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गाजीपुर: कई स्कूलों में बच्चों को अभी भी स्वेटर का इंतजार

सरकारी स्कूलों में स्वेटर वितरण को लेकर उत्तर-प्रदेश सरकार की बेसिक शिक्षा मंत्री अनुपमा जायसवाल के सवालों के घेरे में आने के बाद भी अभी तक स्कूलों में स्वेटर वितरण पूरी तरह से शुरू नहीं हो सका है, जबकि पूरे उत्तर भारत के साथ उत्तर-प्रदेश भी शीतलहर की चपेट में है और उनके स्कूल भी ज्यादातर जिलों में खोल दिये गये हैं. सरकार की सरकारी स्कूल के बच्चों को स्वेटर,जूता और मोजा आदि देने की योजना थी और इसके लिये 300 करोड़ का बजट भी सरकार द्वारा आवंटित किया गया था. जनपद गाजीपुर के ज्यादातर सरकारी स्कूलों में अभी तक स्वेटर और जूता मोजा नहीं पहुँच सका है. बच्चे ठिठूरते हुये स्कूल जाने को मजबूर हैं. कुछ स्कूलों में स्वेटर बांटे गये हैं पर उनका प्रतिशत बहुत कम है और अभी तक इन स्कूलों तक भी स्वेटर का पूरा बजट नहीं पहुँचा है ये बीएसए खुद स्वीकार करते हैं.

गाजीपुर में वितरित किये गए स्वेटर

जनपद गाजीपुर के बुजुर्गा प्राथमिक विद्यालय में बीएसए द्वारा स्वेटर का वितरण किया गया. इसके साथ ही जनपद के कुछ अन्य विद्यालयों में भी स्वेटर बांटे गये. पर अभी तक ज्यादातर स्कूलों में स्वेटर के लिये बजट नहीं पहुँचा है जिसकी वजह से बच्चों में स्वेटर का वितरण नहीं हो पा रहा है. सूत्रों की मानें तो इस स्कूल में भी अभी जो स्वेटर बच्चों को दिया गया है वो यहाँ के प्रधानाचार्य ने अपने पैसे से खरीद कर बंटवाया है. हालांकि बीएसए का दावा है कि प्रधानाचार्य के खाते में स्वेटर के आधे पैसे आ चुके हैं और बाकि आधा पैसा भी उनके खाते में भेज दिया जायेगा.

कई स्कूलों में अभी भी स्वेटर का इंतजार

जनपद में इस समय शीतलहर के साथ ढंड का कहर भी लगातार जारी है और ऐसे में बच्चों को बेसिक शिक्षा विभाग की लापरवाही से अभी तक स्वेटर का वितरण नहीं किया जाना हमारे देश और प्रदेश के जिम्मेदार नेताओं की कार्यप्रणाली पर गंभीर प्रश्न खड़े करता है. हद तो यह है कि जहाँ एक ओर प्रशासन सभी बच्चों तक अभी तक स्वेटर,जूता और मोजा नहीं पहुँचा सका है वहीं इस भयानक ठंड और शीतलहर में स्कूलों को भी खोले रखा गया है. इंग्लिश मीडियम के बच्चे तो स्वेटर,ब्लेजर और इनर में सर्दी से जैसे-तैसे अपना बचाव कर लेंगे पर इन गरीब बच्चों का क्या जिनके लिये सरकार ने तो सोचा पर उसी सरकार के मंत्री और विभाग के उदासीन रवैये के कारण ये गरीब बच्चे सर्दी में ठिठुरते हुये स्कूल जान को मजबूर हैं.

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