66, 110) कुल 618 डिमांड ड्राफ्ट प्राप्त हुए थे.
लेकिन इन बैंक ड्राफ्टों का अब तक पैसा विभाग के खाते तक नहीं पहुंचा. क्योंकि अब तक ड्राफ्ट को बैंक में जमा ही नहीं किया जा सका. और परिषद की इस लापरवाही से लाखों का नुकसान हो गया.
इतना ही नहीं बता दें कि विभाग में इस भर्ती प्रक्रिया में ये पहली लापरवाही या विवाद नहीं है. भर्ती प्रक्रिया के दौरान सचिव अनिल यादव पर धांधली के आरोप भी लग चुके हैं.