घाघरा नदी के जलस्तर में लगातार हो रहे तेजी से बढ़ोतरी के चलते आसपास के ग्रामीणों की बेचैनी दिन पर दिन बढ़ती जा रही है. लेकिन रात में बांध कट जाने से लोगों की परेशानी और बढ़ गई है. परेशानी बढ़ने के साथ-साथ नकहरा धरकुईयां सहित लगभग 50 गांव मे घाघरा का पानी घुस गया है.
बांध कट जाने से ग्रामीण हुए परेशान:
रात में बांध कट जाने से लोगों की परेशानी और बढ़ गई है.
परेशानी बढ़ने के साथ-साथ नकहरा धरकुईयां सहित लगभग 50 गांव मे घाघरा का पानी घुस गया है.
जिससे एक लाख की आबादी प्रभावित हो रही है. इस बाढ़ से लोग पलायन करने को मजबूर हो गये हैं.
वहीं बाढ़ जानकारी जानकर बंधे का निरीक्षण करने पहुंचे गोण्डा के प्रभारी मंत्री उपेन्द्र तिवारी अब इंद्र भगवान से राहत मांग रहे हैं.
बांध का निर्माण लगभग साल 2004:
घाघरा गोंडा के करनैलगंज तहसील में स्थित चरसड़ी बांध का निर्माण साल 2004 में हुआ था.
अब तक इस निर्माण में 97 करोड़ रुपए खर्च किए जा चुके हैं.
लेकिन 14 साल बाद भी स्थिति जस की तस बनी हुई है इतने पैसे खर्च करने के बावजूद हर साल बाढ़ आती है.
बंधा काटने से उसका खामियाजा वहां के ग्रामीणों को भुगतना पड़ता है.
जिससे उनकी खेती पर असर पड़ने के साथ-साथ खाने पीने के भी लाले पड़ जाते हैं.
और लोग अपने पशुओं के साथ पलायन करने को मजबूर हो जाते हैं.
ग्रामीणों ने अधिकारियों पर लगाया पैसा कमाने का इलज़ाम:
वहीं अब गांव के लोग इस बांध को अधिकारियों का धंधा बता रहे हैं.
ग्रामीणों का कहना है कि यह बांध अब अधिकारियों के लिए पैसा कमाई का एक जरिया बन गया है.
अधिकारी इस बंधे से कमाते खाते हैं ग्रामीण अब बंधे की जांच कराकर कार्रवाई कराने की मांग कर रहे हैं.
प्रभारी मंत्री ने अधिकारियों को लगाई फटकार:
वही जब तबाही की खबर गोंडा के प्रभारी मंत्री उपेंद्र तिवारी को लगी तो वह खुद ही बंधे का निरीक्षण करने बांध पर पहुंच गये.
स्थिति को देख कर अधिकारियों को फटकार भी लगाई.
लेकिन मंत्री ने पक्का बांध ना बनने का दोषी ग्रामीणों को ही ठहरा दिया और अब खुद इंद्र भगवान से राहत मांग रहे हैं.
मंत्री यही नहीं रुके उन्होंने सपा और बसपा को दोषी ठहराते हुए अपने सरकार के तारीफों के पुल बाधने से नही चूके.
फिलहाल मंत्री अब चाहे जितनी भी सफाई पेश करे लेकिन शासन और प्रशासन के इस मिलीभगत मे नुकसान इन बाढ़ग्रस्त गरीब ग्रामीणों को हो रहा है.
और जो अब भी पक्के बांध बनने का इंतजार कर रहे है.
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