हिंदू धर्म में गोबर का अपना एक धार्मिक महत्व है। पूजा से लेकर अंत्येष्टि तक में इसका प्रयोग किया जाता है। नगर निगम ने पूजा के लिए गोबर से धूपबत्ती और अंत्येष्टि के लिए गोबर के लट्ठ बनवाना शुरू कर दिया है। कान्हा उपवन में 43 सौ गोवंश से प्रतिदिन निकलने वाले करीब पांच टन गोबर से यह काम हो रहा है। इसके लिए डूडा की स्वयं सहायता समूह की महिलाओं को गोबर का उपयोग करने का प्रशिक्षण दिलाया गया है। कानपुर की एक गौशाला से प्रशिक्षण लेकर लौटीं महिलाएं गोबर से लट्ठ और धूपबत्ती बना रही हैं।
ऐसे तैयार की जा रही सुगंधयुक्त धूपबत्ती
गोबर में भूसा, मंदिरों में चढ़ाए गए फूल और सुगंध मिलाकर मशीन के माध्यम से धूप बत्ती बनाई जा रही है। नगर निगम के मुख्य पशुचिकित्साधिकारी डॉ. अरविंद राव ने बताया कि वर्तमान समय में तैयार की गई गोबर से धूपबत्ती में अलग-अलग तरह की सुगंध मिलेगी। इसी तरह से चिता के लिए एक-एक फीट लंबे लट्ठ बनाए जा रहे हैं। गोबर में भूसा मिलाकर इसे भी मशीन से तैयार किया जा रहा है। गोबर से तैयार लट्ठ का उपयोग होने से अत्येष्टि में लकड़ी की खपत तीस प्रतिशत तक कम हो जाएगी।
धूपबत्ती को बाजार में बेचेगा नगर निगम
नगर निगम धूपबत्ती को बाजार में बेचेगा तो गोबर से तैयार लट्ठ को श्मशान घाट पर रखेगा, जिसे लोग लकड़ी के साथ उसका उपयोग कर सकेंगे। इससे चिता में लगने वाली लकड़ी में तीस प्रतिशत तक की कमी आएगी। अपर नगर आयुक्त अनिल कुमार मिश्र ने बताया कि शासन के निर्देश पर ही नगर निगम ने यह योजना तैयार कर काम शुरू कर दिया है। यह पायलट प्रोजेक्ट है और सफल होने पर इसे अन्य शहरों में भी लागू किया जाएगा। उन्होंने बताया कि इस प्रोजेक्ट से मंदिरों में चढ़े हुए फूल के निस्तारण की समस्या भी खत्म हो जाएगी। धूपबत्ती बनाने में उसका उपयोग होगा।
गोबर से केंचुआ बनाई जा रही केंचुआ की खाद
गोबर से केंचुआ की खाद भी बनाई जा रही है। गोबर का उपयोग पहले बॉयोगैस बनाने में हो रहा है, जिससे कान्हा उपवन में जनरेटर और रसोई गैस का उपयोग रहा है। बायोगैस बनने के बाद अनुपयोगी गोबर को बाहर निकालकर उसमें केंचुआ डाला जाता है। केंचुआ वहां जो मल त्याग करता है, उससे खाद तैयार होती है। धूपबत्ती और लट्ठ बनाने के लिए मशीन मंगाई गई है। इस योजना से जहां गोबर का उपयोग होगा, वहीं नगर निगम की आय भी होगी।