प्रशांत किशोर अब राजनीति में कोई नया नाम नही है. यूपी चुनावों से पहले कांग्रेस ने प्रशांत किशोर को रणनीतिकार के रूप में साथ लिया. प्रशांत किशोर ही अब राहुल गाँधी की रैली और सभाओं की पूरी योजना को अंतिम रूप देते हैं. राहुल के दौरे को लेकर पूरा खाका प्रशांत किशोर खींचते हैं. प्रशांत किशोर और राहुल गाँधी की करीबियां किसी से छिपी नही है.
चाणक्य साबित हो रहे हैं प्रशांत किशोर:
यूपी चुनावों को लेकर कांग्रेस ने प्रशांत पर भरोसा दिखाया था. लेकिन कुछ नेताओं के साथ प्रशांत के मनमुटाव की ख़बरें भी आती रही हैं. प्रशांत किशोर पर एकतरफा निर्णयों को थोपने के आरोप लगते रहे हैं. जबकि इसके इतर प्रशांत अपने काम करने के तरीके में कोई बदलाव नहीं कर रहे हैं. प्रशांत ने कई दफे ये भी कह दिया है कि कांग्रेस को अगर उनसे अच्छे रिजल्ट की उम्मीद है तो उन्हें नरेंद्र मोदी और नीतीश कुमार की तरह भरोसा करना होगा.
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बता दें कि प्रशांत किशोर नरेन्द्र मोदी और नीतीश कुमार दोनों नेताओं के साथ काम कर चुके हैं. अब कांग्रेस की उम्मीद पूरी तरह से प्रशांत किशोर पर टिक गई है. गठबंधन को लेकर भी पहल प्रशांत किशोर ने ही किया था. गठबंधन होने की स्थिति में सपा और कांग्रेस साथ चुनाव लड़ सकती हैं. इस नए बदलाव के बाद कांग्रेस को अपनी खोई जमीन भी वापस मिलने की उम्मीद दिखने लगी है जो करीब 27 सालों से यूपी की सत्ता से मरहूम रही है.
सपा के साथ गठबंधन के बाद मुस्लिम वोटबैंक पर होगी नजर:
- बसपा दलितों के मुद्दे को उछालकर वोट लेने की फ़िराक में हैं.
- वहीँ नसीमुद्दीन सिद्दीकी पर भरोसा करते हुए मुस्लिम वोटरों पर भी निशाना साध रही है.
- कांग्रेस के साथ सपा के आने के बाद अब मुस्लिम वोटरों को लेकर गहमागहमी तेज हो जायेगी.
- सूबे के 18 प्रतिशत मुस्लिम उधर ही जायेंगे जिधर उन्हें सरकार बनने के मजबूत आसार नजर आयेंगे.
- कांग्रेस को मुस्लिम वोटरों का साथ मिलता रहा था.
- लेकिन बाबरी मस्जिद कांड के बाद सपा में मुस्लिमों ने भरोसा जताया.
- जिसके बाद से लगातार सपा को मुस्लिमों का समर्थन मिला है.
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इस गठबंधन की जरुरत सपा से ज्यादा कांग्रेस को है. इसी कोशिश को अंतिम रूप देने के लिए प्रशांत जुटे हुए हैं और उन्होंने अखिलेश यादव से सोमवार को कई घंटे तक बात की. पहले मुलायम सिंह यादव से मिलने के बाद भी गठबंधन पर चर्चा करने वाले प्रशांत से कांग्रेस को उम्मीदें हैं. अखिलेश ने एक बार प्रशांत से मिलने से मना कर दिया था लेकिन ऐसा माना जा रहा है कि सपा प्रमुख के हस्तक्षेप के बाद अखिलेश बातचीत को तैयार हुए.