जहाँ एक ओर सरकार छात्रों के लिए ख़ासकर दलित छात्रों के लिए कई योजनायें चला कर उनकी स्थिति में सुधार को लेकर तत्पर है, वहीं कॉलेज प्रशासन की एक चूक छात्रों के लिए परेशानी का सबब बन जाती है. इसे चूक कहने से ज्यादा बेहतर होगा लापरवाही कहना. छात्रवृत्ति किसी भी छात्र की आर्थिक स्थिति कमजोर होने के बाद भी उसे पढ़ाई जारी रखने के लिए प्रेरित करती है. पर कॉलेज की लापरवाही और ढ़िलाई के चलते एक दलित छात्रा को उसकी यही पढ़ाई महंगी पड़ गयी.
सीतापुर के सरदार सिंह शिवराज सिंह महाविद्यालय का मामला:
मामला सीतापुर मार्ग पर स्थिति सरदार सिंह शिवराज सिंह महाविद्यालय का हैं. जहाँ एक दलित छात्रा को महाविद्यालय की लापरवाही ने ही ठग लिया. अनुसूचित जाति की एक छात्रा ने विद्यालय में बीएड के प्रथम वर्ष में दाखिला लिया.
छात्रा ने पहले साल की पूरी फीस 52650 रुपये जमा किये साथ ही छात्र वृत्ति के लिए कॉलेज से ही 200 रुपये शुल्क लेकर फार्म भरवाया गया. छात्रा को बताया गया कि स्कोलरशिप आने पर फीस वापस आ जाएगी. छात्रा स्कोलरशिप का इन्तजार करती रही और एक साल बीत गया.
दलित छात्रा ने परीक्षा दी और बीएड का पहला साल पास कर लिया. लेकिन साल पूरे होने के बाद भी छात्रवृत्ति नहीं मिली. छात्रा ने बीएड के दूसरे वर्ष में दाखिला लिया 30 हजार फीस फिर से जमा की और फिर से कॉलेज की ओर से छात्रवृति फार्म भरवाया गया.
छात्रा ने जब स्कोशिप ना मिलने को लेकर विद्यालय में शिकायत की तो उसे इंतज़ार करने को कहा गया. तंग आकर दलित छात्रा ने महाविद्यालय के क्लर्क धीरज से अपने दस्तावेज मांगे तो धिरज ने छात्रा के साथ अमानवीय व्यवहार किया.
कॉलेज की लापरवाही से छात्रा को नहीं मिली छात्रवृत्ति:
बता दें कि सीतापुर के रघुबरनगर धौधी लहरपुर में सरदार सिंह शिवराज सिंह महाविद्यालय में सालों से क्लर्क धीरज नाम के व्यक्ति ने तैनात हैं. नीतू देवी नाम की पीड़ित छात्रा ने आरोप लगाते हुए बताया कि उसने विद्यालय में 2016 के सत्र में B.Ed में एडमिशन कराया था.
दलित छात्रा ने बताया कि फर्स्ट ईयर में उससे पूरी रकम ले ली गई और सेकंड ईयर में 30000 की रकम ले ली गई जबकि शासन आदेश अनुसार एससी कास्ट के छात्रों का फ्री एडमिशन होता है.
अपने डाक्यूमेंट्स मांगे जाने पर विद्यालय के बाबू धीरज ने अमानवीय व्यवहार किया. इतना ही नहीं उसे कॉलेज से बाहर भी करवा दिया.
दलित छात्रा अब अपनी फीस वापसी को लेकर दर-दर भटक रही हैं. लेकिन ना तो कॉलेज प्रशासन उसकी ओर ध्यान दे रहा है और न ही क्लर्क के खिलाफ कोई कार्रवाई की. इसके बाद हताश छात्रा बोर्ड पहुंची तब उसे पता चला कि उसके स्कोलरशिप फ़ार्म में खामी होने की वजह से फॉर्म रिजेक्ट हो गया है.
बड़ा सवाल ये उठता है कि कॉलेज ने ही फॉर्म भरवाया. तो छात्रा के फ़ार्म में खामियां कैसे हुईं. इसके बाद बोर्ड हमेशा छात्रों के फॉर्म में गलतियाँ होने पर कॉलेज को इस ओर सूचित कर फॉर्म को संशोधित करने का अवसर देता हैं.
तो कॉलेज ने छात्रा के फॉर्म को ठीक क्यों नहीं करवाया. उसके बार बार पूछने पर इंतज़ार करो, फीस आ जाएगी. ऐसा कह कर उसको उसे बहकावे में रखा. अंत में पूरे मामले से पल्ला झाड दिया.