ग्लूकोमा की पहचान सही समय पर न होने से आंख की रोशनी भी जा सकती है। ये जानकारी शायद आपको भी होगी।  लेकिन बावजूद इसके लोग इस गंभीर बीमारी के प्रति सजग नहीं हैं। यही वजह है कि हमारे देश में लगातार आंख की बीमारी ग्लूकोमा के मरीज बढ़ रहे हैं। आकड़ों पर नज़र डालें तो देश में 40 वर्ष से अधिक की आयु वाले हर आठवे व्यक्ति में ग्लूकोमा की समस्या देखी जा रही है। हालांकि, इस पहचान मुश्किल से होती है, क्योंकि अधिकांश मामलों में ग्लूकोमा के लक्षण पता ही नहीं चलते हैं।

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बचाव है जरुरी

  • ग्लूकोमा के बारे में इसके मरीज को अधिक जानकारी नहीं होती है।
  • यही वजह है कि जब तक मरीज को जानकारी होते-होते बीमारी काफी बढ़ चुकी होती है।
  • ग्लूकोमा से होने वाला अंधापन अभी तक लाइलाज है।
  • अतः इस बीमारी से बचना ही इसका इलाज है।
  • विवेकानंद हॉस्पिटल में इससे सम्बंधित सेमिनार का आयोजन किया गया।
  • केजीएमयू नेत्र विभाग के डा. एसके भास्कर बतातें हैं कि ग्लूकोमा आंख के ऑप्टिक तंत्रिका को नुकसान पहुंचाती है।

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  • और समय के साथ इससे स्थिति बद से बदतर हो जाती है।
  • यह आँख के अंदर तंत्रिका पर दबाव को बढ़ाती है।
  • ग्लूकोमा अनुवांशिक भी होती है जिससे बाद के जीवन में दिखाई नहीं देता है।
  • दिल्ली की डा. देवेन तुली ने कहा कि उम्र बढ़ने के साथ ग्लूकोमा का खतरा अधिक हो जाता है।
  • यदि आंख में चोट लगी है या परिवार में किसी को ग्लूकोमा है तो ग्लूकोमा होने की सम्भावनाएं प्रबल हो जाती हैं।
  • इस मौके पर स्वामी मुक्तिनाथानंद भी मौजूद रहे।
  • इनके अलावा मध्यप्रदेश के उज्जैन के त्रिनित्रा सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल के डा. पराग शर्मा, डा. शालिनी मोहन भी मौजूद रहे।

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