धार्मिक शिक्षा को अनिवार्य रूप से लागू किये जाने की मांग वाली जनहित याचिका पर हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने कहा कि धर्मों का तात्विक अध्यन उनके बीच समरसता के लिए सहायक हो सकता है। कोर्ट ने विद्यार्थियों को अनिवार्य धार्मिक शिक्षा देने के लिए केंद्र तथा राज्य सरकारों में संबधित अधिकारियों को निर्देश जारी करने से मना कर दिया।
- हालांकि अदालत ने कहा कि धार्मिक और नैतिक शिक्षा का अपना महत्व है।
- न्यायमूर्ति एपी शाही और न्यायमूर्ति डॉ विजय लक्ष्मी की खंडपीठ ने याचिका पर सुनवाई की।
- कोर्ट ने कहा कि धर्म के प्रति तटस्थता का भाव रखकर पंथ निरपेक्ष नहीं रहा जा सकता है।
- धर्म के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण लोगों में अन्य लोगों के विश्वास के प्रति आदर व समझ विकसित कर सकता है।
- इस दौरान न्यायालय ने महात्मा गांधी के उन शब्दों का भी जिक्र किया।
- जिसमें उन्होंने कहा था कि सभी धर्मों में नैतिकता का मौलिक सिद्धांत एक ही है।
- न्यायालय ने कहा कि निष्ठा, हिम्मत, अनुशासन और आत्म त्याग के महान गुण एक सफल नागरिक में आवश्यक हैं।
- हालांकि, न्यायालय ने SC के आदेश को दृष्टिगत रखते हुए याचिका पर परमादेश जारी करने से इंकार कर दिया।
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धार्मिक शिक्षा अनिवार्य की जाएः
- हिंदू फ्रंट फॉर जस्टिस ने सभी विद्यार्थियों को अनिवार्य धार्मिक शिक्षा देने के लिए निर्देश देने की मांग की थी।
- याचिका में केंद्र व राज्य सरकार को कक्षा एक से स्नातकोत्तर तक धार्मिक शिक्षा अनिवार्य किए जाने के निर्देश दिए जाने की मांग की गई थी।
- दलील दी गयी कि संविधान लागू होने के 66 साल बाद भी स्कूलों के पाठ्यक्रम में धार्मिक और नैतिक शिक्षा को उचित स्थान नहीं मिला है।
- याची के अधिवक्ता ने दलील दी कि धार्मिक पुस्तकों में कही बातों को सही से प्रस्तुत नहीं किया जाता।
- जिसके चलते युवा पथभ्रष्ट हो जाते हैं और इसी वजह से समाज में बुराइयां बढ़ रहीं हैं।