बहराइच: डॉक्टर बलमीत कौर ने अपना सारा जीवन दिव्यांगों के प्रति किया समर्पित
- बहराइच में मानसिक रूप से निशक्त और दिव्यांग बच्चों को स्वावलंबी और सक्षम जोधा बना कर समाज में सम्मानित स्थान दिलाने का संकल्प लेने वाली बहराइच की डॉक्टर बलमीत कौर अपना सारा जीवन निशक्त बच्चों की सेवा के लिए समर्पित कर दिया है
- उन्होंने मानसिक रूप से निशक्त और दिव्यांग बच्चों के भविष्य को सुधारने के लिए जीवन भर अविवाहित रहने का संकल्प लिया है
उन्होंने दिव्यांग बच्चों के लिए अपना और अपने परिवार के अंग मेडिकल कॉलेज को दान कर दिए हैं
- ताकि उनकी मृत्यु के उपरांत वह किसी दिव्यांग के काम आ सके
- उनको उनकी सेवाओं के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और राज्यपाल राम नाईक द्वारा सम्मानित किया जा चुका है ।
- कहते हैं इंसान अपने लिए जिया तो क्या जिया इंसान वह है जो दूसरों की जिंदगी से अंधकार मिटा कर प्रकाश लाए
- कुछ ऐसे ही जज्बात है मानसिक रूप से और दिव्यांग बच्चों के लिए अपनी जिंदगी समर्पित करने वाली डॉक्टर मनमीत कौर की जिन्होंने अपनी जिंदगी को अंधेरे में रखकर निशक्त बच्चों के चेहरे पर मुस्कान
- और जिंदगी में प्रकाश लाने का बीड़ा उठाया ।
- उन्होंने बताया कि मानसिक रूप से निशक और दिव्यांग बच्चों की दशा देखकर उन्हें बचपन से ही पीड़ा होती थी ।
- शिक्षा ग्रहण करने के बाद 1992 में डॉ बलजीत कौर ने बाबा सुंदर सिंह मुख बधिर विद्यालय की स्थापना की ।
- जिसके माध्यम से बच्चों की सेवा शुरू की ।
- बचपन में उनके छोटे भाई और मोहल्ले के आसपास के रहने वाले दिव्याजी और मानसिक रूप से निशक्त बच्चों को देख कर उन्होंने सेवा का संकल्प लिया ।
- वह बताती है की शुरुआती दौर में उन्हें लोगों के ताने सहने पड़े ।
- लेकिन मानसिक रूप से निशक्त और दिव्यांग बच्चों की सेवा और समर्पण के लिए उनके बढ़ते कदम उनके पांव की जंजीर नहीं बन सके ।
- चंद्र सालों के अथक परिश्रम और लगन से डॉक्टर कौर ने यह साबित कर दिया कि निशक्त बच्चे मजबूर और लाचार नहीं है ।
- वह बेहतर कर सकते हैं ।
पढ़ लिखकर समाज के लिए मिसाल पेश कर सकते हैं
- डॉक्टर कौर कहती है कि विद्यालय के दर्जनों बच्चे उच्च शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं ।
- दर्जनों बच्चे पढ़ लिख कर रोजी रोटी कमाने लगे हैं ।
- भले ही सरकारी संसाधनों के अभाव में यह विद्यालय छप्पर और टीन के पुराने कच्चे मकान में चल रहा हो संसाधन सीमित हो ।
- लेकिन जिस सीमित संसाधनों से विद्यालय 26 सालों से चल रहा है
- जिसमें सैकड़ों निशक्त बच्चे पढ़ लिख कर आत्मनिर्भर बनकर समाज में स्थापित हो चुके हैं ।
- उनके हौसले को सलाम है ।
- डॉक्टर कौर सरकारी मशीनरी के क्रियाकलापों से संतुष्ट नहीं है ।
- लेकिन मानसिक रूप से निशक्त और दिव्यांग बच्चों को स्वावलंबी और सक्षम योद्धा बना कर समाज में सम्मानित स्थान दिलाने का संकल्प लेने वाली बलवीर कौर का हौसला बरकरार है ।
- वह अपनी अंतिम सांसों तक उनके लिए समर्पित रहने की बात कह रही है।
- कौन कहता है आसमान में सुराख नहीं हो सकता एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारो किसी शायर की लिखी हुई
- यह पंक्तियां बहराइच की बलजीत कौर पर सटीक बैठती है
- उन्होंने मानसिक रूप से निश्चित तौर दिव्यांग बच्चों को आत्मनिर्भर बनाने और समाज में सम्मानित स्थान दिलाने के लिए अपना जीवन कुर्बान कर दिया
- उनके समापन से आज सैकड़ों बच्चे आत्मनिर्भर हो कर खुशहाल जिंदगी जी रहे हैं ।
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