पिछले दिनों जयपुर और रायपुर की सरकारी गौशालाओं में सैकड़ों गायों की हुई मौत ने कई गंभीर प्रश्न खड़े कर दिये हैं. क्योंकि इन गौशालों को सरकार द्वारा पैसा उपलब्ध कराया जाता है.
- लेकिन इसके बावजूद भी यहाँ गायें मर रहीं हैं.
- गायों की लगातार हो रही मौतें इस बात की गवाह हैं कि इनकी ठीक ढंग से देखभाल नहीं की जा रही है.
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- लेकिन इस सबके बीच गाजीपुर में एक गौशाला ऐसी भी है जो सरकारी तो नहीं है.
- साथ ही ये गौशाला बिना किसी सरकारी सहायता के करीब पचास साल से चल रही है.
- यहाँ कोई गाय आज तक नहीं मरी जबकि यहाँ 56 गायें वर्तमान में हैं.
- इस गौशाला में इन गायों की ठीक प्रकार से देखभाल की जाती है.
38 मारवाड़ी परिवार मिलकर उठाते हैं गौशाला का पूरा खर्च-
- ये गौशाला जनपद गाजीपुर के रजदेपुर देहाती क्षेत्र में स्थित है.
- इस गौशाला को 38 मारवाड़ी परिवार मिलकर कृष्ण गोपाल गौशाला सोसायटी के माध्यम से गौशाला को चलाते हैं.
- साथ ही ये 38 परिवार ही इस गौशाले का पूरा खर्च भी उठाते हैं.
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- इन गायों से जो दूध निकलता है वो ये परिवार ही खरीदते हैं.
- साथ ही इस दूध से मिले पैसे को गायों के देखभाल पर खर्च करते हैं.
- इस संस्था के कुछ लोग गाजीपुर से बाहर भी रहते हैं.
- ये लोग भी संस्था को पैसा भेजते हैं.
करीब पचास साल से चल रही है ये गौशाला-
- गौशाला के प्रबंधक कमलेश पाठक ने बताया कि ये गौशाला करीब पचास साल से चल रही है.
- हमको इसके लिये सरकार से कोई अनुदान नहीं मिलता है.
- उन्होंने बताया कि हमारे यहाँ इस समय 56 गायें हैं.
- अब हमने पशुओं को लेना बंद कर दिया है.
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- क्योंकि हमारे साथ लेबर और फण्ड की समस्या है.
- उन्होंने बताया कि हिन्दू युवा वाहिनी के लोग जो पशु पकड़ते हैं यहीं लेकर आते हैं.
- लेकिन हम अब उन पशुओं को कुछ दिन रखकर उनको दे देते हैं.
- क्योंकि हमारे पास इतने पशुओं को रखने की और देखरेख की व्यवस्था नहीं है.
ध्यान फाउण्डेशन की तरफ से कभी-कभी आता है बजट-
- कमलेश पाठक ने बताया कि दिल्ली की हिन्दू युवा वाहिनी की संस्था है ध्यान फाउण्डेशन.
- ध्यान फाउण्डेशन के द्वारा भी कभी-कभी कुछ बजट आता है.
- लेकिन वो पर्याप्त नहीं होता है.
- उन्होंने बताया कि गायों की देखभाल के लिये लेबर की जरूरत होती है.
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- साथ ही उनके लिये चारे की भी आवश्यकता पड़ती है.
- जिसके लिये बजट की जरूरत होती है पर ये बजट पर्याप्त नहीं होता है.
- क्योंकि कभी दो-तीन महीने में 25 हजार तो कभी 20 हजार रूपये आ जाते हैं.
- जबकि यहाँ का खर्च लाखों में है.
- उन्होंने बताया कि हमारी जमीन पर आवास विकास ने कब्जा कर रखा है.
- जिसकी वजह से हमारी बाउन्ड्री नहीं हो पाती है.
- जिसके चलते बाहरी पशु भी गौशाले में घुस जाते हैं.
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- उन्होंने कहा कि इस बारे में हमलोग कई बार जिलाधिकारी से कह चुके हैं.
- लेकिन इसके बावजूद अब तक कोई कार्यवाही नहीं हुई.
- उन्होंने बताया कि इन गायों की देखभाल के लिये डाक्टरों की एक टीम भी बनायी गयी है.
- लेकिन ये टीम कभी गौशाले में जाने की जरूरत नहीं समझती है.
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