प्रत्यक्ष कर व्यवस्था ‘वस्तु एवं सेवा कर’ (जीएसटी) प्रणाली के एक साल आज पूरे हो चुके हैं और इस एक साल की अवधि में न केवल सरकार का राजस्व बढ़ा है, बल्कि व्यापारियों का भी व्यापार आसान हुआ है. हालांकि, इसमें कुछ खामियां भी हैं, जिसे सुधारने की जरूरत है, चाहे वह जीएसटी नेटवर्क से जुड़ा मुद्दा हो या निर्यातकों के रिटर्न का.

इन सुधारों के साथ जीएसटी बनेगा और बेहतर:

रिटर्न फाइल करने की प्रक्रिया में दिक्कतें:

जीएसटी रिटर्न की प्रक्रिया अव्यवहारिक और जटिल है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण है कि जुलाई 2017 के लिए ही मुख्य रिटर्न यानी जीएसटीआर-2 और जीएसटीआर-3 अभी तक नहीं भरवाए जा सके हैं.

सरकार को भी बिल टू बिल बिक्री की सूची मांगने की जगह डीलर टू डीलर सूची मांगनी चाहिए. इससे भी प्रक्रिया बहुत सरल हो जाएगी.

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त्रैमासिक हो रिटर्न की व्यवस्था:

ज्यादातर व्यापारियों की मांग हैं कि रिटर्न जमा करने की अवधि मासिक से त्रैमासिक कर दी जाये. सरकार चाहे तो मासिक चालान बनाते समय ही इनपुट-आउटपुट की राशि भरवा कर अंतिम कर निकलवा ले, ताकि डीलरों को मासिक जीएसटीआर-3 बी से छुटकारा मिल जाए।

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जीएसटी में हो सरलीकारण:

रिटर्न की अधिक संख्या और कम जानकारी की जटिलता कारोबारियों के लिये परेशानी का सबब बनती हैं. कई बार तो रिटर्न भरते समय छोटे कारोबारियों से गलतियाँ हो जाति हैं जिसके बाद उन्हें अतिरिक्त भुगतान करना पड़ जाता है. इसलिए इसका सरलीकरण आवश्यक है.

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रिफंड व्यवस्था से निर्यातक असंतुष्ट:

जीएसटी रिफंड को लेकर कारोबारियों, खासकर निर्यातकों में भारी असंतोष है. जीएसटी की वजह से निर्यातकों का रिफंड समय से नहीं मिल पाता है. इसकी वजह से उन्हें वर्किंग कैपिटल के लिए उधार लेना पड़ता है.

वहीं इन सब से अंतरराष्ट्रीय बाजार में उनकी प्रतिस्पर्धा प्रभावित होती है. हालांकि कारोबारियों की समस्या के समाधान के लिए सरकार ने दो बार रिफंड पखवाड़े का आयोजन किया है, लेकिन इसके वांछित परिणाम नहीं दिख रहे हैं. इसलिए जरूरी है कि सरकार इसके लिए कोई स्वचालित प्रणाली का विकास करे.

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