आरक्षण बचाओ संघर्ष समिति, उप्र की आज एक आवश्यक बैठक बुलाई गई। जिसमें प्रदेश के इंजीनियरिंग कालेजों व प्रबन्धन संस्थानों में निःशुल्क आधार पर प्रवेश प्राप्त लगभग एक लाख अनुसूचित जाति/जनजाति के छात्रों से असंवैधानिक तरीके से सेमेस्टरवार परीक्षाओं का शुल्क वसूलने की कोशिश पर आक्रोश प्रकट करते हुये तत्काल प्रभाव से रोक लगाने की माॅग की गई। (engineering colleges)
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शासनादेश की गलत व्याख्या
- संघर्ष समिति के नेताओं ने समाज कल्याण निदेशक द्वारा प्राविधिक विश्वविद्यालय के कुलपति व जिलों के समस्त समाज कल्याण अधिकारियों को सरकार के शासनादेश दिनांक 20 सितम्बर 2014 की गलत व्याख्या की।
- उन्होंने कहा कि निःशुल्क आधार पर प्रवेश पाये अनुसूचित जाति व जनजाति के छात्रों से परीक्षा शुल्क वसूला जा रहा है, ये गैरकानूनी है। (engineering colleges)
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- उन्होंने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ व समाज कल्याण मंत्री रमापति शास्त्री से तत्काल एक लाख छात्रों के भविष्य को देखते हुये पूरे मामले पर हस्तक्षेप की माॅग की है।
- यह भी मुद्दा उठाया है कि सरकार अपने शासनादेश का शत-प्रतिशत अनुपालन कराये।
- संघर्ष समिति का संयोजक मण्डल जल्द ही प्रदेश के मुख्यमंत्री व समाज कल्याण मंत्री से मुलाकात कर गलत निर्देश को तत्काल वापस लेने की माॅग उठायेगा।
- जरूरत पड़ी तो संघर्ष समिति द्वारा राष्ट्रीय छात्र संसद बुलाकर आर-पार की लड़ाई का ऐलान किया जायेगा।
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छात्रों को निःशुल्क प्रवेश दिये जाने का प्राविधान
- आरक्षण बचाओ संघर्ष समिति,उप्र के संयोजकों अवधेश कुमार वर्मा, केबी राम, डा. राम शब्द जैसवारा, अनिल कुमार, अजय कुमार, अन्जनी कुमार, बनी सिंह, एसपी सिंह, दिगविजय सिंह, पीएम प्रभाकर, अशोक सोनकर, प्रेम चन्द्र, जितेन्द्र कुमार, प्रभु शंकर राव, श्रीनिवास राव, राजेश पासवान, चमन लाल भारती, अजय चौधरी अजय धानुक, सुनील कनौजिया, तुलसी ने कहा कि सपा सरकार में 2014 में मंत्रिमण्डल में लिये गये निर्णय के आधार पर उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा जो शासनादेश निःशुल्क प्रवेश के लिये जारी किया गया है।
- उसमें स्पष्ट रूप से प्राविधानित है कि 40 प्रतिशत की सीमा तक अनुसूचित जाति व जनजाति के छात्रों को निःशुल्क प्रवेश दिये जाने का प्राविधान है।
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गलत तरीके से मांगा जा रहा परीक्षा शुल्क
- ऐसे में वर्तमान भाजपा सरकार में कुछ आरक्षण विरोधी मानसिकता वाले विश्वविद्यालयों एवं संस्थानों में दलित छात्रों से परीक्षा शुल्क माॅगा जा रहा है, जो पूरी तरह गलत है।
- वर्तमान में स्नातक में प्रथम सेमेस्टर में यह शुल्क लगभग रू. 6500/- है।
- ऐसे में गरीब बच्चे इसको वहन नहीं कर सकते। (engineering colleges)
- सबसे बड़े दुर्भाग्य की बात यह है कि निदेशक समाज कल्याण द्वारा इस मामले पर शासनादेश की गलत व्याख्या कर विश्वविद्यालयों एवं संस्थाओं को गलत निर्देश दिये गये है।
- जिससे पूरे प्रदेश में दलित समाज में काफी आक्रोश व्याप्त है।