जनपद ग़ाज़ीपुर का जिला अस्पताल इस समय डॉक्टरों की कमी की गंभीर समस्या से जूझ रहा है। जिला अस्पताल में इस समय 26 के सापेक्ष मात्र 12 डॉक्टर नियुक्त हैं और हालात ये हैं कि इस समय जिला अस्पताल में एक सर्जन तक नही है और न ही कोई हड्डी का डॉक्टर है जिनकी जरूरत सबसे ज्यादा पड़ती है।
सातों विधानसभा पर भाजपा काबिज फिर भी हालत बद्दतर :
ये हालात तब हैं जब जनपद से सांसद और रेल व संचार राज्य मंत्री मनोज सिन्हा हैं तो वहीं जनपद की 7 विधानसभा में से 5 पर बीजेपी और उसकी सहयोगी पार्टी काबिज है।
अभी कुछ दिनों पूर्व सदर बीजेपी विधायक संगीता बलवंत ने दावा किया था कि उनके प्रयास से जनपद में 60 नये डॉक्टर नियुक्त हुये हैं और इससे संबंधित बड़ा- बड़ा पोस्ट भी सोशल मीडिया पर किया था।
ऐसे में सवाल उठता है कि क्या जनप्रतिनिधि अब जनता से ऐसे सफेद झूठ भी बोलने लगें हैं। कम से कम जनपद ग़ाज़ीपुर में तो ऐसा ही होता दिख रहा है क्योंकि अभी तक विधायक जी के 60 डॉक्टरों का कहीं अता-पता नही है और जिला अस्पताल बदहाली का शिकार बना हुआ है।
भव्य इमारत पर खोखली व्यवस्था:
गाजीपुर का यह नया बना भव्य जिला अस्पताल है, जिसकी क्षमता 200 बेड की है। अस्पताल की बिल्डिंग तो भव्य है लेकिन यह अंदर से पूरी तरह से खोखला है।
आखिर यह खोखला क्यों है आइए हम आपको बताते हैं, गाजीपुर के जिला अस्पताल में कुल 26 डॉक्टरों का पद सृजित है लेकिन मौजूदा समय में यहां कुल मिलाकर 12 डॉक्टर ही नियुक्त हैं.
यहां पर सर्जन की कमी पिछले 1 साल से है. कार्डियोजलिस्ट की भी स्थिति कुछ ऐसी ही है .
हड्डियों का एक भी डॉक्टर नहीं:
सबसे हैरान करने वाली स्थिति यह है कि यहां आए दिन दुर्घटनाएं होती रहती हैं. बावजूद इसके हड्डी से संबंधित डॉक्टर भी यहां नहीं है।
एक तो यहां डॉक्टरों की भारी कमी है, वही यहां जो भी डॉक्टर हैं या तो वो खुद अपना यहां से काम के बोझ के चलते ट्रांसफर करवा कर किसी अन्य जिले में चले जा रहे हैं या फिर शासन के द्वारा उनका ट्रांसफर कर दिया जा रहा है.
लेकिन उनकी जगह पर किसी अन्य की नियुक्ति नहीं की जा रही है. ऐसा भी नहीं कि यह समस्या ऐसे हैं बल्कि यह समस्या समाजवादी पार्टी की सरकार थी तब से बनी हुई है.
डॉक्टर करवा रहे ट्रांसफर:
मौजूदा समय में जिला अस्पताल में दो फिजीशियन थे. जिसमें से एक डॉक्टर अनिल कुमार काम के बोझ के चलते उन्होंने अपना ट्रांसफर खुद करवा लिया वही सर्जन का भी ट्रांसफर किया जा चुका है. इसके साथ ही एक अन्य डॉक्टर जिनकी नियुक्ति सीएमओ के द्वारा जिला अस्पताल में किया गया था, उन्होंने भी अपना ट्रांसफर करवा लिया।
अगर ऐसे ही डॉक्टरों का ट्रांसफर होता रहे और उनकी जगह कोई अन्य डॉ नहीं आयेंगे तो जिले की स्वास्थ्य व्यवस्था क्या होगी कल्पना की जा सकती है और जब ऐसी स्वास्थ्य व्यवस्था हो तो शासन के प्रतिनिधि के रूप में सांसद और विधायक जो चुनाव के वक्त लोगों से बड़े-बड़े दावे करते हैं, उनके रहने का क्या फायदा।
मरीजों को परेशानी:
यह तो रही डॉक्टरों की बात आइए अब इन डॉक्टरों के ना होने से आमजन को क्या परेशानी हो रही है उसके बारे में भी जानने का प्रयास करते हैं. गांव के दूरदराज इलाकों से बेहतर इलाज के उम्मीद लिए इस अस्पताल में पहुंचे.
मरीज और उनके तीमारदार घंटों इंतजार के बाद भी जब कोई डॉक्टर नहीं मिला तो उनका दर्द छलक पड़ा और उन लोगों ने अपना दर्द हमसे साझा किया।
अब सवाल उठता है की प्रदेश की स्वास्थ्य सुविधाओं को बेहतर करने का दावा करने वाली प्रदेश सरकार के दावों में कितना दम है।
स्वास्थ्य सुविधा में नाम पर लाखों करोड़ों खर्च तो होते हैं पर आमजन को मजबूरी में आखिरकार प्राइवेट नर्सिंग होम का सहारा लेना पड़ता है जो उनका जमकर शोषण करते हैं.
ऐसे मरीज जो महंगा इलाज नही करा सकते वो इलाज के अभाव में असमय काल के गाल में चले जाते हैं। कहा जा सकता है सरकारें संवेदनहीन हो चुकी हैं. आमजन को वो वोट बैंक से ज्यादा कुछ नही समझती हैं।
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