इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने आज एक्टिविस्ट डॉ. नूतन ठाकुर द्वारा विश्वविद्यालयों में राष्ट्रपति तथा राज्यपाल के अधिकारों की वैधता को चुनौती देने वाली वर्ष 2012 की एक लंबित याचिका में केंद्र तथा राज्य सरकार से तीन सप्ताह में जवाब मांगा है। यह आदेश जस्टिस सत्येन्द्र सिंह चौहान एवं जस्टिस रजनीश कुमार की बेंच ने पारित किया।
याचिका के अनुसार संविधान में राष्ट्रपति तथा राज्यपाल को सम्बंधित मंत्रीपरिषद् की सहायता तथा सलाह पर काम करने का प्रावधान है। इसके विपरीत केंद्रीय विश्वविद्यालय एक्ट 2009 में राष्ट्रपति तथा यूपी विश्वविद्यालय एक्ट 1973 तथा एसजीपीजीआई एक्ट 1983 में राज्यपाल बिना मंत्री परिषद की सहायता तथा सलाह के सीधे कार्य करते हैं। इन प्रावधानों को संविधान के विरुद्ध बताते हुए नूतन ने इन्हें विधिविरुद्ध घोषित किये जाने की प्रार्थना की है। विभागीय जाँच ख़ारिज करने पर कैट के जवाब माँगा। कैट की लखनऊ बेंच ने आईपीएस अफसर अमिताभ ठाकुर द्वारा अपने चारों विभागीय जाँच को निरस्त किये जाने के सम्बन्ध में दायर याचिकाओं पर केंद्र सरकार तथा राज्य सरकार से तीन सप्ताह में जवाब माँगा है।
विभागीय जांच ख़ारिज करने पर कैट के जवाब मांगा
अमिताभ ने इन याचिकाओं में कहा था कि उत्तर प्रदेश सरकार ने इनके खिलाफ 13 जुलाई 2015 से अगस्त 2016 के बीच चार विभागीय जाँच खोल दिए लेकिन इसके बाद से ये विभागीय जांच लंबित हैं जिससे उन्हें नुकसान हो रहा है। उन्होंने कहा कि 2017 में भारत सरकार ने नया नियम बनाया था कि विभागीय जाँच 6 माह में अवश्य ही समाप्त की जाए, जो इन मामलों में नहीं हुआ है। इस पर जस्टिस विष्णु चन्द्र गुप्ता की बेंच ने केंद्र तथा राज्य सरकार को क़ानून की स्थिति स्पष्ट करने के आदेश देने हेतु 15 फ़रवरी 2018 को अगली सुनवाई का आदेश दिया।
इससे पहले एक्टिविस्ट डॉ. नूतन ठाकुर ने मुख्यमंत्री आवास के सामने सेल्फी लिए जाने के पुलिसिया आदेश को सर्वथा अनुचित तथा मानव अधिकार विरोधी बताया था। उन्होंने कहा था कि इस आदेश का सुरक्षा कारणों से कोई लेना-देना नहीं है क्योंकि जिस स्थान पर सेल्फ़ी तथा फोटो लिए जाने से मना किया जा रहा है वह सार्वजनिक स्थान है और वहां निरंतर लोग आते जाते रहते हैं।