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लखनऊ। भाजपा की सरकार बनते ही उत्तर प्रदेश भर में अवैध बूचड़खानों को बंद करने का फरमान जारी होने के बाद पता चला कि नाम चीन होटलों और रेस्टोरेंटों में नॉनवेज के शौकीन कुत्तों, बीमार और मरे हुए पशुओं का मांस तक खा रहे थे। इसका खुलासा पिछले दिनों नौशीजान रेस्टोरेंट के मालिक शमीम शम्सी ने uttarpradesh.org के माध्यम से सबसे पहले किया था। अब हम आप के सामने एक ऐसा सनसनीखेज खुलासा करने जा रहे हैं जिसे सुनकर आपको रोंगटे खड़े हो जाएंगे।
नोट: यह रिपोर्ट लखनऊ में सुधीर कुमार और कमल तिवारी व मेरठ में गौरव सिंह सेंगर की तहकीकात पर आधारित है , तस्वीरें हम आपको धुंधली कर ही दिखा पाएंगे, क्यूंकि वास्तविक तस्वीर आपको विचलित कर सकती है ।
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आखिर कहां जा रहे पकड़े गए आवारा कुत्ते?
अगर आपके मोहल्ले में या घर के आसपास कहीं आवारा कुत्ते तांडव मचा रहे हैं तो जाहिर सी बात है कि आप नगर निगम में शिकायत कर इन्हें पकड़ने के लिए कहेंगे। नगर निगम की टीम मौके पर पहुंच कर इन आवारा कुत्तों को पकड़कर भी ले जाती है। लेकिन क्या आप को पता है कि यह कुत्ते कहां जा रहे हैं? इसका आप को अंदाजा भी नहीं होगा। इस मामले में जानवरों की सुरक्षा के लिए काम कर रहे श्रीमती सिंह व उनकी टीम लोगों ने आशंका जताई है कि यह कुत्ते नगर निगम के दस्ते द्वारा पकड़कर कत्लखानों में बेच दिया जाता है। इन कुत्तों का मीट देश ही नहीं विदेशों तक भेजा जाता है।
क्यों उठ रहे ऐसे सवाल?
यह सवाल जागरूक नागरिकों की जुबान पर इसलिए आ रहे हैं क्योकि नगर निगम के द्वारा जो कुत्ते पकड़े जाते हैं वह जहां पहुंचना चाहिए वहां नहीं पहुंच रहे हैं बल्कि कहीं और जा रहे हैं। एक मोहल्ले या झुंड में रह रहे सारे कुत्ते एक जैसे नहीं होते। अगर कोई कुत्ता काटने वाला है तो नगर निगम का दस्ता केवल उसे ना पकड़कर पूरे झुण्ड को पकड़कर ले जाता है? लोगों ने आशंका व्यक्त करते हुए कहा कि इन कुत्तों को कान्हा उपवन में ना ले जाकर रास्ते से ही गायब कर दिया जाता है और बहाना बनाया जाता है कि कुत्ते भाग गए। इन कुत्तों को पकड़ने और छोड़ने का रिकॉर्ड भी नगर निगम देने से कतरा रहा है। अगर कोई कुत्ता मर जाता है तो उसे मरने के बाद कहां दफनाया जाता है इसका भी जिम्मेदारों को पता नहीं है? अब ऐसे में सवाल उठता है कि क्या सिर्फ कागजों पर कुत्ते पकड़े और छोड़े जा रहे हैं। या फिर इन कुत्तों को पकड़कर नगरनिगम के कर्मचारी किसी बूचड़खाने में बेच रहे हैं यह तो जांच का विषय है।
जबरन पकड़ते हैं कुत्ते
नगर निगम के कर्मचारियों पर मोहल्लों से जबरन कुत्ते पकड़ने का आरोप है। आरोप है कि अगर एक खूंखार कुत्ते की शिकायत की जाती है तो यह कर्मचारी मोहल्ले के कई कुत्ते पकड़कर ले आते हैं। पिछले दिनों एक शिकायत पर नगर निगम के कर्मचारी पीजीआई इलाके से 8 कुत्ते उठा लाये थे। इनमें एक पीजीआई के डॉक्टर का भी पालतू कुत्ता जबरन उठा लाया गया। जब उन्होंने इस संबंध में नगर निगम के पशु चिकित्सा अधिकारी अरविन्द राव से जानकारी ली तो पता चला कि उसे गोमतीनगर स्थित फन माल के पास छोड़ा गया है। लेकिन पीड़ित ने जब फन के आसपास कई दिनों तक ढूंढा लेकिन कुत्ता नहीं मिला। आरोप है कि अगर कुत्ते को किसी दूसरे मोहल्ले या गली में छोड़ा जायेगा तो वहां पहले से रह रहे कुत्ते उसे काटेंगे। इतना ही नहीं पालतू कुत्ता नाम से और आवाज से आ जायेगा। लेकिन ऐसा नहीं हुआ यह कुत्ते कहां गए इसका किसी के पास जबाव नहीं है। यह एक किस्सा महज बानगी भर है पूरे शहर में नगर निगम ने एक साल में हजारों कुत्ते पकड़े लेकिन यह कुत्ते कहां गए इसका जबाव अधिकारियों के पास नहीं है।
अव्यवस्थाओं का रोते हैं रोना
पशुओं के रखरखाव और खाने के इंतजाम के लिए अधिकारी अव्यवस्थाओं का रोना रोते नजर आते दिख जायेंगे। एनजीओ ‘जीवाश्रय‘ के तहत कान्हा उपवन और कुत्तों का अस्पताल ‘एसपीसीए’ काम करता है। लेकिन कान्हा उपवन में अव्यस्थाओं की भरमार है। यहां जब अधिकारी निरीक्षण करते हैं तो उन्हें फ्रंट वाली गौशाला में दुधारू पशु और अन्य पशु दिखाकर बेहतर व्यवस्था की खानापूर्ति कर दी जाती है। लेकिन पीछे की साइड बाड़ों में पशुओं के बैठने तक की जगह नहीं है। तादात से ज्यादा इन बाड़ों में पशु कैद किये गए हैं। इनको खाने तक को उचित मात्रा में कुछ नहीं दिया जाता है। वहीं कान्हा उपवन के जिम्मेदार कहते हैं कि सरकार और नगर निगम द्वारा कोई सहायता नहीं दी जाती है। नगर निगम के अधिकारी कहते हैं कि पशुओं के खाने के लिए सब दिया जाता है। अब ऐसे में किसकी बात मानी जाये यह समझ से परे है।
क्या कहते हैं जिम्मेदार
कान्हा उपवन के इंचार्ज यतेंद्र त्रिवेदी ने इस संबंध में बताया कि जो कुत्ते पकड़कर आते हैं उन्हें अलग-अलग बाड़ों में जगह का नाम सहित बंद किया जाता है। इन कुत्तों को रिलोकेट नहीं किया जा सकता है। उनका कहना है कि स्थिति सुधरने पर इन कुत्तों को उसी जगह छोड़ दिया जाता है जहां से यह पकड़कर लाये जाते हैं। लेकिन उनके इस कथन को आंकड़े झूठा साबित कर रहे हैं। क्योकि ऐसे कई इलाके हैं जहां से कुत्ते पकड़े तो गए लेकिन कभी नगर निगम वहां छोड़ने नहीं गया। ऐसा अलीगंज और पीजीआई सहित कई क्षेत्रों के लोग कह रहे हैं।
यहां वास्तव में दिक्कत
वहीं पशुओं के अस्पताल ‘एसपीसीए’ के सेंटर मैनेजर विक्रांत ने बताया कि उनके यहां करीब 4-5 कुत्ते भर्ती होते हैं। इन कुत्तों को जहां से लाया गया है और छोड़ा गया है इसका पूरा रिकॉर्ड उनके पास में दर्ज रहता है। उन्होंने हमारी टीम को कई तस्वीरें भी दिखाईं इनमें ख़राब स्थित में लाये गए कुत्ते और इलाज के बाद उनकी स्थिति को दिखाया गया है। उनके मुताबिक पिछले दो साल में करीब 2000 कुत्तों को सही किया जा चुका है। विक्रांत ने बताया कि अस्पताल में अव्यवस्था भी है यहां की बिजली भी बिल ना जमा होने से काट दी गई इससे दिक्कत हो रही है। नगर निगम फंडिंग नहीं कर रहा है सब काम डोनेशन के आधार पर चल रहा है।
भागे-भागे फिर रहे नगर निगम के पशु चिकित्सा अधिकारी:
इस पूरे प्रकरण में पड़ताल के दौरान कई बार लखनऊ नगर निगम के पशु चिकित्सा अधिकारी से बातकर आवारा कुत्तों के बारे में जानकारी लेने की कोशिश की गई लेकिन पशु चिकित्सा अधिकारी आना-कानी करते रहे और कभी-कभार फोन उठाने पर गोलमोल बातें करते दिखाई दिए. लगातार 4 दिन के प्रयास के बावजूद पशु चिकित्सा अधिकारी ने आवारा कुत्तों से जुड़ी जानकारी नहीं उपलब्ध कराई. और ना ही ये बताया कि मरे हुए कुत्तों के साथ क्या किया जाता है और उन्हें कौन लेकर जाता है या फिर कुत्तों को ले जाने वाला मरे हुए कुत्तों के साथ क्या करता है?
वहीँ सबसे हैरान करने वाला वाकया मेरठ जिले का है जहाँ कि नगर आयुक्त को यही नहीं मालूम कि पशु चिकित्सा अधिकारी बैठते कहाँ हैं और उनका नंबर क्या है, यहाँ तक कि ऑफिस आने या न आने को लेकर भी कोई जानकारी मेरठ नगर आयुक्त के पास नहीं है. कुत्ते पकड़ने वाले दस्ते के कर्मचारियों ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि जो भी आंकड़े हैं ज्यादातर मौखिक ही होते हैं. मेरठ नगर निगम के अधिकारी या तो फोन नहीं उठाते हैं या फोन उठाने के बाद कहते हैं कि फलां अधिकारी जानकारी देंगे और ऐसे ही गोल-गोल घुमाते रहते हैं लेकिन कोई भी जानकारी देने से कतराते रहते हैं.
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