बारिश के मौसम के साथ ही डेंगू और मलेरिया जैसी बीमारियों की दस्तक हर साल शहर को डराती हैं। जिस स्वास्थ्य तंत्र की ओर इन बीमारियों से बचाव और इलाज के लिए उम्मीद भरी नजर टिकती है, खुद उसकी चौखट पर ही डेंगू और मलेरिया पल रहा है।
कितना जागरूक है स्वास्थ्य विभाग:
भले ही स्वास्थ्य विभाग जागरूकता और बचाव के दावे करे, लेकिन शहर के प्रमुख अस्पतालों एलएलआर (हैलट), उर्सला और कांशीराम संयुक्त चिकित्सालय में ही जागरूकता का अभाव दिखता है। अस्पताल में सफाई व्यवस्था दावों की पोल खोलती है। परिसर में गंदगी एवं जलजमाव में मच्छरों के लार्वा पनप रहे हैं। वार्डो में मच्छरों का आतंक है, जिससे अच्छे-खासे व्यक्ति को डेंगू-मलेरिया हो जाए। ऐसे में मरीज तो भगवान भरोसे हैं।
हर बार मिलते हैं निर्देश और बजट:
शासन हर बार बारिश से पहले स्वास्थ्य विभाग को वेक्टर जनित बीमारियों के रोकथाम एवं जागरूकता के लिए दिशा-निर्देश के साथ बजट भी जारी करता है। इसके तहत डेंगू, मलेरिया एवं फाइलेरिया माह भी मनाया जाता है। मलेरिया इकाई मासिक कार्यक्रम बनाकर शहरभर की नालियों में एंटी लार्वा स्प्रे का दावा भी करती है, जिससे कीट पतंगे एवं डेंगू के लार्वा पनपने न पाएं। बावजूद इसके हर साल मच्छर जनित बीमारियां कहर बरपाती हैं। हर साल बड़ी संख्या में लोगों की मौत होती है।
डेंगू-मलेरिया के लक्षण के मरीजों की भरमार:
जिले में अभी तक डेंगू के तीन मरीज मिल चुके हैं। एक नौबस्ता क्षेत्र से, दूसरा काकादेव क्षेत्र से, तीसरा मरीज चकेरी इलाके का है। एलएलआर अस्पताल, उर्सला और कांशीराम संयुक्त चिकित्सालय की ओपीडी में बड़ी संख्या में बुखार के मरीज इलाज के लिए पहुंच रहे हैं। इसमें कई डेंगू-मलेरिया जैसे लक्षण के साथ आ रहे हैं। वहीं कुछ वायरल बुखार जैसे लक्षण के साथ पहुंच रहे हैं। सबसे गंभीर बात मरीजों के प्लेट्लेट्स काउंट कम होना है। उनको अस्पतालों में भर्ती करना पड़ रहा है, लेकिन एलएलआर अस्पताल के वार्डो के बाहर के महीनों से गंदा पानी जमा है। इसकी सफाई कराने की जहमत आज तक अस्पताल प्रशासन ने नहीं उठाई और न ही स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों का ध्यान इस ओर गया।
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