बृहस्पतिवार की शाम को MBBS/ BDS की प्रवेश परीक्षा के लिये सीबीएसई ने नोटिफिकेशन जारी किया है, जिसमें उन्होंने नये नियमों को शामिल कर देश के उन लाखों छात्रों को निराशा के गर्त में धकेल दिया जो पिछले वर्षों से नीट-2018 की परीक्षा की तैयारी कर रहे थे और नोटिफिकेशन के इन्तजार में थे।
क्या हैं नए नियम
1. नीट-परीक्षा में शामिल होने के लिए अधिकतम उम्र सीमा तय कर दी गयी है जो कि सामान्य वर्ग के निये 25 वर्ष व एससी/एसटी/ओबीसी के लिये 30 वर्ष है।
2. प्राइवेट छात्र और मुक्त विद्यालयों के छात्र परीक्षा में नहीं शामिल हो सकेगें।
3. परीक्षा में शामिल होने के लिए यह भी जरूरी है कि छात्र ने ग्यारहवीं व बारहवीं लगातार वर्षों में किया है। अगर एक या अधिक वर्ष का गैप है तब वह परीक्षा में शामिल नहीं हो पायेगा।
क्या है अपर एज लिमिट का पूरा मामला
नीट होने से पहले उप्र के सरकारी व निजी मेडिकल कालेजों की 85 प्रतिशत शीटों पर प्रवेश CPMT के माध्यम से होता था, जिसमें कोई अपर एज लिमिट नहीं थी। मेडिकल शिक्षा की सर्वोच्च संस्था मेडिकल काउंसिल आफ इण्डिया के रेगुलेशन में भी अपर एज लिमिट नहीं थी। पिछले साल नीट-2017 के नोटिफिकेशन में अपर एज लिमिट लगा दी गयी थी, जिसके विरोध में स्वराज आन्दोलन ट्रस्ट की ओर से छात्रों ने इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच में 07 फरवरी 2017 को मुकदमा दायर किया था।
जिस पर न्यायमूर्ति ने अधिकतम उम्र सीमा के फैसले को गलत करार दिया था। कुछ अन्य राज्यों के छात्र सुप्रीम कोर्ट चले गये थे। समान मामला सुप्रीम कोर्ट में होने के कारण इलाहाबाद हाईकोर्ट से कोई अंतिम फैसला नहीं हो पाया था। अंततः 30 मार्च को माननीय सुप्रीम कोर्ट ने अधिकतम उम्र सीमा को गलत करार दिया, तब जाकर कहीं छात्र 01 अप्रैल से 05 अप्रैल के बीच आवेदन कर पाये थे, अलग से पांच दिनों के लिए बेवसाईट खोली गयी थी।
इस वर्ष नोटिफिकेशन जारी करने से पहले एम.सी.आई. ने रेगुलेशंस ऑन मेडिकल ग्रेजुएट मेडिकल एजूकेशन-1997 में संशोधन करके अधिकतम उम्र सीमा लागू कर दी है। यह पूरी तरह से मोदी सरकार के इशारे पर हुआ है।
अधिकतम उम्र सीमा क्यों गलत है?
1. MBBS/ BDS का कोर्स केवल पढ़ाई है, कोई सरकारी नौकरी नहीं, यह संशोधन पढ़ने का अधिकार छीनने वाला है।
2. पूरे देश में सभी सरकारी व निजी मेडिकल काॅलेजों में MBBS/BDS कोर्स में प्रवेश की एकल परीक्षा है। जिसका नाम नीट है। इसके अलावा MBBS/BDS कोर्स मेें प्रवेश का अन्य कोई रास्ता नहीं है। उदाहरण के लिये अपर एज लिमिट होने के कारण जो छात्र आई.आई.टी. से इंजीनियरिंग नहीं कर सकते, वे अन्य संस्थानों से कर लेते हैं, क्योंकि ए.आई.सी.टी.ई में अपर एज लिमिट नहीं है। क्लैट मे सुप्रीम कोर्ट ने अधिकतम उम्र सीमा समाप्त की थी।
3. ग्रामीण क्षेत्रों से निकले बहुत सारे छात्र बी.एस.सी. करने के बाद मेडिकल प्रवेश परीक्षा की तैयारी करते हैं। जिससे उनकी उम्र ज्यादा हो जाती है, वे परीक्षा बाहर हो जायेगें। पूर्व में ऐसे छात्र सफल होकर आज समाज को अच्छी चिकित्सा सेवा दे रहे हैं।
प्राइवेट छात्र व मुक्त छात्रों को परीक्षा में शामिल होने से रोकना क्यों गलत है?
समाज में बहुत सारे छात्र जो प्रतिभाशाली तो होते हैं लेकिन आर्थिक, बीमारी या पारिवारिक कारणों से प्राइवेट पढ़ाई करते हैं या मुक्त विद्यालयों से करते हैं या बीच में एक आध साल का गैप हो जाता है। उन्हें परीक्षा में शामिल न होने देना अमानवीयता की हद है, अगर वे काबिल नहीं होगें तब मेरिट में नहीं आयेगें, इसमें सरकार को समस्या क्या है? मोदी सरकार ने सामान्य वर्ग (ब्राम्हण, क्षत्रिय, कायस्थ, मुस्लिम, वैश्य) समाज के 25 वर्ष के ऊपर छात्रों को गाली दी।
घनश्याम श्रीवास्तव ने बताया कि पिछले वर्ष जब अपर एज लिमिट को लेकर उच्च न्यायालय की लखनऊ खण्डपीठ में मुकदमा चल रहा था (केस नं0-3570 आफ 2017) तब मोदी सरकार की ओर से एक शपथ पत्र दाखिल किया गया था, जिसके पैरा-5 में सामान्य वर्ग के 25 वर्ष से ऊपर के छात्रों को कपटी, अनैतिकतावादी व धोखेबाज कहा था, यह घोर आपत्तिजनक है, करोड़ों की आबादी का अपमान है।
आम आदमी पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता वैभव माहेश्वरी ने कहा कि, अभी तक बी.जे.पी. दलित व मुस्लिम विरोधी ही थी, लेकिन अब बी.जे.पी. सामान्य वर्ग के वे युवा जो 25 वर्ष की आयु पूरी कर चुके हैं उनको शपथ पत्र लेकर गाली दे रही है। उन्होंने कहा कि “पार्टी” बीजेपी के इस कृत्य की घोर निन्दा करती है। पार्टी की मांग है कि इस अपमानजनक नियम को तत्काल समाप्त किया जाये।
पार्टी प्रवक्ता ने बतया कि, इस मामले में संघर्ष कर रहे पीड़ित छात्रो के संवैधानिक अधिकार के लिए आम आदमी पार्टी सुप्रीम कोर्ट का भी दरवाजा खटखटाएगी। इसके अलावा इस असंवैधानिक फैसले के खिलाफ पार्टी तमाम छात्रों के साथ सड़क पर विरोध प्रदर्शन भी करेगी।