स्कूल में पढ़ने वाले 23 फीसदी छात्र-छात्राएं तनाव की चपेट में हैं। ये हम नहीं डॉक्टर्स बताते हैं। हाल ही में हुई एक स्टडी में ये बात सामने आयी है की 23 फीसदी में से  10 फीसदी छात्र व 13 प्रतिशत छात्राएं तनाव की चपेट में आ चुके हैं। उनके तनाव की मुख्य वजह या यूं कहे कि 70 फीसद तनाव की वजह पढ़ाई है। अच्छे नंबर हासिल करने की होड़ ने बच्चों को तनाव की स्तिथि में ला दिया है। बाकी 30 प्रतिशत छात्र-छात्राएं दूसरे कारणों से तनाव की गिरफ्त में आ रहे हैं।

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आकर्षण भी बच्चों को देता है तनाव

  • राम मनोहर लोहिया अस्पताल के मानसिक रोग विशेषज्ञ डॉ. देवाशीष शुक्ला बताते है।
  • मौजूदा समय में पढ़ाई का तौर तरीका पूरी तरह से बदल चुका है।
  • अब बच्चे ज्ञान से ज्यादा अधिक नम्बर लाने पर भरोसा करते हैं।
  • अधिक नंबर हासिल करने की होड़ में बच्चे दिनों रात मेहनत करते हैं।
  • खान-पान पर ध्यान नहीं देते हैं। खेल-कूद से भी दूर हो रहे हैं।
  • मनोरंजन न होने से बच्चे आसानी से तनाव की चपेट में आ रहे हैं।
  • उन्होंने बताया कि 13से 20 साल के बच्चें के शरीर में तमाम तरह के बदलाव होते हैं।
  • लड़के व लड़कियों एक दूसरे के प्रति आकषित होते हैं।
  • यह आकर्षण भी बच्चों को तनाव की ओर ढकेल देता है।

17 फीसदी लोगों को नहीं होता तनाव 

  • डॉ. शुक्ला ने कहा कि पूरे जीवनकाल में 17 फीसदी लोग कभी न कभी तनाव की चपेट में आते हैं।
  • इसमें डॉ. देवाशीष शुक्ला ने बताया कि 50 फीसदी लोग ही मानसिक बीमारियों का इलाज कराने की ठानते हैं।
  • इनमें से 47 फीसद लोग खुद को मानसिक रोगी मानते हैं।
  • बाकी मरीज खुद को बीमार नहीं मानते हैं। नतीजतन समय पर इलाज नहीं कराते हैं।
  • समय पर इलाज से मानसिक बीमारियां पूरी तरह से ठीक हो सकती है।
  • उन्होंने बताया कि लोग समय पर इलाज नहीं कराते हैं। इलाज में देरी से मर्ज गंभीर हो जाता है।
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