बिजली विभाग ने बड़ी कार्रवाई करते हुए कई सरकारी संस्थानों की बिजली गुल कर दी है। जिसके बाद इन संस्थानों में हड़कंप मच गया है। बता दें कि बिजली विभाग ने एक सूची जारी की है जिसमें तमाम सरकारी विभागों के उपर करोड़ों का बिजली बिल बकाया है। विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति ने कहा कि प्रदेश के सरकारी विभागों पर 10, 800 करोड़ रूपये का बकाया है और सरकार इन बकायों को अदा करने के बजाय घाटे के नाम पर बिजली के निजीकरण का निर्णय ले रही है।

आज बड़े सरकारी बकायेदारों को बिजली काटी गयी है, उनकी सूची निम्नवत है।
1. राज्य सम्पत्ति विभाग, न्यू विधायक निवास – 11,65,993 (11.65 लाख).
2. राज्य सम्पत्ति विभाग, दारुलसफा – 5,99,29,575 (5.99 करोड़).
3. इन्दिरा भवन – 1,73,94,319 (1.74 करोड़).
4. जवाहर भवन – 1,81,43,144 (1.81 करोड़).
5. राज्य अतिथि गृह, मीरा बाई मार्ग – 8,92,271 (8.92 लाख).
6. राज्य सम्पत्ति विभाग, अति विशिष्ट अतिथिगृह – 2,06,59,067 (2.06 करोड़).
7. राज्य सम्पत्ति विभाग, विशिष्ट अतिथिगृह डालीबाग – 3,02,13,902 (3.02 करोड़).
8. राज्य अतिथि गृह, विक्रमादित्य मार्ग – 58,22,056 (58.22 लाख).
कुल – 15,42,20,327 (15.42 करोड़).

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बकायदारों की है लम्बी लिस्ट

जब सरकारी विभागों पर ही हजारों करोड़ रूपये का बकाया है तो बिजली विभाग का घाटे में जाना लाजमी है। इन सरकारी विभागों पर बकाया रकम जानकर आप हैरान हो जाएंगे। पूरे प्रदेश में सरकारी भवनों पर लगभग 10,740 करोड़ रूपये का बकाया है। बिजली विभाग के घाटे में जाने के कारण सरकार ने बिजली विभाग को निजीकरण करने का फैसला लिया है। जिसके बाद निजीकरण के विरोध में विभाग ने सरकारी भवनों पर बकाया बिजली बिल वसूलना शुरू कर दिया है। बता दें कि बिजली बिल बकायदारों में सरकारी संस्थानों की लंबी लिस्ट है। इन संस्थानों द्वारा बिजली बिल भुगतान नहीं करने पर बिजली विभाग ने कनेक्शन काटने की कवायद शुरू कर दी है। जिस पर कदम उठाते हुए विभाग ने डालीबाग स्थित वीआईपी गेस्ट हाउस का कनेक्शन काट दिया है।

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निजीकरण के विरोध में उठाया गया यह कदम

वहीं मामले पर बिजली विभाग के अधिकारियों का कहना है कि सरकारी इमारतों पर इतना बकाया इसलिए है क्योंकि पहले कभी सरकारी संस्थानों के कनेक्शन काटने के आदेश होते थे, तो मुख्यालय पर कई फ़ोन आते थे और कनेक्शन न काटने का दबाव बनाया जाता था।सरकार का तर्क है कि घाटे की वजह से निजीकरण किया जा रहा है, और जब पूरे उत्तर प्रदेश में सिर्फ सरकारी संस्थानों पर लगभग 10700 करोड़ का बकाया है तो घाटा तो होगा ही। इसी क्रम में निजीकरण के विरोध में यह कदम उठाया गया।

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