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लैपटॉप बाँटने के चक्कर में किताबें छपवाना भूल गई यूपी सरकार

‘सब पढ़ें-सब बढ़ें’ का नारा देने वाले उत्तर प्रदेश के सरकारी परिषदीय स्कूलों का नया सत्र तो दो जुलाई से शुरू हो गया है, लेकिन विभाग अभी तक स्कूल के बच्चों को मिलने वाली किताबें मुहैया नहीं करा पाया है। परिषदीय विद्यालयों में कक्षा एक से लेकर कक्षा आठ तक पढ़ने वाले लाखों छात्र पुरानी किताबों से काम चला रहे हैं, जो आस-पास से जुटाई गई हैं या अध्यापकों ने उपलब्ध कराई हैं।

कक्षा एक से लेकर कक्षा आठ तक के तकरीबन डेढ़ करोड़ से उपर बच्चों को जुलाई के पहले हफ्ते मे स्कूल खुलने के साथ ही मुफ्त सरकारी किताबें मिल जाती है, लेकिन इस साल टेंडर प्रकिया के विवादों मे फंस जाने और सरकारी पचड़े के चलते ये किताबें अभी तक छपाई के लिये भी नही जा पाई हैं और बच्चे बिना किताबों के पढ़ने के लिए मजबूर हैं।

फिलहाल यूपी के लगभग दो लाख प्राइमरी और मिडिल स्कूलों मे बिना किताबों के या फिर पुरानी किताबों के सहारे पढ़ाई चल रही है और इस देरी के चलते पढ़ाई में हो रहे नुकसान पर फिलहाल सरकार कुछ कहने की स्थिति मे नही है। सरकार का कहना है कि टेंडर विवाद खत्म हो गया है और अगले पंद्रह दिनों में किताबें आ जाएंगी।

बता दें कि सरकार को आने वाले दिनों बच्चों मे लगभग तेरह करोड़ किताबें छापकर बांटनी हैं। यूपी सरकार के साथ काम कर चुके पुराने प्रकाशकों का मानना है कि सरकार को इस काम को पूरा करने मे लगभग तीन महीने का समय और लग जाएगा और 15 दिनों में सरकार का किताबें बांटने का वादा खोखला है।

प्रत्येक वर्ष फरवरी मे किताबों की छपाई का टेंडर जारी हो जाता था और जून तक किताबें छपकर जुलाई में बांट दी जाती थी। मगर इस बार सरकार के आला अधिकारियों के आदेश के चलते पूरी प्रक्रिया ही लेट हो गई है। इस बार शिक्षा विभाग ने ये सरकारी आदेश जारी कर दिया कि किताबें पार्यावरण के अनुकूल कागजों पर ही छपेगीं, जबकि इससे पहले परंपरागत कागजों किताबों की छपाई हो जाती थी।

अधिकारियों का कहना है कि हाईकोर्ट के आदेश के बाद ऐसे कागजों से किताबें छापने की बात हुई थी लेकिन इसके चलते न केवल टेंडर प्रक्रिया मे देरी हुई बल्कि छपाई का खर्च भी बढ़ गया। पिछले साल टेंडर की दर एक रूपये नौ पैसे प्रति फार्म (आठ पेज) की थी जबकि इस साल ये दर एक रूपये अड़तीस पैसे हो गई, पिछले साल कुल छपाई का ठेका 200 करोड़ का था जबकि इस साल ये ठेका बढ़कर 260 करोड़ का हो गया है। जाहिर है ऐसे में सरकार खुद को मुसीबत में घिरा देखकर जल्दी ही किताबों के छपवाने की प्रक्रिया को शुरू करने की बात कर रही है। 

बेसिक शिक्षा के साथ पिछले कई सालों से काम कर रहे पुराने प्रकाशकों का आरोप है कि बेसिक शिक्षा विभाग में बड़े अधिकारियों की मनमानी चल रही है और जानबूझकर गाजियाबाद के एक फर्म को फायदा पहुचाने के लिये उनके टेंडर को रद्द कर दिया गया, जिसके विरोध मे वो हाई कोर्ट चले गए और इसके बाद टेंडर प्रक्रिया विवादों मे फंस गई। परिणाम ये हुआ कि किताबों की छपाई का काम अधर मे लटक गया और सरकार को साठ करोड़ का अतिरिक्त भार भी सहना पड़ा।

प्रदेश सरकार को ये समझना होगा कि लैपटॉप वितरण के अलावा छात्रों के लिए किताबें भी पहली प्राथमिकता हैं और इन किताबों को जल्दी छपवाने का काम शुरू किया ताकि बच्चों की पढ़ाई और ना बर्बाद हो।

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