भारत  एक कृषि प्रधान देश है| यहाँ की लगभग सत्तर फ़ीसदी आबादी के आय का मुख्य स्रोत खेती है और अगर बात उत्तरप्रदेश की हो तो यहाँ के किसानों की आय गन्ने की फ़सल पर मुख्य रूप से निर्भर है| इन सत्तर प्रतिशत की आबादी की समस्याओं की सुध लेने वाला कोई नहीं है| हालात ऐसे हैं कि सरकार कभी भी किसानों के हित के बारे में तत्परता से नहीं सोचती|

 

उत्तरप्रदेश में गन्ना उगाने वाले किसान हमेशा अपनी समस्याओं को सरकार के सामने उठाते रहे हैं| गन्ना किसानों की मुख्य मांग यही है कि उनकी फसल का उन्हें उचित समर्थन मूल्य सरकार की तरफ़ से मुहैया कराया जाय| वर्षो से उठ रही मांग के बीच उत्तरप्रदेश की सरकार ने गन्ना किसानों के समर्थन मूल्य को दस रूपये प्रति क्विन्टल बढ़ा दिया| फिर भी किसानों को उनकी लागत के अनुरूप समर्थन मूल्य नहीं प्राप्त हो रहा|

 

पूरे राज्य में किसानों की गन्ना फसल का बकाया सरकार चुकता नहीं कर पायी| जब मांग उठी तो उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने गन्ना किसानों को गन्ना छोड़कर कोई और फसल लगाने का सुझाव दे डाला| वो यहीं नहीं रुके, बल्कि यह भी कह दिया कि गन्ना से डायबिटीज होती है इसलिए किसान गन्ने की खेती न करें|

जब सरकार का यह बयान है तो हमने भी तहकीकात करने और यह पता लगाने की कोशिश की कि क्या वाकई में किसानों को गन्ना छोड़कर कोई और फसल उगाना चाहिए? क्या वाकई में सरकार के पास इतना फण्ड नहीं है जिससे गन्ना किसानों को उचित समर्थन मूल्य के साथ-साथ बकाया रकम भी चुकता की जा सके|

 

आपको यह जानकार विश्वास नहीं होगा कि उत्तरप्रदेश के किसानों को दिए जा रहे गन्ना समर्थन मूल्य से लगभग पाँच गुना ज्यादा समर्थन मूल्य विदेशी किसानों को भारत सरकार द्वारा प्रदान किया जा रहा है| 

 

यूपी के गन्ना किसानों का समर्थन मूल्य

इकोनॉमिक्स टाइम्स में छपी एक ख़बर के अनुसार उत्तरप्रदेश के किसानों को फ़िलहाल गन्ने की फसल पर 325 रूपये प्रति क्विन्टल का भुगतान सरकार द्वारा किये जाने का प्रस्ताव है| यह विगत मूल्य से दस रूपये प्रति क्विन्टल ज्यादा है| यानी प्रति किलो गन्ना का भुगतान लगभग तीन रूपये पंद्रह पैसे से बढ़ाकर तीन रूपये पच्चीस पैसे कर दिया गया है| सरकार ने दस रूपये की वृद्धि  के बाद खुद अपनी पीठ थपथपाई और अपने मंत्रियों से भी इसका खूब प्रचार-प्रसार करवाया| लेकिन मामला तब बिगड़ गया जब केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी के बाद यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने किसानों को गन्ना फसल न उगाने की ही नसीहत दे डाली|

 

विदेशी किसानो को भारत सरकार द्वारा दिया गया समर्थन मूल्य

अब सवाल यह उठता है कि जब मुख्यमंत्री के साथ-साथ केंद्रीय मंत्री भी यह कह रही हैं कि सरकार समर्थन मूल्य नहीं बढ़ा सकती तो इस बात की तह तक जाना ज़रूरी है| आंकड़ें बहुत ही चौकाने वाले हैं|

भारत सरकार द्वारा गन्ना निर्यात का आंकड़ा
भारत सरकार द्वारा चीनी आयात का आंकड़ा
चित्र : उत्तरप्रदेश ऑर्ग

नवीनतम आंकड़े के अनुसार वर्ष 2018-19 में भारत सरकार द्वारा कुल 116512.08 टन यानी 105697981 किलो चीनी का आयात विभिन्न देशो से किया गया| इसके लिए भारत सरकार द्वारा लगभग 37757510 डॉलर यानी लगभग 2454238150 रूपये भुगतान किया गया| देखा जाय तो भारत सरकार विदेशी किसानों पर इतनी मेहरबान है कि उसने लगभग 23 रूपये प्रति किलो के हिसाब से गन्ने का आयात किया| इसके सापेक्ष उत्तरप्रदेश के किसानों को सिर्फ 3.25 रूपये प्रति किलो समर्थन मूल्य किसी के गले नहीं उतरेगा|

स्रोत: पीआईबी

 

लगभग 24 रूपये प्रति किलो के हिसाब से निर्यात

भारत सरकार के सरकारी आंकड़ों के अनुसार कुल 240093.85 टन यानी 240093850 किलो चीनी का निर्यात किया गया| इसके सापेक्ष सरकार को होने वाली आमदनी 90998396 डॉलर यानी लगभग लगभग 6635148044 रूपये है| वर्तमान मूल्य के हिसाब से लगभग 27 रूपये 64 पैसे और तत्कालीन मूल्य के हिसाब से लगभग 24 रूपये 20 पैसे प्रति किलो की आमदनी भारत सरकार को होती है|

 

सरकार का जवाब

भारत सरकार द्वारा गन्ना आयात- निर्यात पर स्पष्टीकरण दिया गया है लेकिन स्पष्टीकरण आंकड़ों को कैसे झुठला सकता है?

भारत सरकार द्वारा चीनी आयात-निर्यात का स्पष्टीकरण (पृष्ठ : 1)
चित्र : उत्तरप्रदेश ऑर्ग
भारत सरकार द्वारा चीनी आयात-निर्यात स्पष्टीकरण (पृष्ठ : 2)
चित्र : उत्तरप्रदेश ऑर्ग

 

चीनी आयात के मामले में पूरे विश्व में 11वे पायदान पर भारत

गौतलब यह है कि खुद के घर में इतनी उपज के बाद भी भारत विश्व में 11वां सबसे ज्यादा चीनी आयात करने वाला देश हैं|

चीनी आयात करने वाले विश्व के प्रमुख देश
चित्र : उत्तरप्रदेश ऑर्ग

अब सरकार को स्पष्टीकरण भी देना चाहिए कि जब विदेशी किसानों को इतना समर्थन मूल्य दिया जा सकता है तो अपने देश के किसानों को क्यों नहीं?

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