बाढ़ के रूप में प्राकृतिक आपदा ने उत्तर प्रदेश में कई लाख लोगों को अपना शिकार बनाया है. इसी बाढ़ ने सूबे के पूर्वी इलाके में अपना खौफनाक मंजर कई बार दिखाया है जिसमें लाखों लोग अब तक अपना सबकुछ गंवा चुके हैं और गांव-घर छोड़कर अन्यत्र रहने को मजबूर हैं. ऐसे ही खौफनाक मंजर का शिकार बलिया जिले का एक गांव लगातार होता रहा है. बता दें कि गंगा की कटान में दूबेछपरा के आसपास के दर्जनों गांव नदी में पहले ही समाहित हो चुके है और अब ये गांव अपने अस्तित्व को बचाने की लड़ाई लड़ रहा है.
40 हजार लोगों की जिंदगी खतरे में:
27 अगस्त 2016 की सुबह ग्राम पंचायत गोपालपुर के लोगों के लिए मुसीबतों का पहाड़ लेकर आई. ग्रामीणों के तीन दिन के अथक प्रयासों के बावजूद दूबेछपरा रिंगबांध को बचाया नहीं जा सका और बांध टूट गया. गंगा की तेज धार को रोकने में अक्षम ये जर्जर हो चुका बांध प्रशासन की लापरवाही का जीता-जागता सबूत है. रिंग बांध से घिरे ग्राम पंचायत की आबादी 6 हजार से अधिक है जबकि इस बांध के टूटने के बाद करीब 40 हजार लोगों का जनजीवन प्रभावित हुआ. पूरा का पूरा गांव जलमग्न हो गया और घरों की चौखट पर गंगा की लहरें तांडव कर रही थीं.
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खुले आसमान के नीचे रहने को मजबूर थे लोग:
अपने आशियाने को छोड़कर लोग सड़कों पर आ चुके थे. अपने छोटे-छोटे बच्चों को लेकर सैकड़ों परिवार खुले आसमान के नीचे जिंदगी बसर करने को मजबूर हो चुके थे. एक तरफ जहाँ इन परिवारों के पास रहने का कोई ठिकाना नहीं था, वहीँ इनको मवेशियों की चिंता भी सता रही थी. खेतों में खड़ी फसल तबाह गई थी और झुग्गी-झोपड़ियां गंगा की तेज धार में बह चुकी थी. लाखों की संपत्ति का नुकसान हो चुका था लेकिन इसकी सुध लेना वाला कोई नहीं था. राहत के नाम पर चंद नाव प्रशासन ने मुहैया कराई लेकिन वो नाकाफी साबित हुआ. लोगों को राशन और पीने के साफ़ पानी के लिए तरसना पड़ा. खुले आसमान के नीचे कड़कड़ाती धुप में दिन गुजारने को मजबूर थे तो वहीँ बारिश से बचने का कोई उपाय नहीं था.
बांध टूटा लेकिन प्रशासन की नींद नहीं टूटी:
- दूबेछपरा रिंग बांध की मरम्मत के लिए 9 करोड़ का बजट आया था.
- लेकिन मानकों की धज्जियाँ उड़ाते हुए मरम्मत के नाम पर लीपापोती कर दी गई.
- मिट्टी की जगह बांध को चंद बोरी रेत से भर दिया गया.
- सिंचाई विभाग के इंजीनियर और इंचार्ज द्वारा अपनी मनमानी की की जाती रही.
- वहीँ ग्रामीणों की अनेक शिकायत के बाद भी पिछली सरकार ने इस बांध को लेकर गंभीरता नहीं दिखाई.
- नतीजा ये हुआ कि गंगा की तेज धार को ये जर्जर बांध नहीं रोक सका और टूट गया.
- लेकिन इसके पीछे प्रशासन की लापरवाही भी कम जिम्मेदार नहीं रही.
- इसके पहले 2003 और 2013 में ये बांध टूटा लेकिन प्रशासन की नींद अभी तक नहीं टूटी.
अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है दूबेछपरा गांव:
- रिंग बांध टूटने के 8 महीने बाद भी अभी तक इसकी मरम्मत और गाँव बचाने के लिए ठोकर निर्माण को लेकर प्रशासन मौन है.
- अगर इस साल बाढ़ आई तो ये गाँव अपना अस्तित्व खो देगा.
- सरकारी संपत्ति के रूप में इस गाँव में प्राइमरी स्कूल, कन्या विद्यालय, इंटरमीडिएट कॉलेज और पीजी कॉलेज भी है.
- ग्रामीण बैंक के साथ पोस्ट ऑफिस, और पानी की टंकी भी मौजूद है.
- एक सरकारी अस्पताल भी इस गाँव में है.
- बलिया जिले से लगभग 28 किलोमीटर दूर स्थित ये गाँव बैरिया विधानसभा अंतर्गत आता है.
- जहाँ वर्तमान विधायक भाजपा के सुरेन्द्र सिंह हैं.
- इसके पहले सपा के जेपी अंचल विधायक थे जिन्होंने इस बांध की सुध नहीं ली.
- इस जिले में पहले भी सरकार के तीन मंत्री रह चुके हैं लेकिन ये जिला लगातार उपेक्षा का शिकार रहा है और आये दिन बाढ़ के आगोश में गांव के गांव समाते जा रहे हैं.
बांध की मरम्मत का काम नहीं हुआ अभी भी शुरू:
वर्तमान सरकार में उपेन्द्र तिवारी के अलावा स्वाति सिंह भी भाजपा सरकार में मंत्री हैं जो कि बलिया जिले की हैं. गांव के नागरिकों ने कई बार प्रयास किया लेकिन अभी भी इस बांध की मरम्मत और ठोकर निर्माण का काम शुरू नहीं हो सका है. बाढ़ की त्रासदी झेल रहे इस गाँव के लोगों को नई सरकार से अपेक्षाएं हैं लेकिन इस दिशा में अभी कोई ठोस कदम नहीं उठाये जा रहे हैं. सिंचाई विभाग के इंजीनियर के अनुसार, रिंग की मरम्मत के लिए प्रस्तावित 29 करोड़ रूपये के बजट को पिछली सरकार ने मंजूरी नहीं और अब चुनाव बाद भी इसको लेकर विभाग सोया हुआ है.
रिंग बांध की मरम्मत के अलावा तीन ठोकरों के निर्माण का प्रस्ताव भी है लेकिन किसी प्रकार का काम अभी शुरू नहीं हुआ है. बरसात के मौसम में नदी का जलस्तर बढ़ने लगता है और ऐसे में अगर इस साल गंगा का जलस्तर बढ़ा तो इस गांव के लोगों के लिए वज्रपात से कम नहीं होगा और ये गाँव इतिहास बनकर रह जायेगा.