उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के अलावा बरेली जिला में भी धारदार चाइनीज मांझा आए दिन पतंगों की डोर काटने के बजाय राहगीरों की गर्दन रेतकर जख्मी कर रहा है। आये दिन हो रहे हादसों के बाद भी जिला प्रशासन की ढील से शहर की पतंग की दुकानों पर धड़ल्ले से प्रतिबंधित चाइनीज मांझा बिक रहा है। सड़कों पर लगातार हादसे होने के बावजूद भी अवैध तरीके यह कारोबार चल रहा है। चाइनीज मांझा बेगुनाह राहगीरों को जख्मी कर अस्पताल पहुंचाने का कार्य कर रहा है लेकिन प्रशासन पूरी तरह से मौन धारण करके बैठा है।
हेलमेट से बच सकता था दर्दनाक हादसा
जानकारी के मुताबिक, ताजा मामला बरेली जिला का है। यहां सुभाषनगर थाना क्षेत्र में शांति विहार में रहने बाली हेड कांस्टेबल प्रीति चौधरी पत्नी सनी जावला पुलिस लाईन में रेडियो ऑपरेटर के पद पर तैनात है। रविवार को वह पुलिस लाइन से डियूटी करके अपने घर शांति विहार स्कूटी से जा रही थी। महिला सिपाही चौपला पुल पर पहुंची थी कि चाइनीज मांझा उसकी गर्दन में फंस गया। कांस्टेबल ने गर्दन तो बचा ली लेकिन मांझा वायी आंख के पास फंस गया। तब तक मांझे की डोर आरोपी ने खींच ली और महिला सिपाही की आंख के पास गहरा घाव हो गया।
काटने से सिपाही खून से पथपथ होकर स्कूटी से गिर गई। ये नजारा देख मौके पर मौजूद लोगों ने पुलिस को इस घटना की सूचना दी। सूचना पाकर मौके पर पहुंची पुलिस ने महिला सिपाही को गंभीर हालत में मेधांश अस्पताल बदायू रोड पर भर्ती कराया। यहां उसकी हालत चिंताजनक बनी हुई है। अब देखने वाली बात ये होगी कि क्या बरेली पुलिस इन पतंग विक्रेताओं पर कोई कार्रवाई करेंगे जो प्रतिबंद्धित चाइनीज मंचा बेच रहे हैं। स्थानीय लोगों का कहना है कि अगर महिला ने हेलमेट लगाया होता तो ये इतना दर्दनाक हादसा ना होता।
देश की राजधानी दिल्ली से आता है प्रतिबंधित मांझा
कोर्ट की सख्ती के बावजूद भी पुराने लखनऊ शहर सहित यूपी के महानगरों में खुलेआम पतंग की दुकानों पर चाईनीज मांझा बेचा जा रहा है। प्रशासन की इस ढील के चलते आए दिन किसी न किसी की जान पर बन रही है। सड़क पर गाड़ी चलाना खतरनाक हो गया है। न जाने कब कहां से कोई डोर आए और आपको जख्मी कर दे। प्रतिबंधित चाइनीज मांझा दिल्ली से लखनऊ में बिकने आता है, जो यहां चोरी छिपे पतंग की दुकानों में पहुंचाया जाता है। चाइनीज मांझे का कोई तय मूल्य नहीं होता, इसलिए डिलीवरी देने वालों को मुह मांगे पैसे मिलते हैं।
नायलॉन का बना होता है चाइनीज मांझा
पतंगबाजों के मुताबिक, चाइनीज मांझा इसलिए प्रतिबंधित हैं, क्योंकि यह नायलॉन से बना होता है। जबकि बरेली और लखनऊ का बना मांझा कॉटन से बना होता है। इसलिए चाइनीज मांझा टूटता नहीं है और इससे आसानी से इंसान की गर्दन कट जाती है। इसी तरह चाइनीज मांझे में कांच के साथ लोहे का बुरादा लगाया जाता है, जबकि अन्य मांझे में लोहे का बुरादा नहीं लगता। शहर में नवाबी काल से यहां पतंगबाजी होती आ रही है। समय के साथ पतंगबाजी का स्वरुप भी बदलता जा रहा है। शहर में पतंग की करीब 50 दुकानें हैं। शहर में सलाना 2.5 करोड़ रुपये का कारोबार है। जबकि इसमें प्रतिबंधित चाइनीज मांझे का कारोबार 50 से 60 लाख रुपये का है।
पतंगबाजी के शौक को बदनाम न करें
पिछले दिनों आठ बार नेशनल विनर रहे शहर के पतंगबाज अमरनाथ कौल ने लोगों से देसी मांझे से पतंगबाजी करने की अपील की। कहा कि चाइनीज मांझे से आए दिन लोग जख्मी हो रहे हैं। कई लोगों की जान भी जा चुकी है। चाइनीज मांझा प्रतिबंधित है और इससे पतंग उड़ाना दंडनीय अपराध भी है। लखनऊ और बरेली के बने मांझे से पतंगबाजी करें और दूसरों को भी चाइनीज मांझे प्रयोग करने से रोके। अपनी नासमझी से पतंगबाजी के शौक को बदनाम न करें। ध्यान रहे कि आपका शौक किसी के लिए मुसीबत का सबब न बने।
पांच साल सजा, एक लाख जुर्माना
नेशनल ग्रीन टिब्यूनल (एनजीटी) ने चाइनिज मांझे की बिक्री पर रोक लगा रखी है। नायलॉन अथवा अन्य सिंथेटिक मैटेरियल से बना मांझा बेहद खतरनाक और जानलेवा साबित होता हैं। नियमानुसार प्रतिबंधित माझा बेचने वालों के खिलाफ इनवायरमेंट प्रोटेक्शन एक्ट 1986 के सेक्शन पांच के अंतर्गत पांच साल की सजा अथवा एक लाख रुपये जुर्माना या फिर दोनों का प्रावधान है। यह नियम निजी फर्म, कंपनी अथवा सरकारी कर्मचारियों पर भी लागू है।
इतनों की गर्दन काट चुका चाइनीज मांझा
11 मार्च 2018 को गोमती नगर फन मॉल से गुजरते समय मवैया निवासी विजय लक्ष्मी गुप्ता के गले में चाइनीज मांझा लिपट गया। चाइनीज मांझे ने उनकी गर्दन को बुरी तरह काट दिया और उन्हें दस टांके लगे। इसी तरह पिछले दिनों टूढियागंज निवासी मिर्जा आरिफ अली आज भी उस पल को याद कर सिहर उठते हैं, जब नक्खास पुलिस चौकी के पास प्रतिबंधित मांझे ने उनके चेहरे को जख्मी कर दिया था। इसी तरह हुसैनगंज निवासी एमए का छात्र विभांशु त्रिपाठी भी डालीगंज पुल से गुजरते समय प्रतिबंधित मांझे से जख्मी हो गए थे। विभांशु को ठीक होने में महीनों लग गए।