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बुंदेलखंड में गहरा रहा जल का संकट, दूर से भरकर लाना पड़ रहा पीने का पानी

deep Water crisis in Bundelkhand village triggers caste conflict

deep Water crisis in Bundelkhand village triggers caste conflict

गर्मी का मौसम शुरू होते ही बुंदेलखंड में जल संकट गहराने लगा है। वैसे तो यहां के निवासियों को योगी सरकार से बहुत सी उम्मीदें हैं लेकिन ये तो अभी दूर की कौड़ी नजर आ रही है। बुंदेलखंड में भूगर्भ से ज्यादा मात्रा में पानी का दोहन होने के कारण तमाम इलाके के लोगों में पीने के पानी के लिए मारामारी मच गई है। ग्रामीण पानी के लिए जूझ रहे हैं।

ये तस्वीर चित्रकूट के पाठा इलाके की है। इसे देखकर आप खुद अंदाजा लगा सकते हैं कि किस तरह से पानी की समस्या बढ़ रही है। लोग पानी के लिए बैलगाड़ी पर डिब्बे रखकर काफी दूर से पानी ले आ रहे हैं। कई जनपदों के क्षेत्र डार्क श्रेणी में जाने से लोग परेशान हैं। चित्रकूट के अमचूर नेरुआ ग्राम पंचायत सहित बराहमाफी, रामपुर कल्याणगढ़, लक्ष्मणपुर, नागर, शेषापुर, बगदरी, निही, रानीपुर, मउगुरदरी व कोटा कंडेला में पानी की विकराल समस्या है। स्थानीय लोगों का कहना है कि जब तक स्थाई पाइप लाइन का विस्तार नहीं होगा तब तक समस्या का कोई निदान नहीं हो सकता है।

बता दें कि बुंदेलखंड क्षेत्र टीकमगढ़, बांदा, झांसी, ललितपुर, महोबा, हमीरपुर, छतरपुर जिलों में चूना पत्थर व ग्रेनाइट की चट्टानें हैं, विंध्याचल का पर्वतीय क्षेत्र पथरीला है, हरित क्षेत्र जालौन में छह फीसद, झांसी में 6 फीसद, ललितपुर में तेरह, बांदा में एक फीसद, छतरपुर में 10 फीसद, दतिया में 9 फीसद, महोबा में 4 फीसद बन क्षेत्र है। पन्ना, सागर जिलों का हरित वन क्षेत्र नाम मात्र बचा है। केंद्रीय जल बोर्ड के आंकड़ों के मुताबिक बुंदेलखंड में 84 फीसद बारिश का जल जमीन की सतह से बह जाता है इसका प्रमुख कारण बुंदेलखंड क्षेत्र में पथरीली चट्टाने होना है, जिसके कारण भूगर्भ में जल स्तर में कोई सुधार नहीं हो पा रहा है।

बुंदेलखंड में भूमिगत जलस्तर का प्राकृतिक संवर्धन भी अब दम तोड़ रहा है, पूरे बुंदेलखंड में 83.4 फीसद क्षेत्र ग्रामीण है जिसमें 85.6 फीसद खेतीबाड़ी होती है। 58 फीसद क्षेत्र उत्तर प्रदेश व 42 फीसद क्षेत्र मध्य प्रदेश में आता है। आजादी के बाद से आज तक अधिकतर खेती बरसात के जल पर निर्भर रहती है। जालौन-हमीरपुर, बांदा, महोबा, झांसी, ललितपुर में 527 मीटर जमीन की खुदाई करने पर लगभग 4275 लीटर पानी प्रति मिनट प्राप्त हो पा रहा है। भीषण गर्मी के कारण 25.40 फीसद एमएम पानी वाष्प बन कर उड़ता है, जून के दो हफ्ते बीतने के बावजूद बारिश न होना और तेज गर्म हवाएं जनजीवन अस्त-व्यस्त कर रही है।

राजीव गांधी राष्ट्रीय पेयजल मिशन व भू वैज्ञानिक सर्वेक्षण विभाग की चेतावनी के बावजूद पूरे बुंदेलखंड में सरकार जल संकट से बचाने की ठोस योजना तैयार नहीं कर पाई। नीतियों की अनदेखी से आज बुंदेलखंड में पानी का संकट पैदा है, आदमी को झुलसा देने वाली गर्मी से ताल, तलैया, पोखर, कुएं, हैंडपंप ही नहीं हजारों चंदेल कालीन पानी के स्रोत सूखने के साथ नदियां वेतवा, केन, उर्मिल, यमुना, धसान, चंद्रावल व अन्य सहायक नदियां बढ़ते तापमान से विलुप्त होती जा रही हैं। अब देखने वाली बात ये होगी कि क्या योगी सरकार बुंदेलखंड में रहने वाले लोगों की प्यास बुझा पायेगी। गौरतलब है कि पूर्व सपा सरकार में वॉटर ट्रेन बुंदेलखंड भेजी गई थी तो खूब पानी पर राजनीति शुरू हो गई थी।

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