खबर यूपी के गोंडा से है, जहां घाघरा नदी तबाही मचाने को बेताब है। पूरे एक साल तक बांध मरम्मत का कोई काम न होने से एल्गिन चरसड़ी का कटा हुआ अस्थाई रिंग बांध घाघरा नदी की तेज धार के मुहाने पर है और कभी भी कट सकता है।
नदी के बांध से सटकर बह रहे पानी और बंधे मे पड़ी दरार को देखकर अंदाजा लगाया जा सकता हैं कि इससे जल्द ही बड़ी समस्या खड़ी हो सकती है. क्योंकि नदी का बहाव ठीक बंधे के बराबर आ चुका है और घाघरा नदी की खासियत है कि यह जब भी कटान करती है तो जमीन के काफी नीचे से करती है। जिससे पता भी नहीं चलता और दरार लेकर पूरी जमीन पलक झपकते ही नदी के आगोश में समा जाती है।
तीन दिन पहले हुआ था कमिश्नर का दौरा:
बता दें कि यह एल्गिन-चरसड़ी का यह वही अस्थाई रिंग बांध है, जिसे तीन दिन पहले हुए कमिश्नर के दौरे के बाद सिंचाई विभाग के लोग बंबोक्रेट से बचाने में लगे थे।
लेकिन उनकी इंजीनियरिंग टीम घाघरा नदी के तेज बहाव के आगे बेकार साबित हुई और नौबत यहां तक आ चुकी है कि अब-तब बाँध कब कट जाए, कहा नहीं जा सकता।
ऐसी स्थिति में अगर कहीं बांध कटा तो सबसे ज्यादा दिक्कत नकहरा, घरकुईंया, प्रतापपुर, गौरा मांझा जैसी कई ग्राम पंचायतों को होगी। जिसकी कुल आबादी सवा लाख के करीब है।
एक करोड़ रुपए में बनकर तैयार हुआ था एल्गिन-चरसड़ी बांध:
11 साल पहले महज एक करोड़ रुपए की लागत में बनकर तैयार हुआ 52 किलोमीटर लंबा एल्गिन-चरसड़ी बांध अबतक कुल 7 बार कट चुका है।
बंधे के 7 बार कटने से जहां 94 लोगों की जानें गईं तो वहीं लिखापढ़ी में डेढ़ दर्जन जानवर भी बाढ़ की भेंट चढ़ गए। जबकि तहसील क्षेत्र करनैलगंज की सवा लाख आबादी को इसका खामियाजा महीनों तक गांव में हुए जलभराव के चलते भुगतना पड़ा।
वहीं सरकार और सरकार में बैठे लोग सिंचाई विभाग को रिमोट कंट्रोल की तरह आपरेट करते रहे। जिन्होंने बंधे की मरम्मत के नाम पर ऐसा खेल खेला कि बंधे का धंधा लूटतंत्र का फंडा बन गया।
1 करोड़ रुपये से बने बाँध की मरम्मत पर ढाई सौ करोड़ रुपए खर्च:
बता दें कि एक करोड़ रुपए में बनकर तैयार हुए एल्गिन-चरसड़ी बांध की मरम्मत पर अब तक कुल ढाई सौ करोड़ रुपए सिंचाई विभाग खर्च कर चुका है। लेकिन बंधे की आफत है कि इलाकाई लोगों की बरसात के दिनों में रत्ती भर का सुकून नहीं दे पाई है।
साल 2017 में जिस समय एल्गिन-चरसड़ी का स्थाई और अस्थाई बांध कटा, उसके बाद से इसकी किसी तरह की कोई मरम्मत सिंचाई विभाग ने नहीं कराई, जबकि मरम्मत के नाम पर आया करोड़ों रुपया कहां खर्च हो गया, यह कोई बताने को तैयार नहीं है।
बंधे के नाम पर चले आ रहे लूटतंत्र के इस फंडे की पोल तत्कालीन सपा सरकार में ही खुल चुकी थी। बावजूद इसके सिंचाई विभाग के किसी भी जिम्मेदार पर कोई कार्रवाई नहीं की गई। जिसका फलसफा है कि आज फिर से वही दिन लौट आया है। जब बंधा कटने से भयभीत लोग गांव छोडक़र किसी सुरक्षित स्थान की तलाश में भटक रहे हैं।