एक तो पीड़ित तत्काल मदद के लिए ‘यूपी 100 UP’ (UP 100) पर फोन करते हैं। लेकिन इस दौरान उन्हें अनुभवहीन कॉलटेकर्स के सवालों से गुजरना पड़ रहा है। मुश्किल समय में मदद के लिए यूपी 100 में फोन करने वालों को राहत के बजाय कठिनाइयों से गुजरना पड़ रहा है।
- त्वरित सहायता की उम्मीद से कॉल करने पर फोन उठाने वाली निजी कंपनी की महिला कर्मचारी मामले की गंभीरता को नहीं समझ पा रही हैं।
- इसका मुख्य कारण कॉल ट्रेस करने वाले को लोकेशन की जानकारी न होना है।
- खास बात यह है कि गंभीर मामला हो या फिर मामूली।
- फोन करने वाले व्यक्ति से कंट्रोल रूम में तैनात पुलिसकर्मियों की सीधे बात ही नहीं होती और कॉल ट्रेस करने वाली ही इवेंट बनाकर डिस्पैच ऑफिसर को बढ़ा देती हैं।
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ट्विटर पर जानकारी देने वाले से किये जाते हैं सवाल
- यूपी 100 की कार्यशैली से समस्या बताने वाले ही परेशानी में पड़ रहे हैं।
- उदाहरण के तौर पर बुधवार को यूपी 100 को ट्विटर के जरिये आग लगने की सूचना दी गई।
- इसके बाद उधर से रिप्लाई आया कि कृपया इनबॉक्स में संदेश चेक करें।
- इसके बाद उधर से सवाल किये जाने लगे तो समस्या बताने वाले व्यक्ति ने कहा कि समस्या का समाधान करो या ना करो सूचना देना हमारा काम था।
- अब आप इससे अंदाजा लगा सकते हैं कि यूपी 100 की टीम कैसे काम कर रही है।
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अनुभव की कमी से आ रही समस्या
- कॉल ट्रेस करने वालों में अनुभव की कमी है।
- यही कारण है कि उन्हें यह पता नहीं होता कि किस सूचना का इवेंट बनाकर आगे बढ़ाना है और किसका नहीं।
- कंट्रोल रूम में तैनात पुलिसकर्मियों के मुताबिक महिला कर्मचारियों के पास अनुभव की कमी है, जिस कारण दिक्कतें आ रही हैं।
- चर्चा है कि कॉल ट्रेस करने वाली महिलाएं बिना समझे कहीं की सूचना कहीं और प्रेषित कर देती हैं, जिससे पीआरवी पर तैनात पुलिसकर्मियों को दिक्कतों का सामना करना पड़ता है और कई बार जरूरतमंद को मदद नहीं मिलती।
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दो भैंस लड़ गई, एक घायल है
- कॉल ट्रेस करने वालों की कार्यशैली का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 100 नंबर पर आने वाली फिजूल कॉल का भी इवेंट बनाकर पीआरवी रवाना कर दिया जाता हैं।
- अभी हाल में ही एक कॉलर ने फोन कर सूचना दी कि दो भैंस आपस में लड़ गईं, जिसमें एक घायल हो गया है।
- कॉल ट्रेस करने वाले ने इस सूचना का इवेंट बनाकर डीओ (डिस्पैच ऑफिसर) को बढ़ा दिया, जिसके बाद पीआरवी को घटना स्थल पर रवाना किया गया।
- कंट्रोल रूम में इस सूचना को लेकर बेहद चर्चा रही।
- यही नहीं घर में बिजली नहीं आ रही, रात में नींद नहीं आ रही और दुकानदार कटहल नहीं दे रहा है जैसी सूचनाएं 100 नंबर पर आती हैं।
- इन सूचनाओं का भी इवेंट बनाकर डीओ को भेज दिया जाता है।
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अभद्रता पर कार्रवाई के बजाय प्रतिबंध
- 100 नंबर पर अभद्रता व गाली गलौज करने वाले कॉलर के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होती।
- अक्सर कंट्रोल रूम में ऐसे फोन आते रहते हैं, जिसे कॉल ट्रेस करने वाले डीओ के पास स्थानांतरित कर देती हैं।
- कंट्रोल रूम में तैनात पुलिसकर्मियों के मुताबिक ऐसे कॉलर के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जाती।
- कार्रवाई के नाम पर कॉलर के फोन नंबर को ब्लाक कर दिया जाता है, जिससे वह दोबारा फोन न कर सके।
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नियमों का भी नहीं हो रहा पालन
- यूपी 100 में डीओ और एसडीओ के पद बनाए गए थे।
- नियम के अनुसार कंट्रोल रूम में डीओ का काम हेड कांस्टेबल को तथा एसडीओ का काम दारोगा और इंस्पेक्टर को करना था, लेकिन ऐसा नहीं हो रहा।
- दरअसल, मामूली घटनाओं को डिस्पैच करने की जिम्मेदारी डीओ की थी और गंभीर तथा संगीन वारदातों के लिए एसडीओ को निर्देशित किया गया था।
- हालांकि वर्तमान में यह प्रक्रिया पटरी से उतर गई है और इंस्पेक्टर भी डीओ का काम कर रहे हैं।
देर से पहुंचती है यूपी 100
- 10 अप्रैल को बुद्धेश्वर के पास 13 दुकानें संदिग्ध हालात में जल गई थीं।
- व्यापारियों ने 100 नंबर पर सूचना दी, लेकिन पुलिस समय से नहीं पहुंची।
- पीड़ित व्यापारी सूर्यकांत यादव के मुताबिक यूपी 100 की पुलिस घटना के करीब डेढ घंटे बाद आई थी।
- गोमतीनगर के विराम खंड में डकैती की सूचना पर भी पुलिस देर से पहुंची थी।
- यही नहीं अभी हाल में ही आइएएस अनुराग तिवारी की संदिग्ध मौत के मामले में देर से पहुंचने पर तीन पुलिसकर्मी निलंबित हुए थे।
जीपीएस भी नहीं कर रहा काम
- एक तरफ वरिष्ठ अधिकारी यह दावा कर रहे हैं कि जिले के एसपी व एसएसपी भी अब अपने कार्यालय से 100 नंबर की गाड़ियों की लोकेशन देख सकते हैं।
- वहीं हकीकत इससे परे है।
- सूत्रों के मुताबिक यूपी 100 की कई गाड़ियों में जीपीएस सिस्टम काम नहीं कर रहा।
- कंट्रोल रूम में मौजूद पुलिसकर्मी भी गाड़ियों की सटीक लोकेशन नहीं ट्रैस कर पाते।
- कई बार कंप्यूटर पर गाड़ियां घटना स्थल से चंद किलोमीटर दूर दिखाई देती हैं।
- लेकिन गाड़ी पर तैनात पुलिसकर्मियों से बात करने पर पता चलता है कि वह करीब 30 से 35 किमी दूर मौजूद हैं।
- ऐसे में सवाल यह है कि क्या महज नए साफ्टवेयर लाने से ही खामियां दूर हो जाएंगी या अधिकारी मूल समस्याओं को भी खत्म करने की दिशा में कार्य करेंगे।
क्या कहते हैं जिम्मेदार
- हालांकि इस मामले में जब यूपी 100 के डीजी अनिल अग्रवाल से बात की गई तो उन्होंने कहा कि यह सब कुछ झूठ है।
- यूपी 100 को बदनाम करने के लिए यह किया जा रहा है।
- कॉलर की सही लोकेशन हमेशा मिलती है।
- जीपीएस के काम नहीं करने की बात नवंबर में कही गई थी, लेकिन अब ऐसा नहीं है।
- एसडीओ (सीनियर डिस्पैच ऑफिसर) का कार्य जनहित में नहीं है।
- प्रारंभ में इस व्यवस्था (UP 100) पर विचार किया गया था, लेकिन वर्तमान में यह नहीं हो सकता।
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Sudhir Kumar
I am currently working as State Crime Reporter @uttarpradesh.org. I am an avid reader and always wants to learn new things and techniques. I associated with the print, electronic media and digital media for many years.